एक पेड़ और मालिक दो (Ek Ped Aur Malik Do Akbar Birbal Kahani)

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अकबर के दरबार में एक दिन हंगामा मच गया। दो ज़मींदार, रघुनाथ और बलदेव, आपस में झगड़ते हुए दरबार में घुसे। दोनों का दावा था कि गाँव के बीचों-बीच खड़ा बरगद का पेड़ उनका है।

रघुनाथ बोला, “हुज़ूर, वो पेड़ मेरी ज़मीन पर है। मेरे बाप-दादा ने उसे सींचा। उसकी छाया में गाँव वाले मेरे मेहमान हैं।”

बलदेव चिल्लाया, “झूठ! वो पेड़ मेरी ज़मीन की सीमा पर है। मेरी बकरियों ने उसकी जड़ें खोदीं। वो मेरा है!”

अकबर ने सिर खुजलाया। पेड़ एक, दावेदार दो। फिर उनकी नज़र बीरबल पर पड़ी। “बीरबल, तुम्हीं सुलझाओ ये झगड़ा।”

बीरबल मुस्कुराए और बोले, “हुज़ूर, मुझे पेड़ से बात करनी होगी।”

दरबार में हँसी छूट गई। रघुनाथ और बलदेव एक-दूसरे को देखने लगे, जैसे बीरबल पागल हो गया हो। लेकिन अकबर ने इशारा किया, “जाओ, बीरबल।”

गाँव में सैर

अगले दिन बीरबल गाँव पहुँचे। बरगद का पेड़ विशाल था—जड़ें ज़मीन चीरतीं, पत्तियाँ हवा में नाचतीं। गाँव वाले छाया में बैठे गप्पें मार रहे थे। बीरबल ने दोनों ज़मींदारों को बुलाया।

“चलो, पेड़ से पूछते हैं,” बीरबल ने मज़ाकिया लहजे में कहा।

रघुनाथ ने तंज कसा, “पेड़ बोलेगा भी?”

बीरबल ने आँख मारी, “पेड़ों की अपनी ज़ुबान होती है।”

पेड़ की सुनवाई

बीरबल पेड़ के पास बैठ गए। उन्होंने ज़ोर से कहा, “ऐ बरगद बाबा, बता, तेरा मालिक कौन? रघुनाथ या बलदेव?”

गाँव वाले हँसने लगे। लेकिन बीरबल गंभीर रहे। अचानक उन्होंने पेड़ की एक टहनी उठाई और बोले, “पेड़ कहता है, वो किसी एक का नहीं। वो गाँव का है।”

बलदेव भड़क गया, “ये क्या मज़ाक है?”

बीरबल ने शांति से कहा, “मज़ाक नहीं। ये पेड़ तुम दोनों की ज़मीन के बीच खड़ा है। इसकी जड़ें दोनों तरफ फैली हैं। तुम दोनों ने इसे सींचा, लेकिन इसकी छाया सबको मिलती है।”

मज़ेदार मोड़

रघुनाथ ने कहा, “तो फिर मालिक कौन?”

बीरबल ने चालाकी से जवाब दिया, “पेड़ ने फैसला किया है। तुम दोनों उसकी देखभाल करोगे। हर साल बारी-बारी से। और उसकी छाया में गाँव की पंचायत बैठेगी। जो मालिक ज़्यादा फल और फूल उगाएगा, उसे गाँव वाले ‘पेड़ का मालिक’ का खिताब देंगे।”

गाँव वालों ने तालियाँ बजाईं। रघुनाथ और बलदेव एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए। दोनों को लगा, “मैं ही जीतूँगा।”

आखिरी हँसी

वापस दरबार में, अकबर ने पूछा, “बीरबल, पेड़ ने सचमुच बोला?”

बीरबल हँसे, “हुज़ूर, पेड़ बोलते नहीं, पर समझदार को इशारा काफी है। मैंने बस गाँव की भलाई सोची। अब दोनों ज़मींदार पेड़ की सेवा करेंगे, और गाँव वाले मज़े लेंगे।”

अकबर ठहाका मारकर हँसे। “बीरबल, तुम सचमुच एक पेड़ से भी ज़्यादा छाँव देते हो!”

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