एक अनजान रिश्ता (Ek Anjan Rishta)

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बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर टकरा रही थीं, जैसे कोई पुराना गीत गुनगुना रहा हो। दिल्ली की उस पुरानी हवेली में, जहाँ दीवारें समय की कहानियाँ कहती थीं, सायरा अपनी किताबों के बीच खोई थी। तीस साल की सायरा एक लेखिका थी, जिसके शब्दों में जादू था, पर उसका दिल हमेशा अधूरा-सा लगता था। उसकी कहानियाँ प्यार, दर्द और खोए हुए रिश्तों की बात करती थीं, पर उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई रिश्ता नहीं था, सिवाय उन किताबों के, जो उसकी रातों की हमसफ़र थीं।

सायरा की माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था। पिता, जो एक सख्त मिजाज़ के प्रोफेसर थे, ने उसे प्यार से ज़्यादा अनुशासन दिया। शायद इसीलिए सायरा ने अपने दिल की बातें कागज़ पर उतारना सीख लिया। उसकी कहानियाँ पढ़कर लोग रोते, हँसते, पर कोई नहीं जानता था कि इन कहानियों के पीछे एक तन्हा आत्मा की पुकार थी।

उस दिन बारिश कुछ ज़्यादा ही थी। सायरा ने अपनी कॉफी का मग उठाया और खिड़की के पास खड़ी हो गई। तभी दरवाजे की घंटी बजी। वह चौंकी। इस पुरानी हवेली में कोई मेहमान नहीं आता था। उसने दरवाजा खोला तो सामने एक अधेड़ उम्र का शख्स खड़ा था। बारिश में भीगा हुआ, चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी।

“जी, आप कौन?” सायरा ने संकोच से पूछा।

“मैं… मैं आपका कोई पुराना जानने वाला हूँ,” उसने रुकते हुए कहा। “मेरा नाम अखिल है। क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”

सायरा को कुछ अजीब लगा, पर उसकी आँखों में कुछ ऐसा था कि उसने उसे अंदर बुला लिया। अखिल ने अपने गीले कोट को उतारा और सोफे पर बैठ गया। सायरा ने उसे कॉफी दी और पूछा, “आप मुझसे कैसे मिले? मुझे तो आपका चेहरा याद नहीं।”

अखिल ने एक गहरी साँस ली। “सायरा, तुम्हें शायद कुछ भी याद नहीं। तुम बहुत छोटी थीं जब… जब मैं तुम्हारी ज़िंदगी से चला गया।”

सायरा का दिल धक् से रह गया। “क्या मतलब? आप कौन हैं?”

“मैं तुम्हारा पिता हूँ, सायरा,” अखिल ने धीरे से कहा, जैसे हर शब्द में वजन हो।

सायरा को लगा जैसे ज़मीन उसके पैरों तले खिसक गई। “पिता? मेरे पिता तो… वो तो प्रोफेसर थे। उनका देहांत दस साल पहले हो गया। आप… आप झूठ बोल रहे हैं!”

अखिल ने अपनी जेब से एक पुरानी तस्वीर निकाली। उसमें एक जवान औरत, एक पुरुष और एक छोटी बच्ची थी। सायरा ने काँपते हाथों से तस्वीर ली। वह बच्ची… वह खुद थी। और वह औरत… उसकी माँ।

“ये… ये क्या है?” सायरा की आवाज़ में गुस्सा और दर्द था।

“सायरा, मैं तुम्हारा असली पिता हूँ,” अखिल ने कहा। “तुम्हारी माँ और मेरी शादी को मुश्किलें थीं। मैं एक साधारण क्लर्क था, और तुम्हारी माँ के परिवार को ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था। जब तुम दो साल की थीं, उन्होंने हमें अलग कर दिया। तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने पास रखा, और मैं… मैं चला गया।”

सायरा की आँखें भर आईं। “तो आपने मुझे छोड़ दिया? आपने कभी मुझे ढूंढने की कोशिश नहीं की?”

“की, सायरा,” अखिल की आवाज़ काँप रही थी। “मैंने कई बार कोशिश की, पर तुम्हारी माँ ने मुझे दूर रखा। फिर उसकी दूसरी शादी हो गई, और मुझे लगा कि तुम्हें अब मेरी ज़रूरत नहीं।”

“ज़रूरत नहीं?” सायरा चीख पड़ी। “मुझे हर पल एक पिता की ज़रूरत थी। क्या आप जानते हैं मैंने कितने सवालों के साथ ज़िंदगी जी है? माँ चली गईं, और पापा… वो प्रोफेसर, उन्होंने मुझे कभी प्यार नहीं दिया। मैं हमेशा सोचती थी कि मेरी गलती क्या थी!”

अखिल की आँखों में आँसू थे। “मुझे माफ कर दो, सायरा। मैं कमज़ोर था। लेकिन मैंने तुम्हें कभी नहीं भुलाया। मैंने तुम्हारी हर कहानी पढ़ी। तुम्हारी किताबें मेरे पास हैं। तुम्हारे शब्दों में मैंने तुम्हें महसूस किया।”

सायरा का गुस्सा अब दर्द में बदल चुका था। वह खामोश थी, जैसे उसका मन दो हिस्सों में बँट गया हो। एक हिस्सा उस आदमी को गले लगाना चाहता था, जो उसका पिता था। दूसरा हिस्सा उसे धक्के मारकर बाहर निकाल देना चाहता था।

“आप अब क्यों आए?” उसने आखिरकार पूछा।

“क्योंकि मुझे पता चला कि मैं बीमार हूँ,” अखिल ने धीरे से कहा। “डॉक्टरों ने कहा कि मेरे पास ज़्यादा वक्त नहीं है। मैं तुमसे मिलना चाहता था, सायरा। बस एक बार। मैं कोई उम्मीद नहीं लाया। बस तुम्हें बताना चाहता था कि मैंने तुमसे हमेशा प्यार किया।”

सायरा की आँखों से आँसू बहने लगे। वह उठी और खिड़की के पास चली गई। बारिश अब भी हो रही थी, पर उसका शोर अब सायरा के दिल की धड़कनों से कम था। उसने सोचा, क्या वह इस अनजान र ish्ते को अपनाए? क्या वह उस आदमी को माफ कर पाए, जिसने उसे सालों पहले छोड़ दिया?

“आपके पास कितना वक्त है?” उसने बिना पलटे पूछा।

“शायद कुछ महीने,” अखिल ने जवाब दिया।

सायरा ने एक गहरी साँस ली और पलटी। “तो ये महीने मेरे साथ बिताइए। मैं आपको जानना चाहती हूँ। मैं जानना चाहती हूँ कि मेरे पिता कौन हैं।”

अखिल की आँखें चमक उठीं। उसने धीरे से सिर हिलाया। “मुझे इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए, सायरा।”

उस रात, हवेली में पहली बार सायरा अकेली नहीं थी। अखिल ने उसे अपनी ज़िंदगी की कहानियाँ सुनाईं—उसके सपने, उसकी गलतियाँ, और उस प्यार की बात, जो उसने कभी ज़ाहिर नहीं किया। सायरा ने सुना, और धीरे-धीरे उसके दिल का बोझ हल्का होने लगा।

अगले कुछ महीने सायरा और अखिल ने साथ बिताए। वे बारिश में भीगते, पुरानी तस्वीरें देखते, और एक-दूसरे को समझने की कोशिश करते। सायरा ने अपनी नई कहानी लिखनी शुरू की, जिसका नाम था—”एक अनजान रिश्ता”। यह कहानी न तो पूरी तरह ख़ुशी की थी, न ही पूरी तरह दुख की। यह ज़िंदगी की तरह थी—जटिल, अधूरी, पर फिर भी ख़ूबसूरत।

जब अखिल का आखिरी दिन आया, सायरा उसके बिस्तर के पास बैठी थी। उसने उसका हाथ थामा और कहा, “पापा, आपने मुझे मेरी सबसे अच्छी कहानी दी।”

अखिल ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ दबाया। “और तुमने मुझे मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़ूबसूरत पल, बेटी।”

उस रात, जब अखिल ने आखिरी साँस ली, सायरा रोई। पर इस बार उसके आँसुओं में सिर्फ़ दर्द नहीं था। उनमें प्यार था, माफ़ी थी, और एक रिश्ते की गर्माहट थी, जो अनजान होते हुए भी उसका अपना था।

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