बेशकीमती फूलदान

विजयनगर साम्राज्य में एक बार की बात है, महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक अनोखी घटना घटी। एक दिन दूर देश से एक व्यापारी आया, जिसके पास एक चमकीला, नक्काशीदार फूलदान था। उसने दावा किया कि यह फूलदान अनमोल है, क्योंकि इसमें जादुई शक्ति है—यह हर रात अपने मालिक के लिए एक स्वर्ण सिक्का पैदा करता है। व्यापारी ने इसे राजा को उपहार में देने की इच्छा जताई, लेकिन बदले में उसने एक छोटी-सी शर्त रखी: राजा को उसे अपने दरबार में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति का नाम बताना होगा।
महाराज को फूलदान की चमक और जादुई कहानी ने लुभा लिया। उन्होंने व्यापारी की शर्त मान ली और अपने दरबारियों से पूछा, “बताओ, मेरे दरबार में सबसे बुद्धिमान कौन है?” कुछ दरबारियों ने राजगुरु का नाम लिया, कुछ ने सेनापति का, और कुछ ने खुद को सबसे चतुर बताया। लेकिन तेनाली रामा चुपचाप मुस्कुराते हुए कोने में खड़े रहे।
महाराज ने तेनाली की ओर देखा और पूछा, “तेनाली, तुम्हारा क्या कहना है? क्या तुम खुद को सबसे बुद्धिमान समझते हो?” तेनाली ने विनम्रता से जवाब दिया, “महाराज, बुद्धिमानी का दावा करना मूर्खता है। असली बुद्धिमान तो वह है, जो इस फूलदान की सच्चाई को परख ले।”
महाराज को तेनाली की बात जँची। उन्होंने तेनाली को फूलदान की जाँच करने का आदेश दिया। तेनाली ने फूलदान को ध्यान से देखा, उसकी नक्काशी को छुआ, और फिर व्यापारी से पूछा, “यह फूलदान हर रात सिक्का कैसे देता है? क्या आप दिखा सकते हैं?” व्यापारी थोड़ा हड़बड़ा गया और बोला, “यह केवल तभी काम करता है, जब इसका मालिक इसे सच्चे मन से स्वीकार करता है।”
तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, तो आज रात मैं इसे अपने घर ले जाता हूँ और परखता हूँ।” महाराज ने सहमति दे दी। रात में, तेनाली ने फूलदान को अपने कमरे में रखा और पास में एक छोटा-सा दर्पण टांग दिया। सुबह जब वह दरबार पहुँचे, तो उनके हाथ में फूलदान था, लेकिन चेहरा गंभीर।
महाराज ने उत्सुकता से पूछा, “क्या हुआ, तेनाली? क्या फूलदान ने सिक्का दिया?” तेनाली बोले, “महाराज, फूलदान ने सिक्का तो नहीं दिया, लेकिन इसकी सच्चाई जरूर बता दी।” फिर उन्होंने बताया कि रात में उन्होंने फूलदान के पास दर्पण इसलिए रखा था ताकि कोई छल न कर सके। सुबह जब वह उठे, तो फूलदान के पास एक सिक्का था, लेकिन दर्पण में व्यापारी की परछाई दिखी, जो चुपके से सिक्का रखने आया था।
तेनाली ने व्यापारी की ओर देखकर कहा, “तुम्हारा जादू तो फूलदान में नहीं, तुम्हारी चालबाजी में है। यह फूलदान सुंदर है, लेकिन जादुई नहीं।” व्यापारी का चेहरा लाल पड़ गया। उसने स्वीकार किया कि वह लोगों को ठगने के लिए ऐसी कहानियाँ गढ़ता था।
महाराज ने तेनाली की तारीफ की और व्यापारी को उचित दंड दिया। फूलदान को राजमहल के संग्रह में रखा गया, लेकिन अब उसे “तेनाली की चतुराई का प्रतीक” कहा जाने लगा।
नैतिक: सच्चाई कितनी भी चमकदार क्यों न हो, बुद्धिमानी से परखे बिना उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए।