गाय का दूध (Gaaye Ka Doodh Village Story in Hindi)

गाँव का नाम था मधुपुर। नदियों और खेतों से घिरा यह गाँव अपनी सादगी और मेहनतकश लोगों के लिए जाना जाता था। गाँव के बीचों-बीच एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे चौपाल लगती थी। यहीं पर लोग अपनी सुख-दुख की बातें साझा करते, और यहीं से गाँव की हर छोटी-बड़ी खबर फैलती थी। मधुपुर में रहता था रामू, एक साधारण-सा किसान, जिसके पास दो बीघा खेत, एक झोपड़ी और एक गाय थी। गाय का नाम था गौरी—सफेद रंग, बड़ी-बड़ी आँखें और इतना दूध कि रामू का छोटा-सा परिवार आसानी से पल जाता था।
रामू की ज़िंदगी सीधी-सादी थी। सुबह खेत में काम, दोपहर को गौरी की देखभाल और शाम को अपनी पत्नी सरला और दो बच्चों, मंगल और नन्ही, के साथ समय बिताना। गौरी का दूध न सिर्फ़ परिवार का पेट भरता था, बल्कि गाँव के कुछ गरीब बच्चों को भी मुफ़्त में मिलता था। रामू का मानना था कि गाय का दूध सिर्फ़ पेट नहीं, दिल भी भरता है। लेकिन यह कहानी सिर्फ़ गौरी के दूध की नहीं, बल्कि उस दूध के पीछे छिपे लालच, विश्वास और इंसानियत की है।
एक दिन गाँव में खबर फैली कि शहर से एक साहूकार आया है। उसका नाम था लाला गोविंददास। लाला की नज़र गाँव की हर उस चीज़ पर थी, जिससे मुनाफ़ा कमाया जा सके। वह गाँव-गाँव घूमकर अच्छी नस्ल की गायें खरीदता था, ताकि शहर में दूध का बड़ा कारोबार शुरू कर सके। मधुपुर में उसकी नज़र गौरी पर पड़ी। गौरी का दूध इतना गाढ़ा और मीठा था कि लाला के मुँह में पानी आ गया। उसने रामू के पास जाकर बात शुरू की।
“रामू भाई, तुम्हारी गाय तो कमाल की है! कितना दूध देती है?” लाला ने चिकनी-चुपड़ी बातों से शुरुआत की।
रामू ने हँसते हुए जवाब दिया, “लाला जी, गौरी हमारी माँ जैसी है। उसका दूध हमारे लिए अमृत है। दिन में दो बार, चार-चार सेर दूध देती है।”
लाला की आँखें चमक उठीं। “वाह! इतना दूध! रामू, तुम इसे मुझे बेच क्यों नहीं देते? मैं तुम्हें अच्छी कीमत दूँगा—पाँच सौ रुपये।”
रामू के लिए पाँच सौ रुपये बहुत बड़ी रकम थी। उसने कभी इतने पैसे एक साथ नहीं देखे थे। लेकिन गौरी को बेचने का ख्याल उसे बेचैन कर गया। उसने कहा, “लाला जी, गौरी मेरे लिए सिर्फ़ गाय नहीं, परिवार का हिस्सा है। मैं उसे नहीं बेच सकता।”
लाला ने ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए कहा, “अरे रामू, गाय तो गाय होती है! पैसे से तुम दूसरी गाय खरीद लेना। सोचो, पाँच सौ रुपये से तुम अपने बच्चों का भविष्य बना सकते हो।”
रामू चुप रहा। उसका मन डगमगा रहा था। घर लौटकर उसने सरला से बात की। सरला ने गुस्से में कहा, “रामू, तुम गौरी को बेचोगे तो क्या हमारा घर चलेगा? उसका दूध हमारे बच्चों की ताकत है। लाला के लालच में मत आना।”
रामू ने सरला की बात मान ली, लेकिन गाँव में बात फैल गई। कुछ लोग रामू को बेवकूफ कहने लगे। “अरे, पाँच सौ रुपये ठुकरा दिए! इतने में तो दो गायें आ जाएँगी!” कुछ लोग लाला के पक्ष में बोलने लगे, क्योंकि लाला ने गाँव के कुछ प्रभावशाली लोगों को अपनी जेब में कर लिया था। चौपाल पर ठाकुर साहब, जो गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे, ने रामू को बुलाकर समझाया, “रामू, गौरी को बेच दो। लाला गाँव में दूध की डेरी खोलेगा। इससे गाँव का भला होगा।”
रामू ने विनम्रता से कहा, “ठाकुर साहब, गौरी का दूध मेरे बच्चों का हक है। मैं उसे कैसे बेच दूँ? और लाला का भला तो होगा, पर गाँव का भला कैसे होगा? वह तो सारा मुनाफ़ा शहर ले जाएगा।”
ठाकुर साहब नाराज़ हो गए। उन्होंने रामू को धमकाया, “देख रामू, गाँव में रहना है तो गाँव की भलाई के बारे में सोच। लाला से बैर मत ले।”
रामू चुपचाप घर लौट आया। लेकिन अब गाँव में उसका जीना मुश्किल होने लगा। लाला ने अपने चेले-चपाटों को रामू के पीछे लगा दिया। कोई खेत में पानी रोक देता, तो कोई उसकी फसल को नुकसान पहुँचाता। रामू समझ गया कि यह सब लाला की चाल है। एक रात, जब वह गौरी को चारा डाल रहा था, उसने देखा कि गौरी की आँखों में आँसू हैं। रामू का दिल भर आया। उसने गौरी के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, “तू चिंता मत कर, मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूँगा।”
लेकिन मुसीबतें बढ़ती गईं। एक दिन मंगल बीमार पड़ गया। हकीम ने दवा के साथ दूध और पौष्टिक खाना खाने की सलाह दी। रामू के पास पैसे नहीं थे। उसने गाँव में कुछ लोगों से उधार माँगा, लेकिन सबने मुँह फेर लिया। आखिरकार, वह लाला के पास गया। लाला ने मौके का फायदा उठाया। उसने कहा, “रामू, मैं तुम्हें पैसे दूँगा, लेकिन बदले में गौरी चाहिए।”
रामू का दिल टूट गया। उसने कहा, “लाला जी, गौरी के बिना मेरा परिवार भूखा मर जाएगा। आप कुछ और माँग लीजिए।”
लाला ने ठंडी साँस भरते हुए कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें पाँच सौ रुपये उधार देता हूँ। लेकिन हर महीने ब्याज चुकाना होगा। और अगर पैसे नहीं चुका पाए, तो गौरी मेरी।”
रामू के पास कोई चारा नहीं था। उसने लाला की शर्त मान ली। मंगल की दवा शुरू हुई, और वह धीरे-धीरे ठीक होने लगा। लेकिन रामू पर अब लाला का कर्ज़ बढ़ता जा रहा था। ब्याज इतना था कि रामू की सारी कमाई लाला की जेब में चली जाती थी। गौरी का दूध अब पहले जितना नहीं बिकता था, क्योंकि लाला ने गाँव में सस्ता दूध बेचना शुरू कर दिया था। रामू की हालत दिन-ब-दिन खराब होती गई।
एक दिन गाँव में मेला लगा। मेला देखने के लिए दूर-दूर से लोग आए। मेले में एक साधु भी आया, जिसके बारे में कहा जाता था कि वह लोगों की तकलीफ़ दूर करता है। रामू अपनी परेशानी लेकर साधु के पास गया। उसने सारी बात बताई। साधु ने चुपचाप सुना और फिर कहा, “रामू, गौरी का दूध सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं, पूरे गाँव के लिए अमृत है। लालच ने गाँव को बाँट दिया है। अगर तुम चाहते हो कि गौरी तुम्हारे पास रहे, तो गाँव को एकजुट करो।”
रामू को साधु की बात समझ नहीं आई, लेकिन उसने ठान लिया कि वह गौरी को बचाएगा। उसने गाँव के उन लोगों को इकट्ठा किया, जो लाला की साज़िश से परेशान थे। उसने चौपाल पर सबके सामने अपनी बात रखी। “भाइयो, लाला हमारी मेहनत लूट रहा है। गौरी का दूध मेरे लिए नहीं, हमारे गाँव की ताकत है। अगर हम एकजुट हो जाएँ, तो लाला का लालच हार जाएगा।”
रामू की बात सुनकर गाँव वाले सोच में पड़ गए। कुछ लोग, जो पहले लाला का साथ दे रहे थे, अब रामू की सच्चाई देखकर उसके साथ आ गए। गाँव वालों ने मिलकर फैसला किया कि वे लाला का दूध नहीं खरीदेंगे और रामू की मदद करेंगे। गौरी का दूध फिर से गाँव में बिकने लगा। धीरे-धीरे रामू ने लाला का कर्ज़ चुकाना शुरू किया।
लाला को जब यह बात पता चली, तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने रामू को धमकी दी, लेकिन अब गाँव एकजुट था। ठाकुर साहब ने भी लाला का साथ छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें अपनी इज़्ज़त प्यारी थी। आखिरकार, लाला को गाँव छोड़कर भागना पड़ा।
रामू ने गौरी को गले लगाया और कहा, “तेरा दूध सिर्फ़ दूध नहीं, हमारे गाँव की एकता का प्रतीक है।” गौरी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से रामू को देखा, जैसे वह सब समझ रही हो। मधुपुर फिर से पहले जैसा शांत और खुशहाल गाँव बन गया। गौरी का दूध अब सिर्फ़ रामू के परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे गाँव की ताकत बन गया।
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