टूटा हुआ सपना (Toota Hua Sapna Emotional Kahani)

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सर्दियों की एक ठंडी सुबह थी। कोहरा इतना घना था कि सामने का पेड़ भी धुंधला सा दिखाई देता था। गाँव के आखिरी छोर पर बनी छोटी सी झोपड़ी में राधा बैठी थी, अपने पुराने लकड़ी के सन्दूक को टटोलते हुए। उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, शायद ठंड से, या शायद उन यादों से जो उस सन्दूक में दबी पड़ी थीं।

राधा की आँखें उस पुरानी साड़ी पर टिक गईं, जो उसने अपनी शादी के दिन पहनी थी। लाल रंग अब फीका पड़ चुका था, ठीक वैसे ही जैसे उसके सपने। उसने साड़ी को छुआ, और एक गहरी साँस के साथ आँखें मूंद लीं। यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।

वो दिन, जब उसका मन एक छोटे से सपने से चहक रहा था। शहर में पढ़ाई, एक अच्छी नौकरी, और अपने माता-पिता के लिए एक पक्का मकान। राधा का बाबूजी, जो खेतों में दिन-रात मेहनत करते थे, हमेशा कहते, “राधा, तू पढ़-लिखकर बड़ा नाम करेगी। हमारा गाँव तेरा नाम लेगा।” उसकी माँ, जो रात को चूल्हे के पास बैठकर रोटियाँ सेंकते हुए कहानियाँ सुनाती, हमेशा कहती, “बेटी, तू आसमान छू लेना।”

राधा ने जी-जान से पढ़ाई की। गाँव के स्कूल में टिमटिमाते लैंप की रोशनी में रातें काटीं। आखिरकार, उसे शहर के कॉलेज में दाखिला मिला। वो दिन राधा के लिए एक नई सुबह था। उसने सोचा, अब वो अपने सपनों को सच कर दिखाएगी।

लेकिन सपने इतनी आसानी से पूरे कहाँ होते हैं? कॉलेज के दूसरे साल में ही बाबूजी को खाँसी ने जकड़ लिया। पहले तो गाँव के वैद्य ने कहा, “कोई बात नहीं, ठीक हो जाएगा।” लेकिन दिन बीतते गए, और बाबूजी की साँसें उखड़ने लगीं। शहर के अस्पताल में इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी, और राधा के पास कुछ नहीं था। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। कॉलेज की किताबें बेच दीं। अपने गहने बेचे। लेकिन बाबूजी को बचा न सकी।

बाबूजी के जाने के बाद माँ भी टूट गई। राधा ने देखा, कैसे उसकी माँ की आँखों की चमक धीरे-धीरे खो गई। गाँव वालों ने कहा, “राधा, अब तू शादी कर ले। लड़की का क्या, उसे तो पराया घर जाना ही है।” राधा ने विरोध किया, लेकिन माँ की कमजोर साँसों के सामने उसकी आवाज दब गई।

शादी के बाद राधा की जिंदगी एक नई जंजीर में बंध गई। पति रामू मजदूरी करता था। दिनभर की मेहनत के बाद भी घर में दो वक्त की रोटी मुश्किल से जुट पाती थी। राधा का सपना, जो कभी आसमान छूने वाला था, अब एक धुंधली सी याद बनकर रह गया।

आज, उस सन्दूक के सामने बैठकर राधा ने उस साड़ी को सीने से लगाया। उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे। उसने सोचा, “क्या सपने सिर्फ देखने के लिए होते हैं? क्या गरीब की बेटी को हक नहीं कि वो अपने सपनों को सच करे?”

तभी, बाहर से एक छोटी सी आवाज आई, “अम्मा, स्कूल का समय हो गया।” राधा की बेटी, छोटी सी गुड़िया, स्कूल की वर्दी में खड़ी थी। राधा ने आँसू पोंछे और मुस्कुराने की कोशिश की। उसने गुड़िया का सिर सहलाया और कहा, “जा बेटी, खूब पढ़ना। तेरा सपना कोई नहीं तोड़ेगा।”

राधा ने सन्दूक बंद किया। उसका सपना शायद टूट गया था, लेकिन उसने ठान लिया था कि गुड़िया का सपना वो पूरा करेगी। चाहे इसके लिए उसे कितनी ही रातें भूखे सोना पड़े।

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