मम्मी की मेहमानबाजी और खाली फ्रिज (Mehmanbaji Kahani)

सुबह का वक्त था। सूरज की किरणें खिड़की से झांक रही थीं और घर में एक अजीब-सी शांति छाई हुई थी। पापा अखबार पढ़ रहे थे, मैं अपना होमवर्क निपटा रहा था, और छोटी बहन रिया टीवी पर कार्टून देख रही थी। सब कुछ सामान्य लग रहा था, तभी मम्मी ने रसोई से आवाज़ लगाई, “अरे सुनो, आज शाम को मेहमान आने वाले हैं!”
पापा ने अखबार से नज़रें उठाईं और बोले, “कौन मेहमान? मुझे तो कुछ पता नहीं।”
मम्मी ने हंसते हुए कहा, “अरे, मेरी कॉलेज की सहेली शीला और उसका परिवार। कई साल बाद मिल रही है, तो मैंने सोचा, क्यों न उन्हें घर बुला लूं।”
पापा ने एक गहरी सांस ली और फिर से अखबार में घुस गए। मैंने और रिया ने एक-दूसरे को देखा। हम दोनों को पता था कि मम्मी की मेहमानबाजी का मतलब है—घर में तूफान आने वाला है।
मम्मी ने तुरंत काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने हमें ऑर्डर दिया, “रिया, टीवी बंद करो और कमरे की सफाई शुरू करो। और तुम, अपनी किताबें उठाओ और सोफे पर से सारी चीज़ें हटाओ।” फिर पापा की बारी आई, “और तुम, बाज़ार से कुछ सामान ले आओ। मेहमान आएंगे तो क्या खाली हाथ बैठेंगे?”
पापा ने हल्का-सा मुंह बनाया, लेकिन मम्मी की एक नज़र ने उन्हें चुप करा दिया। वो चुपचाप चाबी उठाकर बाज़ार की ओर चल पड़े।
मैंने सोचा कि अब मम्मी रसोई में जाकर कुछ शानदार डिश प्लान करेंगी। लेकिन तभी रसोई से उनकी चीख सुनाई दी, “ये क्या! फ्रिज में तो कुछ भी नहीं है!” मैं और रिया भागते हुए रसोई में पहुंचे। मम्मी फ्रिज का दरवाज़ा खोले खड़ी थीं। अंदर सिर्फ आधा लीटर दूध, दो टमाटर, और एक सूखी-सी रोटी पड़ी थी। मम्मी ने हमें घूरते हुए कहा, “ये क्या मज़ाक है? मैं मेहमानों को क्या खिलाऊंगी? टमाटर की चटनी और सूखी रोटी?”
रिया ने मासूमियत से कहा, “मम्मी, टमाटर की चटनी तो ठीक है न। ट्रेंडी भी लगेगा।”
मम्मी ने उसे ऐसी नज़र से देखा कि रिया तुरंत चुप हो गई। मैंने हिम्मत करके कहा, “मम्मी, पापा तो बाज़ार गए हैं न। वो कुछ ले आएंगे।”
मम्मी ने सिर पकड़ लिया, “हां, लेकिन तुम्हारे पापा को तो बस दूध और ब्रेड लेना आता है। मैंने उनसे कहा था कि कुछ अच्छा सामान लें, पर पता नहीं क्या लेकर आएंगे।”
तभी दरवाज़े की घंटी बजी। पापा लौट आए थे। उनके हाथ में दो प्लास्टिक की थैलियां थीं। मम्मी ने उम्मीद भरी नज़रों से पूछा, “क्या-क्या लाए?”
पापा ने थैली खोलकर दिखाई—एक ब्रेड, दूध का पैकेट, आलू, और एक बिस्किट का पैकेट। मम्मी का चेहरा लाल हो गया। “ये क्या है? मेहमानों को मैं आलू की भुजिया और बिस्किट खिलाऊंगी?”
पापा ने सफाई दी, “अरे, मैंने सोचा कि आलू से कुछ बन जाएगा। और बिस्किट तो सबको पसंद होता है।”
मम्मी ने गहरी सांस ली और बोलीं, “ठीक है, अब जो है उसी से काम चलाना पड़ेगा।”
अब मम्मी ने अपनी क्रिएटिविटी दिखाने का फैसला किया। उन्होंने मुझे और रिया को रसोई में बुलाया और कहा, “हम कुछ ऐसा बनाएंगे कि शीला को लगे कि मैं कितनी अच्छी होस्ट हूं।” योजना ये थी कि आलू से समोसे बनाए जाएं, टमाटर से चटनी, और ब्रेड से कुछ सैंडविच। दूध को चाय के लिए रखा गया।
पहला कदम था आलू उबालना। मम्मी ने मुझे आलू छीलने को कहा। मैंने जैसे ही पहला आलू छीला, रिया चिल्लाई, “भैया, तुम तो आलू के साथ अपना उंगली भी छील दोगे!” मम्मी ने देखा और हंसते हुए कहा, “अरे, छोड़ो, मैं खुद कर लेती हूं। तुम बस आटा गूंथ दो।” मैंने आटा गूंथा, लेकिन गलती से नमक ज़्यादा डाल दिया। जब मम्मी ने उसे चखा तो उनका मुंह बन गया, “ये तो नमकीन बिस्किट जैसा हो गया। अब क्या करें?”
फिर भी, मम्मी ने हार नहीं मानी। उन्होंने आलू मसले, उसमें टमाटर की चटनी मिलाई (क्योंकि मसाले भी खत्म थे), और समोसे की शक्ल देने की कोशिश की। लेकिन आटा इतना नमकीन था कि समोसे तलते वक्त फटने लगे। रसोई में तेल छिटक रहा था, और मम्मी चिल्ला रही थीं, “अरे, कोई मुझे चिमटा दो!” रिया ने हंसते हुए कहा, “मम्मी, ये समोसे नहीं, पटाखे बन गए हैं।”
इधर ब्रेड सैंडविच का प्लान भी फेल हो गया। ब्रेड इतनी पुरानी थी कि वो काटते ही टुकड़े-टुकड़े हो गई। मम्मी ने उसे फेंकते हुए कहा, “ये तो मेहमानों के दांत तोड़ देगी।” अब सिर्फ बिस्किट और चाय का ऑप्शन बचा था।
शाम के चार बज चुके थे। मेहमान आने वाले थे। मम्मी ने हमें साफ कपड़े पहनने को कहा और खुद साड़ी पहनकर तैयार हो गईं। पांच बजे दरवाज़े की घंटी बजी। शीला आंटी अपने पति और दो बच्चों के साथ आईं। मम्मी ने बड़े प्यार से उन्हें बिठाया और बातें शुरू कीं।
शीला आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा, “कुछ खिलाओ-पिलाओ यार, भूख लगी है।” मम्मी ने हंसते हुए कहा, “हां-हां, बस अभी लाती हूं।” वो रसोई में गईं और हमारे पास आईं। उनके चेहरे पर पसीना था। “अब क्या करें? कुछ तो नहीं है!”
मैंने कहा, “मम्मी, बिस्किट और चाय ही दे दो।” रिया बोली, “और वो फटे समोसे भी। बोल दो कि ये हमारा स्पेशल डिश है।” मम्मी ने हमें घूरा, लेकिन कोई और रास्ता नहीं था।
मम्मी ने एक ट्रे में बिस्किट, चाय, और दो फटे समोसे सजाए और बाहर ले गईं। शीला आंटी ने समोसा देखकर कहा, “अरे, ये तो बहुत यूनिक लग रहा है!” मम्मी ने हंसते हुए कहा, “हां, हमारा खास स्टाइल है।” शीला आंटी ने समोसा खाया और बोलीं, “वाह, बहुत टेस्टी है। इसमें क्या डाला है?” मम्मी ने झट से कहा, “बस, प्यार और थोड़ा-सा टमाटर।”
हम सब हैरान थे कि शीला आंटी को सचमुच वो पसंद आ गया। उनके बच्चे बिस्किट खाने में मस्त थे, और चाय की तारीफ भी हो रही थी। मम्मी की जान में जान आई।
जब मेहमान चले गए, मम्मी सोफे पर बैठ गईं और बोलीं, “आज तो बचा लिया, लेकिन अगली बार फ्रिज खाली नहीं रहने दूंगी।” पापा ने हंसते हुए कहा, “हां, और मैं भी सिर्फ आलू नहीं लाऊंगा।” रिया और मैं हंस पड़े।
उस दिन हमें समझ आया कि मम्मी की मेहमानबाजी का जादू खाने में नहीं, उनके प्यार और हिम्मत में था। और हां, फ्रिज खाली होने का डर अब हमें हमेशा सताने लगा था!