बुद्धिमान किसान (Buddhiman Kisan Tenali Rama Story)

buddhiman kisan tenali rama kahani

विजयनगर साम्राज्य के सुनहरे युग में, जब राजा कृष्णदेवराय का शासन चारों ओर समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक था, एक अनचाही आपदा ने दस्तक दी। उस वर्ष बारिश ने मुंह मोड़ लिया, और आसमान से पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी। नदियाँ और तालाब सूखकर कटोरे जैसे हो गए। खेतों में दरारें पड़ गईं, और गाँवों में भूख की चीखें गूंजने लगीं। किसानों की आँखों में निराशा थी, और बच्चों के चेहरों पर उदासी छा गई।

राजा कृष्णदेवराय, जो अपनी प्रजा के दुख-दर्द को अपने दिल में महसूस करते थे, ने इस संकट से निपटने के लिए अपने भव्य दरबार में सभा बुलाई। सोने-चांदी से सजा वह दरबार, जहां कभी हंसी और बुद्धिमानी की बातें गूंजती थीं, उस दिन गहरे सन्नाटे में डूबा था। राजगुरु, सेनापति, कोषाध्यक्ष और तेनाली रामा सहित सभी दरबारी मौजूद थे। राजा ने गंभीर स्वर में कहा, “हमारी प्रजा भूखी है। खेत सूख रहे हैं। अगर जल्दी ही कोई उपाय न हुआ, तो हमारा साम्राज्य इस संकट की चपेट में आ जाएगा। जो भी इस समस्या का हल सुझाएगा, उसे सोने की सौ मुहरें और सम्मान पत्र दिया जाएगा।”

दरबार में सुझावों की बाढ़ आ गई। कोषाध्यक्ष ने कहा, “महाराज, हम पड़ोसी राज्यों से अनाज खरीद सकते हैं।” सेनापति ने सुझाया, “हम सैनिकों को जंगल भेजकर फल और कंदमूल इकट्ठा करवा सकते हैं।” राजगुरु ने प्रस्ताव रखा, “हवन और यज्ञ करवाएँ, शायद देवता प्रसन्न होकर बारिश बरसाएँ।” लेकिन ये सारे सुझाव या तो बहुत खर्चीले थे, या फिर तात्कालिक राहत देने में असमर्थ। तेनाली रामा, जो हमेशा की तरह एक कोने में चुपचाप बैठे थे, सारी बातें ध्यान से सुन रहे थे। उनकी आँखों में एक चमक थी, मानो कोई विचार उनके दिमाग में तैर रहा हो।

अचानक तेनाली खड़े हुए और बोले, “महाराज, मुझे लगता है कि इस संकट का जवाब हमारे गाँवों में ही छिपा है। मुझे एक साधारण किसान से मिलने की अनुमति दें। मुझे विश्वास है, वह हमें रास्ता दिखा सकता है।”

राजा को तेनाली की बात कुछ अटपटी लगी। एक साधारण किसान? वह क्या समाधान देगा, जो दरबार के विद्वान नहीं दे पाए? लेकिन तेनाली की बुद्धिमत्ता पर राजा का भरोसा अटल था। उन्होंने हँसते हुए कहा, “ठीक है, तेनाली। जाओ और अपने उस किसान को ढूंढो। लेकिन याद रखो, समय कम है।”

तेनाली ने बिना देर किए गाँव की ओर रुख किया। वह एक छोटे से गाँव, हरिपुर, पहुंचे, जहां सूखे ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया था। वहाँ उन्होंने एक बुजुर्ग किसान, रघुनाथ, को देखा। रघुनाथ का चेहरा झुर्रियों से भरा था, लेकिन उनकी आँखों में अनुभव की गहराई और उम्मीद की किरण झलक रही थी। उनके खेत सूखे पड़े थे, फिर भी वह अपने छोटे से बगीचे में कुछ पौधों को पानी देने की कोशिश कर रहे थे।

तेनाली ने नम्रता से पूछा, “रघु काका, आप इतने सूखे में भी हिम्मत नहीं हार रहे। क्या आपके पास इस संकट का कोई हल है?”

रघुनाथ ने अपनी मिट्टी सनी लाठी जमीन पर टिकाई और गहरी साँस लेते हुए बोले, “बेटा, पानी आसमान से नहीं आ रहा, तो हमें जमीन से ढूंढना होगा। मेरे दादाजी ने एक कहानी सुनाई थी। हमारे गाँव के पास, जंगल की सीमा पर, एक प्राचीन कुआँ है। वह कुआँ कभी पानी से लबालब रहता था, लेकिन सालों पहले मिट्टी और कचरे से भर गया। लोग उसे भूल गए। अगर उसे खोदा जाए, तो शायद हमें पानी मिले।”

तेनाली की आँखें चमक उठीं। यह विचार सादा था, लेकिन गहरा। उन्होंने रघुनाथ से और जानकारी ली। रघुनाथ ने बताया कि कुआँ गाँव के पश्चिमी छोर पर, एक पुराने बरगद के पेड़ के पास है। तेनाली ने रघुनाथ को अपने साथ दरबार चलने के लिए मनाया। रघुनाथ पहले तो हिचकिचाए, क्योंकि उन्हें डर था कि राजा और दरबारी उनकी सादगी का मजाक न उड़ाएँ। लेकिन तेनाली ने उन्हें भरोसा दिलाया, “काका, आपकी बात में सच्चाई है, और सच्चाई को कोई नहीं दबा सकता।”

दरबार में, जब रघुनाथ ने अपनी सलाह दोहराई, तो कुछ दरबारियों ने हँसना शुरू कर दिया। राजगुरु ने तंज कसा, “एक पुराना कुआँ? यह क्या मजाक है? क्या हमारी समस्या का हल इतना सस्ता हो सकता है?” लेकिन तेनाली ने बीच में टोकते हुए कहा, “महाराज, बुद्धिमत्ता की कीमत सोने-चांदी से नहीं, उसके असर से मापी जाती है। आइए, इस विचार को आजमाएँ।”

राजा ने तेनाली की बात मान ली और सैनिकों को कुआँ खोदने का आदेश दिया। अगले दिन, सैकड़ों मजदूर और सैनिक उस पुराने बरगद के पेड़ के पास जमा हो गए। कुआँ ढूंढना आसान नहीं था। सालों की मिट्टी और जड़ों ने उसे ढक रखा था। लेकिन तेनाली और रघुनाथ ने हार नहीं मानी। रघुनाथ ने अपनी यादों के आधार पर सटीक जगह बताई, और खोदाई शुरू हुई।

पहले दिन, केवल मिट्टी और पत्थर निकले। दूसरे दिन, कुछ पुराने बर्तनों के टुकड़े मिले, जिससे दरबारियों का मजाक और बढ़ गया। लेकिन तीसरे दिन, जब मजदूरों की कुल्हाड़ी एक गहरे गड्ढे में पहुंची, तो अचानक पानी की एक पतली धारा फूटी। देखते-देखते वह धारा बढ़ने लगी, और कुएँ से साफ, ठंडा पानी उमड़ने लगा। गाँववाले खुशी से चीख उठे। कुछ ने पानी को हाथों में भरकर पिया, तो कुछ ने अपने सूखे खेतों की ओर दौड़ लगाई।

तेनाली ने राजा को खबर दी। राजा स्वयं उस कुएँ को देखने आए। पानी की चमक देखकर उनकी आँखें नम हो गईं। उन्होंने रघुनाथ को गले लगाया और कहा, “तुमने मेरी प्रजा को नई जिंदगी दी है।” रघुनाथ को सोने की सौ मुहरें, एक नया घर, और गाँव का मुखिया बनने का सम्मान दिया गया।

दरबार में वापस लौटकर, तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, बुद्धिमत्ता न किताबों में होती है, न ऊँचे ओहदों में। यह अनुभव और सादगी में बसती है। रघु काका ने हमें यही सिखाया।” राजा ने तेनाली की तारीफ की और पूरे साम्राज्य में कुओं की मरम्मत और नए कुएँ खोदने का आदेश दिया।

धीरे-धीरे, हरिपुर और आसपास के गाँवों में हरियाली लौट आई। खेतों में फसलें लहलहाने लगीं, और बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई। रघुनाथ का नाम हर गाँव में एक मिसाल बन गया, और तेनाली रामा की बुद्धिमत्ता की कहानी एक बार फिर विजयनगर की गलियों में गूंजने लगी।

नैतिक शिक्षा: सच्ची बुद्धिमत्ता वह है, जो सादगी और अनुभव से जन्म लेती है, और जो संकट के समय में प्रजा के लिए रोशनी बनकर उभरती है।

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