पटवारी का रिकॉर्ड (Patwari Ka Record Village Story Hindi)

patwari ka record village story hindi

गंगा के किनारे बसा छोटा-सा गाँव था रामपुर। हरे-भरे खेत, कच्चे-पक्के मकान और गाँव के बीचों-बीच एक पुराना बरगद का पेड़, जिसके नीचे चौपाल सजा करती थी। गाँव के लोग मेहनती थे, पर गरीबी और अज्ञानता ने उनके जीवन को जकड़ रखा था। रामपुर में एक नाम हर ज़ुबान पर रहता—पटवारी शिवनाथ। उम्र पचास के आसपास, चेहरा सख्त, आँखों में चालाकी और जुबान पर मक्खन। उसका रिकॉर्ड-रजिस्टर गाँव की तकदीर का मालिक था। जमीन का हिसाब, फसल का लेखा-जोखा, सब कुछ उसी के हाथ में था। लोग कहते, “पटवारी का कलम अगर चल गया, तो किसान की ज़िंदगी बदल जाती है।”

गाँव में रामदीन नाम का एक किसान था। मेहनतकश, ईमानदार, पर बदकिस्मत। उसके पास चार बीघा जमीन थी, जो गंगा के कटाव से अब दो बीघा रह गई थी। बाकी दो बीघा नदी की भेंट चढ़ चुकी थी। रामदीन ने कई बार पटवारी से गुहार लगाई कि रिकॉर्ड में उसकी जमीन को ठीक कर दे, पर शिवनाथ हर बार टाल देता। “देखता हूँ, अभी फुरसत नहीं,” कहकर वह बात को टरका देता। रामदीन की पत्नी मंगलिया और दो बेटों—छोटू और मंगल—के लिए वह जमीन ही जीवन का आधार थी।

एक दिन रामदीन फिर पटवारी के घर पहुँचा। शिवनाथ अपनी चारपाई पर हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। रामदीन ने हाथ जोड़कर कहा, “पटवारी जी, मेरी जमीन का रिकॉर्ड ठीक कर दीजिए। गंगा ने आधी जमीन खा ली, अब बाकी का हिसाब तो सही हो।”

शिवनाथ ने आँखें तरेरीं और बोला, “रामदीन, रिकॉर्ड कोई बच्चों का खेल नहीं। इसमें वक्त लगता है। और फिर, ऊपर तक बात जाती है। कुछ खर्चा-पानी तो बनेगा।”

रामदीन समझ गया। उसने कहा, “साहब, मेरे पास तो बस मेहनत का पैसा है। जो कुछ बचा है, वह ले लीजिए, पर मेरी जमीन का हक दिला दीजिए।”

शिवनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, दो सौ रुपये और एक बोरा गेहूँ लाओ। फिर देखता हूँ।”

रामदीन का दिल बैठ गया। दो सौ रुपये उसके लिए दो साल की कमाई थी। फिर भी, उसने सोचा कि अगर जमीन का रिकॉर्ड ठीक हो गया, तो शायद उसकी जिंदगी संवर जाए। उसने मंगलिया से बात की। मंगलिया ने गहने गिरवी रखे, कुछ उधार लिया और पैसे का इंतजाम किया। रामदीन ने बोरा भर गेहूँ और रुपये शिवनाथ को दे दिए।

शिवनath ने रुपये गिने, गेहूँ का बोरा देखा और बोला, “अच्छा, अब जाओ। मैं रिकॉर्ड ठीक कर दूँगा।”

महीने बीत गए। रामदीन हर हफ्ते पटवारी के चक्कर काटता, पर शिवनाथ हर बार कोई न कोई बहाना बना देता। कभी कहता, “ऊपर से आदेश नहीं आया,” तो कभी, “रजिस्टर तहसील में है।” रामदीन की उम्मीद धीरे-धीरे टूटने लगी। मंगलिया उसे समझाती, “धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा।” पर रामदीन का मन अब टूट चुका था।

इसी बीच गाँव में एक नया मेहमान आया—मास्टर हरिशंकर। वह गाँव के स्कूल में पढ़ाने आया था। जवान, जोशीला और पढ़ा-लिखा। उसने गाँव की हालत देखी तो उसका मन बेचैन हो उठा। एक दिन चौपाल पर वह रामदीन से मिला। रामदीन ने अपनी आपबीती सुनाई। मास्टर जी ने गौर से सुना और बोले, “रामदीन, यह पटवारी तुम्हें ठग रहा है। मुझे उसका रिकॉर्ड दिखाओ।”

रामदीन ने हँसते हुए कहा, “मास्टर जी, पटवारी का रिकॉर्ड तो भगवान के पास भी नहीं पहुँचता।”

मास्टर हरिशंकर ने ठान लिया कि वह रामदीन की मदद करेगा। उसने गाँव के कुछ पढ़े-लिखे नौजवानों को इकट्ठा किया और एक योजना बनाई। अगले दिन वह रामदीन को लेकर तहसील गया। वहाँ उसने पटवारी के रिकॉर्ड की जाँच की। पता चला कि शिवनाथ ने रामदीन की जमीन का रिकॉर्ड तो बदला ही नहीं, बल्कि उसकी दो बीघा जमीन को जमींदार रघुनाथ के नाम कर दिया था।

मास्टर जी का खून खौल उठा। वह गाँव लौटा और चौपाल पर सारी बात गाँव वालों को बताई। लोग गुस्से से भर उठे। रामदीन की आँखों में आँसू थे। उसने कहा, “मास्टर जी, अब क्या होगा? मेरी जमीन तो गई।”

मास्टर जी ने कहा, “रामदीन, हिम्मत मत हारो। हम सब मिलकर तुम्हारा हक वापस लेंगे।”

अगले दिन गाँव वालों ने तहसील पर धरना देने का फैसला किया। मास्टर जी ने एक अर्जी तैयार की, जिसमें शिवनाथ के काले कारनामों का ज़िक्र था। गाँव के सैकड़ों लोग तहसील पहुँचे। रामदीन, मंगलिया, छोटू और मंगल भी साथ थे। तहसीलदार ने मामला गंभीर देखकर जाँच के आदेश दिए।

जाँच में शिवनाथ के कई और घपले सामने आए। उसने न सिर्फ रामदीन, बल्कि गाँव के कई और किसानों की जमीन का रिकॉर्ड गलत किया था। कुछ जमीनें उसने अपने रिश्तेदारों के नाम कर दी थीं, तो कुछ जमींदारों को बेच दी थीं। तहसीलदार ने शिवनाथ को निलंबित कर दिया और उसका रिकॉर्ड जब्त कर लिया।

रामदीन की जमीन का रिकॉर्ड ठीक हुआ। उसकी दो बीघा जमीन वापस उसके नाम हो गई। गाँव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। मंगलिया ने मास्टर जी के पैर छूकर कहा, “आपने हमें नया जीवन दिया।”

मास्टर हरिशंकर ने हँसते हुए कहा, “मंगलिया, यह तुम सबकी जीत है। जब तक गाँव वाले एकजुट नहीं होंगे, तब तक पटवारी जैसे लोग हमें लूटते रहेंगे।”

शिवनाथ को सजा मिली। उसे जेल भेज दिया गया। गाँव में एक नया पटवारी आया, जो ईमानदार था। रामदीन ने अपनी जमीन पर फिर से मेहनत शुरू की। उस साल फसल अच्छी हुई। छोटू और मंगल स्कूल जाने लगे। मंगलिया का चेहरा फिर से मुस्कुराने लगा।

एक शाम, चौपाल पर गाँव वाले इकट्ठा थे। मास्टर जी ने कहा, “देखो, पटवारी का रिकॉर्ड कोई भगवान का लेखा नहीं। वह इंसान बनाता है, और इंसान ही उसे ठीक कर सकता है। बस, हमें जागरूक रहना है।”

रामदीन ने हाथ जोड़कर कहा, “मास्टर जी, आपने हमें सिर्फ जमीन नहीं, हिम्मत भी दी।”

बरगद के पेड़ के नीचे हवा चल रही थी। गंगा की लहरें किनारे से टकरा रही थीं। रामपुर में अब एक नई सुबह की शुरुआत हो चुकी थी।

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