मम्मी की चप्पल और पड़ोसी का कुत्ता (Family Majedar Story)

शर्मा परिवार के घर में सुबह का माहौल हमेशा किसी सर्कस से कम नहीं होता था। पापा अखबार में डूबे रहते, भाई रवि अपनी बाइक की चाबी ढूंढता रहता, और छोटी बहन रिया अपने गणित के होमवर्क को कोसती रहती। लेकिन इस सर्कस की रिंगमास्टर थीं मम्मी, यानी सुशीला शर्मा, जिनकी एक चप्पल की आवाज़ पूरे मोहल्ले में भूकंप ला सकती थी। उनकी चप्पल न सिर्फ़ घर की अनुशासन समिति की अध्यक्ष थी, बल्कि पड़ोसियों के लिए भी एक अनकहा खतरा थी। लेकिन इस बार कहानी शुरू हुई मम्मी की उस प्यारी चप्पल और पड़ोसी के कुत्ते, टॉमी, की शरारत से।
बात उस रविवार की है, जब सुबह-सुबह मम्मी ने अपनी चप्पल को गायब पाया। ये कोई साधारण चप्पल नहीं थी, बल्कि उनकी लकी चप्पल थी—लाल रंग की, थोड़ी घिसी हुई, जिसके बारे में मम्मी दावा करती थीं कि ये उनकी “सुपरपावर” है। मम्मी बिना उस चप्पल के घर से बाहर कदम नहीं रखती थीं। उस सुबह जब मम्मी ने चप्पल को अपने बरामदे में नहीं पाया, तो घर में हड़कंप मच गया।
“रवि! रिया! ये चप्पल कहाँ गई?” मम्मी ने गुस्से में चिल्लाते हुए पूछा। रवि ने अपने हेडफोन उतारे और बोला, “मम्मी, मैंने तो नहीं ली। शायद रिया ने अपने बार्बी हाउस में रख दी हो।” रिया ने तुरंत पलटवार किया, “अरे, मेरी बार्बी को चप्पल की क्या ज़रूरत? ये तो भैया ने अपनी बाइक के टायर के नीचे दबा दी होगी!” पापा ने अखबार से मुँह उठाया और बोले, “सुशीला, शांत हो जाओ। नई चप्पल ले लेंगे।” लेकिन मम्मी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। “नई चप्पल? अरे, वो मेरी लकी चप्पल थी! उसने मुझे बुआ जी की बकबक से लेकर सब्जीवाले की चालाकी तक, हर मुसीबत से बचाया है!”
मम्मी ने तुरंत जासूस मोड ऑन किया। उन्होंने बरामदे की छानबीन शुरू की। वहाँ कुछ कुत्ते के पंजों के निशान दिखे। मम्मी ने आँखें सिकोड़ीं और बोलीं, “ये तो टॉमी का काम है!” टॉमी पड़ोसी मेहरा अंकल का पालतू कुत्ता था—एक शरारती पॉमेरेनियन, जो मोहल्ले की हर चीज़ को अपनी संपत्ति समझता था। चाहे मम्मी की करी की खुशबू हो या रवि की नई चप्पल, टॉमी सब पर दावा ठोकता था।
मम्मी ने तुरंत रिया को बुलाया। “जा, मेहरा के घर जा और पूछ कि उनका टॉमी सुबह कहाँ था।” रिया ने मुँह बनाया, “मम्मी, टॉमी मुझे देखकर भौंकता है!” मम्मी ने आँखें तरेरीं, “तो तू भी भौंक दे! जा, अभी!” रिया मायूस चेहरा लेकर मेहरा अंकल के घर गई। वहाँ मेहरा अंकल अपनी कॉफी पीते हुए मिले। रिया ने डरते-डरते पूछा, “अंकल, टॉमी सुबह कहीं गया था?” मेहरा अंकल हँसे, “अरे, टॉमी तो सुबह टहलने गया था। क्यों, क्या हुआ?” रिया ने मम्मी की चप्पल का किस्सा सुनाया। मेहरा अंकल ने माथा पीटा, “हाय राम, फिर तो वो शैतान ज़रूर कुछ न कुछ लेकर भागा होगा।”
रिया जब ये खबर लेकर लौटी, मम्मी ने तुरंत ऑपरेशन “चप्पल रेस्क्यू” शुरू किया। उन्होंने रवि को टॉर्च और रिया को एक पुराना बिस्किट का डब्बा थमाया। “टॉमी को बिस्किट दिखाओ, वो चप्पल छोड़ देगा,” मम्मी ने रणनीति बनाई। पापा ने फिर सलाह दी, “सुशीला, मेहरा जी से बात कर लो। इतना ड्रामा क्यों?” मम्मी ने पापा को घूरा, “तुम अपने अखबार में डूबे रहो। ये मेरी चप्पल का मामला है!”
शर्मा परिवार की टोली मेहरा अंकल के बगीचे में पहुँची। टॉमी वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठा था, और उसके मुँह में मम्मी की लाल चप्पल साफ़ दिख रही थी। मम्मी ने गुस्से में कहा, “टॉमी, छोड़ दे मेरी चप्पल, वरना आज तेरी पूँछ सीधी कर दूँगी!” टॉमी ने मम्मी को देखा, चप्पल को और ज़ोर से दबाया, और भागने लगा। रवि ने पीछा किया, लेकिन टॉमी ने उसे अपनी पूँछ दिखाकर चकमा दे दिया। रिया ने बिस्किट का डब्बा खोलकर आवाज़ की, “टॉमी, इधर आ! बिस्किट ले!” टॉमी रुका, सूँघा, और फिर चप्पल मुँह में दबाए हुए ही बिस्किट की तरफ़ लपका।
इधर मम्मी ने मौका देखा और एक लंबी छड़ी उठाकर टॉमी की तरफ़ बढ़ीं। लेकिन टॉमी इतना तेज़ था कि वो बगीचे के एक कोने से दूसरे कोने तक दौड़ता रहा। रवि ने हँसते हुए कहा, “मम्मी, आप ओलंपिक में दौड़ने वाली थीं क्या?” मम्मी ने रवि को घूरा, लेकिन उनकी साड़ी का पल्लू झाड़ियों में फँस गया। अब तो हँसी का ठिकाना नहीं था। रिया हँसते-हँसते लोटपोट हो रही थी, और रवि ने फोन निकालकर वीडियो बनाना शुरू कर दिया।
तभी मेहरा अंकल बाहर आए और बोले, “अरे सुशीला जी, ये क्या तमाशा है?” मम्मी ने हाँफते हुए कहा, “आपका टॉमी मेरी चप्पल चुराकर भागा है!” मेहरा अंकल ने टॉमी को आवाज़ दी, “टॉमी, इधर आ!” टॉमी ने एक बार मेहरा अंकल को देखा, फिर चप्पल को ज़मीन पर फेंका और बिस्किट के डब्बे की तरफ़ भागा। मम्मी ने तेज़ी से चप्पल उठाई, लेकिन उसकी हालत देखकर उनका मुँह लटक गया। चप्पल का एक हिस्सा चबाया हुआ था, और उसका लाल रंग अब कीचड़ में डूबा था।
मम्मी ने उदास चेहरा बनाया, “मेरी लकी चप्पल…” मेहरा अंकल ने माफी माँगी और बोले, “सुशीला जी, मैं नई चप्पल दिलवा दूँगा।” लेकिन मम्मी ने सिर हिलाया, “नहीं, इस चप्पल की बात ही अलग थी।” घर लौटते वक्त रवि और रिया अभी भी हँस रहे थे। रवि ने मम्मी से मज़ाक किया, “मम्मी, अब टॉमी आपकी चप्पल का ब्रांड एंबेसडर बन गया है!” मम्मी ने रवि को हल्के से चप्पल दिखाई, और सब हँस पड़े।
शाम को पापा ने मम्मी को चुपके से एक नई चप्पल लाकर दी। मम्मी ने पहले तो मुँह बनाया, लेकिन फिर नई चप्पल पहनकर देखा। “हम्म, ये भी ठीक है,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। रिया ने चहककर कहा, “मम्मी, अब इस चप्पल को टॉमी से दूर रखना!” मम्मी ने हँसकर कहा, “इस बार मैं चप्पल को तिजोरी में रखूँगी!”
उस रात शर्मा परिवार ने खाने की मेज़ पर टॉमी और चप्पल की कहानी को बार-बार दोहराया। हर बार हँसी का दौर चलता। मम्मी ने आखिरकार माना कि उनकी लकी चप्पल भले ही चली गई, लेकिन परिवार की हँसी और प्यार उससे कहीं ज़्यादा कीमती है। और टॉमी? वो अगली सुबह फिर शर्मा परिवार के बरामदे में आया, इस बार मम्मी की नई चप्पल को सूँघने। मम्मी ने उसे देखा और हँसते हुए कहा, “टॉमी, इस बार बाज़ी मेरी है!”