मनहूस कौन? (Manhoos Kaun Tenali Rama Story)

एक बार की बात है, विजयनगर साम्राज्य में महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में अजीब सी हलचल थी। सुबह-सुबह एक ज्योतिषी दरबार में हांफता हुआ आया और बोला, “महाराज, मैंने आज रात आसमान में एक दुर्लभ नक्षत्र देखा। यह संकेत है कि आज जो भी आपका पहला मेहमान होगा, वह आपके लिए मनहूस साबित होगा!”
महाराज को ज्योतिषी की बात पर यकीन तो नहीं हुआ, लेकिन दरबार में मौजूद कुछ मंत्रियों ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने सुझाव दिया कि आज कोई भी मेहमान महल में न आए। पर तेनाली रामा, जो हमेशा की तरह कोने में खड़े मुस्कुरा रहे थे, बोले, “महाराज, मनहूस तो मन का वहम है। अगर आप इजाजत दें, तो मैं इस बात की तह तक जाऊं?”
महाराज ने हामी भरी। तेनाली ने ज्योतिषी से कहा, “ठीक है, आपकी भविष्यवाणी को परखते हैं। लेकिन पहले यह बताइए, आज सुबह आपने सबसे पहले किसे देखा?” ज्योतिषी थोड़ा हड़बड़ाया और बोला, “मैंने… मैंने अपने घर के बाहर एक भिखारी को देखा।”
तेनाली ने तुरंत उस भिखारी को बुलवाया। भिखारी डरते-डरते दरबार में आया। तेनाली ने उससे पूछा, “बताओ, तुमने सुबह सबसे पहले क्या किया?” भिखारी ने कहा, “मैंने ज्योतिषी जी को देखा और उनसे थोड़ा अनाज मांगा। लेकिन उन्होंने मुझे भगा दिया।”
तेनाली मुस्कुराए और बोले, “महाराज, अब देखिए। ज्योतिषी जी कहते हैं कि भिखारी उनके लिए मनहूस है, क्योंकि उन्होंने सबसे पहले उसे देखा। लेकिन भिखारी कहता है कि उसने सबसे पहले ज्योतिषी को देखा, तो ज्योतिषी उसके लिए मनहूस हुआ। अब बताइए, असली मनहूस कौन?”
दरबार में ठहाके गूंज उठे। महाराज ने कहा, “तेनाली, तुमने फिर साबित कर दिया कि वहम और अंधविश्वास इंसान को गलत रास्ते पर ले जाते हैं। मनहूस कोई इंसान नहीं, बल्कि हमारी सोच होती है।”
ज्योतिषी शर्मिंदा होकर सिर झुका गया, और तेनाली ने एक बार फिर अपनी बुद्धिमानी से सबका दिल जीत लिया।