मंगलू का सपना (Ek Garib Bachche ki Kahani)

मंगलू का सपना – एक गाँव की कहानी जो सपनों और मेहनत की ताकत को दर्शाती है। पढ़ें यह village story in hindi और जानें कैसे मंगलू ने गरीबी से लड़कर अपने गाँव का भविष्य बदला। Gaav ki kahani जो दिल को छू लेगी।
मंगलू का सपना Kahani
गंगा के किनारे बसा एक छोटा-सा गाँव था, चांदपुर। इस गाँव में मंगलू रहता था, एक ऐसा लड़का जिसके सपने उसके छोटे से झोपड़े से कहीं बड़े थे। मंगलू की उम्र कोई सोलह-सत्रह बरस की रही होगी। उसका बापू, रामदीन, खेतों में मज़दूरी करता था और माँ, राधा, दिनभर गाँव वालों के घरों में बर्तन माँजती थी। घर की हालत ऐसी थी कि पेट भरने को दो जून की रोटी भी मुश्किल से जुट पाती थी। फिर भी मंगलू के मन में एक अजीब-सी चमक थी, जो उसे हर सुबह बिस्तर से उठने की हिम्मत देती थी।
मंगलू को पढ़ने का बड़ा शौक था। गाँव के स्कूल में वह पाँचवीं तक पढ़ा था, लेकिन फिर बापू ने कहा, “अब बहुत हो गया, मंगलू। किताबों से पेट नहीं भरता। चल, मेरे साथ खेतों में काम कर।” मंगलू चुपचाप बापू के पीछे चल दिया, पर उसका मन किताबों में ही अटका रहा। स्कूल के मास्टर जी ने उसे एक बार कहा था, “मंगलू, तू अगर मेहनत करे तो बड़ा अफसर बन सकता है।” बस, यही बात उसके मन में घर कर गई थी। वह सोचता, “अफसर बनूँगा, माँ-बापू को सुख दूँगा। ये झोपड़ा हटेगा, पक्का मकान बनेगा।”
हर शाम, जब सूरज डूबने को होता, मंगलू गंगा किनारे बैठता और अपनी पुरानी किताबों को खोलता। किताबें फटी हुई थीं, पन्ने पीले पड़ गए थे, पर मंगलू के लिए वे सोने से कम नहीं थीं। वह अक्षरों को उँगलियों से छूता, जैसे कोई खज़ाना तलाश रहा हो। गाँव वाले उसे देखकर हँसते, “देखो, मंगलू फिर सपनों की दुनिया में खो गया।” पर मंगलू को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता था। उसे अपने सपने पर यकीन था।
एक दिन गाँव में हलचल मच गई। खबर आई कि शहर से एक बड़ा अफसर गाँव का दौरा करने आ रहा है। लोग कह रहे थे कि वह स्कूल की हालत देखने आएगा और कुछ बच्चों को शहर में पढ़ने का मौका देगा। मंगलू के कानों में यह बात पड़ते ही उसकी आँखें चमक उठीं। उसने सोचा, “ये मेरा मौका है। अगर मैं अफसर से बात कर लूँ, तो शायद मेरे सपने सच हो जाएँ।”
अफसर के आने का दिन आया। गाँव में मेला-सा लगा था। लोग अपने बच्चों को सजाकर लाए थे, ताकि अफसर की नज़र उन पर पड़े। मंगलू ने भी अपनी फटी कमीज को सिल लिया और बापू की पुरानी पगड़ी बाँध ली। वह भीड़ में सबसे आगे खड़ा था, हाथ में अपनी किताबें लिए। अफसर की गाड़ी रुकी, और एक लंबा-चौड़ा आदमी बाहर निकला। उसके साथ कुछ और लोग थे, जो कागज़-पत्तर लिए इधर-उधर देख रहे थे।
अफसर ने स्कूल का मुआयना शुरू किया। मास्टर जी बच्चों को लाइन में खड़ा कर गीत गवाने लगे। मंगलू भी गीत गा रहा था, पर उसकी नज़रें बार-बार अफसर पर टिक रही थीं। गीत खत्म हुआ तो अफसर ने मास्टर जी से पूछा, “यहाँ कोई होशियार बच्चा है, जो आगे पढ़ना चाहे?” मास्टर जी ने दो-तीन बच्चों के नाम लिए, पर मंगलू का नाम नहीं लिया। मंगलू का दिल डूबने लगा। उसने हिम्मत जुटाई और भीड़ से आगे बढ़कर बोला, “साहब, मैं पढ़ना चाहता हूँ।”
अफसर ने उसकी ओर देखा। मंगलू की फटी कमीज और नंगे पैर देखकर उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आई। “क्या नाम है तेरा?” उसने पूछा।
“मंगलू, साहब,” उसने जवाब दिया।
“और क्या पढ़ेगा तू?”
“साहब, मैं अफसर बनना चाहता हूँ। गाँव के लिए कुछ करना चाहता हूँ।”
अफसर ने उसकी किताबें देखीं और मास्टर जी से पूछा, “ये स्कूल में पढ़ता है?” मास्टर जी ने कहा, “नहीं साहब, ये तो पाँचवीं के बाद छोड़ गया।” अफसर ने मंगलू से कहा, “पढ़ाई छोड़ दी, फिर भी अफसर बनना चाहता है?” मंगलू ने सिर झुकाकर कहा, “साहब, मजबूरी थी। पर मैं हर दिन किताबें पढ़ता हूँ। मुझे एक मौका दीजिए।”
अफसर चुप रहा। फिर उसने अपने साथ आए एक आदमी से कुछ कहा और मंगलू से बोला, “ठीक है, कल सुबह स्कूल आना। तेरा इम्तिहान होगा। पास हुआ तो शहर में पढ़ने भेज देंगे।” मंगलू की आँखें भर आईं। उसने साहब के पैर छूने की कोशिश की, पर अफसर ने उसे रोक दिया और आगे बढ़ गया।
उस रात मंगलू सो नहीं सका। वह अपनी किताबों को बार-बार देखता रहा। माँ ने पूछा, “क्या हुआ, मंगलू? इतना खुश क्यों है?” उसने माँ को सारी बात बताई। बापू ने सुना तो बोले, “देख, मंगलू, ये शहर वाले बड़े-बड़े वादे करते हैं। अगर कुछ न हुआ तो मुझे मत कहना।” पर मंगलू ने कहा, “बापू, ये मेरा सपना है। मैं हार नहीं मानूँगा।”
अगली सुबह मंगलू स्कूल पहुँचा। वहाँ मास्टर जी और अफसर का एक आदमी इंतज़ार कर रहे थे। इम्तिहान शुरू हुआ। मंगलू से सवाल पूछे गए—हिसाब, हिंदी, और कुछ गाँव की समस्याओं के बारे में। मंगलू ने जो कुछ पढ़ा था, सब याद करके जवाब दिए। कुछ सवालों में वह अटक गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। इम्तिहान खत्म हुआ तो अफसर के आदमी ने कहा, “ठीक है, मंगलू। अब इंतज़ार कर। खबर मिलेगी।”
दिन बीतते गए। मंगलू हर सुबह गंगा किनारे बैठकर सोचता कि क्या होगा। गाँव वाले उससे मज़ाक करने लगे, “अरे मंगलू, कब बन रहा है अफसर?” पर मंगलू चुप रहता। एक महीने बाद एक चिट्ठी आई। मास्टर जी ने मंगलू को बुलाकर कहा, “ये तेरे लिए है।” मंगलू ने काँपते हाथों से चिट्ठी खोली। उसमें लिखा था कि वह पास हो गया है और उसे शहर के एक स्कूल में दाखिला मिलेगा। साथ में कुछ पैसे भी भेजे गए थे, ताकि वह शहर जा सके।
मंगलू की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने माँ-बापू को गले लगाया और कहा, “देखा, मेरा सपना सच हुआ!” बापू की आँखों में आँसू थे, पर वे खुशी के थे। माँ ने कहा, “जा बेटा, अपने सपने पूरे कर। बस हमें मत भूलना।”
मंगलू शहर गया। वहाँ उसने दिन-रात मेहनत की। स्कूल में वह सबसे होशियार बच्चों में गिना जाने लगा। सालों बाद, जब वह अफसर बनकर गाँव लौटा, तो लोग उसे देखकर हैरान रह गए। उसने गाँव में स्कूल बनवाया, ताकि कोई दूसरा मंगलू अपने सपनों को मजबूरी में न दफनाए। उसकी झोपड़ी की जगह अब पक्का मकान खड़ा था, और माँ-बापू के चेहरों पर सुकून था।
मंगलू का सपना सिर्फ उसका नहीं रहा, बल्कि पूरे गाँव का सपना बन गया। गंगा किनारे बैठकर वह अब भी सोचता था—सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे जाते हैं, सपने वो हैं जो आपको सोने न दें। और उसने अपने सपने को जिया, हर साँस के साथ।