पंडित जी की बात (Pandit Ji Ki Baat Village Story in Hindi)

गाँव का नाम था चम्पापुर। यमुना के किनारे बसा यह गाँव अपनी सादगी और आपसी भाईचारे के लिए जाना जाता था। गाँव के बीचोबीच एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे चौपाल लगती थी। यहीं पर पंडित रामनारायण तिवारी, जिन्हें सब प्यार से पंडित जी कहते थे, रोज़ शाम को बैठते और गाँव वालों को रामायण की चौपाइयाँ सुनाते। पंडित जी की बात में एक अजीब-सा जादू था। उनकी आवाज़ में सच्चाई और उनके शब्दों में गहराई होती थी। चाहे बच्चा हो या बूढ़ा, सब उनकी बातें सुनने को आतुर रहते।
पंडित जी कोई साधारण पुरोहित नहीं थे। वह न तो कर्मकांड के पक्के थे, न ही दक्षिणा के लालची। उनकी सीख थी कि धर्म का असली मतलब है इंसानियत। गाँव के हर सुख-दुख में वह शामिल रहते। किसी की बेटी की शादी हो, तो पंडित जी बिना मंत्रों के आशीर्वाद देने पहुँच जाते। किसी का देहांत हो, तो वह रात-रात भर जागकर परिवार को सांत्वना देते। गाँव वाले कहते, “पंडित जी की बात में राम बसते हैं।”
लेकिन हर गाँव की तरह चम्पापुर में भी कुछ लोग ऐसे थे, जिन्हें पंडित जी की सादगी और सीधी बात पसंद नहीं थी। इनमें सबसे आगे था लाला सूरजमल, गाँव का सबसे बड़ा साहूकार। सूरजमल की हवेली गाँव की सबसे शानदार इमारत थी। उसका रुतबा ऐसा था कि लोग उससे बिना वजह डरते। सूरजमल को लगता था कि पंडित जी की बातें गाँव वालों को उसकी सत्ता के खिलाफ भड़काती हैं। पंडित जी कहते थे, “किसी का हक मारना पाप है, चाहे वह साहूकार हो या राजा।” ये बातें सूरजमल को चुभती थीं, क्योंकि उसका धंधा ही ब्याज और ज़मीन हड़पने पर टिका था।
एक बार गाँव में सूखा पड़ा। यमुना का पानी सूख गया, खेत बंजर हो गए। गाँव वालों की हालत पतली थी। जो थोड़ा-बहुत अनाज बचा था, उसे सूरजमल ने अपने गोदाम में जमा कर लिया। उसने ऐलान किया कि अनाज सिर्फ उसी को मिलेगा, जो उसका कर्ज़ चुकाए या ब्याज दे। गाँव में हाहाकार मच गया। लोग भूखे मरने लगे। बच्चे रोते, बूढ़े कराहते, और जवान बेबस होकर सूरजमल की हवेली के सामने गिड़गिड़ाते।
पंडित जी यह सब देखकर चुप नहीं रह सके। एक शाम चौपाल पर उन्होंने गाँव वालों को बुलाया। बरगद के नीचे लोग इकट्ठा हुए। पंडित जी ने कहा, “भाइयो, यह समय एकजुट होने का है। सूरजमल का अनाज हम सब का है। उसने हमारे खेतों से ही उसे इकट्ठा किया है। अगर हमने हिम्मत दिखाई, तो कोई हमें भूखा नहीं मार सकता।”
उनकी बात सुनकर कुछ लोग सहम गए। सूरजमल का खौफ ऐसा था कि कोई उससे टकराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन पंडित जी ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, “रामायण में लिखा है कि जब रावण ने सीता का हरण किया, तो राम ने अकेले उसका सामना नहीं किया। उनके साथ सुग्रीव, हनुमान और पूरी वानर सेना थी। हमें भी अपनी सेना बनानी होगी।”
पंडित जी की बात ने गाँव के नौजवान मंगलू को झकझोर दिया। मंगलू एक गरीब किसान का बेटा था। उसकी माँ बीमार थी, और घर में एक दाना तक नहीं बचा था। मंगलू ने कहा, “पंडित जी, मैं आपके साथ हूँ। सूरजमल को सबक सिखाना ही होगा।” धीरे-धीरे और लोग भी हिम्मत जुटाने लगे। रामदीन, छोटू, और गाँव की विधवा राधा भी पंडित जी के साथ खड़े हो गए।
पंडित जी ने एक योजना बनाई। उन्होंने कहा, “हमें सूरजमल से डरने की ज़रूरत नहीं। हम उससे बात करेंगे। अगर वह अनाज नहीं देता, तो हम सब मिलकर उसके गोदाम तक जाएँगे। लेकिन याद रखो, हिंसा धर्म नहीं है। हमारा हथियार हमारी एकता है।”
अगले दिन सुबह गाँव वाले सूरजमल की हवेली के सामने इकट्ठा हुए। पंडित जी सबसे आगे थे। सूरजमल ने जब इतने लोगों को देखा, तो वह घबरा गया। उसने अपने नौकरों को बुलाया और दरवाज़ा बंद कर लिया। पंडित जी ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, “लाला जी, बाहर आइए। हम आपसे लड़ने नहीं, बात करने आए हैं।”
सूरजमल ने खिड़की से झाँका और चिल्लाया, “क्या चाहते हो? मेरे गोदाम में जो अनाज है, वह मेरा है। तुम लोग यहाँ से चले जाओ, वरना अंजाम बुरा होगा।”
पंडित जी ने शांति से कहा, “लाला जी, यह अनाज आपका नहीं, गाँव का है। आपने इसे हमारी मेहनत से लिया है। अगर आप इसे नहीं बाँटेंगे, तो गाँव के लोग भूखे मर जाएँगे। क्या आप चाहते हैं कि आपके कारण राम का नाम बदनाम हो?”
पंडित जी की बात सुनकर सूरजमल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह समझ गया कि इतने लोगों के सामने वह कुछ नहीं कर सकता। उसने कहा, “ठीक है, मैं अनाज दूँगा। लेकिन इसके बदले मुझे ब्याज चाहिए।”
पंडित जी ने जवाब दिया, “लाला जी, ब्याज की बात छोड़िए। यह समय लेन-देन का नहीं, इंसानियत का है। अगर आप अनाज बाँट देंगे, तो गाँव वाले आपको हमेशा याद रखेंगे। लेकिन अगर आपने लालच किया, तो यह गाँव आपको कभी माफ नहीं करेगा।”
पंडित जी की बात में इतना वज़न था कि सूरजमल का दिल पिघलने लगा। उसे अपनी हवेली, अपने धन और अपने रुतबे की खोखली सच्चाई समझ में आई। उसने अपने नौकरों को बुलाया और गोदाम खोलने का आदेश दिया। गाँव वालों को अनाज बाँटा गया। हर घर में चूल्हा जला, और बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई।
उस दिन के बाद सूरजमल का रवैया बदल गया। वह पहले की तरह सख्त और लालची नहीं रहा। पंडित जी की बात ने न सिर्फ गाँव को भूख से बचाया, बल्कि एक साहूकार के दिल को भी जीत लिया। गाँव वाले कहने लगे, “पंडित जी की बात में राम की शक्ति है।”
कुछ महीनों बाद यमुना में फिर से पानी लौट आया। खेत लहलहाने लगे। गाँव में खुशहाली छा गई। हर शाम बरगद के नीचे चौपाल लगती, और पंडित जी अपनी रामायण की चौपाइयाँ सुनाते। मंगलू, रामदीन, राधा और सूरजमल भी वहाँ बैठते। सूरजमल अब पंडित जी की बातों को ध्यान से सुनता और कभी-कभी खुद भी कुछ कहानियाँ सुनाता।
पंडित जी की यह कहानी चम्पापुर में आज भी याद की जाती है। लोग कहते हैं कि जब तक सच्चाई और एकता होगी, तब तक पंडित जी की बात गाँव के दिलों में जिंदा रहेगी।
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