एक पेड़ और मालिक दो (Ek Ped Aur Malik Do Akbar Birbal Kahani)

SONE KA KHET AKBAR BIRBAL STORY

एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उनका मूड कुछ चंचल था, और उन्होंने बीरबल को चिढ़ाने की ठानी। अकबर ने ठहाका लगाते हुए कहा, “बीरबल, तुम्हारी बुद्धि की बड़ी तारीफ़ होती है। बताओ, क्या कोई ऐसी खेत हो सकती है जो सोना उगाए? अगर है, तो मुझे दिखाओ!”

दरबार में खुसर-पुसर शुरू हो गई। सोने की खेत? ये तो नामुमकिन था! दरबारी सोच रहे थे कि इस बार बीरबल की खैर नहीं। लेकिन बीरबल ने अपनी पगड़ी ठीक की, आँखों में चमक लाते हुए कहा, “हुजूर, ऐसी खेत न सिर्फ़ हो सकती है, बल्कि मैं आपको दिखा भी सकता हूँ। बस, मुझे चार दिन का समय दीजिए।”

अकबर को चुनौती पसंद थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, बीरबल। चार दिन बाद अगर तुमने सोने की खेत न दिखाई, तो मैं तुम्हें सजा दूँगा—शायद तुम्हें अपनी मूँछें मुंडवानी पड़ें!” दरबार हँसी से गूँज उठा।

बीरबल घर लौटे और सोच में डूब गए। सोने की खेत तो कोई जादुई चीज़ नहीं थी, लेकिन अकबर का सवाल छोड़ना भी ठीक नहीं। उनकी नज़र अपनी पुरानी किताबों पर पड़ी, और एक पुरानी कहावत याद आई: “मेहनत का फल सोने से कम नहीं।” बस, यही थी उनकी चाल!

अगले दिन, बीरबल गाँव के एक मेहनती किसान, श्यामू, के पास गए। श्यामू की खेत में गेहूँ की फसल लहलहा रही थी। बीरबल ने श्यामू को अपनी योजना बताई। पहले तो श्यामू घबराया, बोला, “बीरबल जी, बादशाह के सामने झूठ बोलना? मेरी तो साँस अटक जाएगी!” लेकिन बीरबल ने उसे समझाया, “श्यामू, ये झूठ नहीं, सच की एक नई तस्वीर है। तुम बस मेरे साथ चलो।” श्यामू हँसते हुए मान गया।

बीरबल ने श्यामू के साथ मिलकर खेत को और खूबसूरत बनाया। उन्होंने खेत के चारों ओर रंग-बिरंगे फूल लगवाए और एक छोटा-सा तालाब बनवाया, जिसमें सूरज की किरणें चमकती थीं। बीरबल ने गाँव के बच्चों को भी शामिल किया, जो खेत के आसपास गीत गाते और नाचते। योजना थी कि खेत सिर्फ़ देखने में ही नहीं, बल्कि दिल से भी सोने-सी लगे।

चार दिन बाद, अकबर पूरे दरबार के साथ खेत पर पहुँचे। गेहूँ की बालियाँ हवा में झूम रही थीं, और सूरज की रोशनी में वो सोने-सी चमक रही थीं। बच्चे गीत गा रहे थे, और तालाब में पानी जगमगा रहा था। अकबर हैरान रह गए। “बीरबल, ये क्या तमाशा है? मैंने सोने की खेत माँगी थी, ये तो गेहूँ है!”

बीरबल ने शांति से जवाब दिया, “हुजूर, ये गेहूँ ही सोना है। देखिए, श्यामू ने इस खेत में अपनी मेहनत, पसीना और सपने बोए हैं। ये गेहूँ बिकेगा, तो उसके बच्चों को किताबें मिलेंगी, घर में चूल्हा जलेगा। क्या ये सोने से कम है? और अगर चमक चाहिए, तो देखिए, सूरज की किरणें इस खेत को कैसे सोने-सा बना रही हैं!”

अकबर अभी भी शरारत के मूड में थे। “बीरबल, ये तो बातों का जाल है! मैं असली सोना चाहता हूँ, चमकता हुआ!”

बीरबल ने हँसते हुए कहा, “हुजूर, एक छोटा-सा इम्तिहान और लीजिए।” उन्होंने श्यामू को इशारा किया। श्यामू ने एक थैला लाकर अकबर के सामने खोला। उसमें गेहूँ के दाने थे, लेकिन बीच में एक छोटी-सी सोने की मूर्ति चमक रही थी। बीरबल बोले, “हुजूर, ये मूर्ति श्यामू ने अपनी कमाई से बनवाई थी, अपनी माँ की याद में। उसने इसे खेत में छिपाया था, ताकि आपको लगे कि ये खेत सचमुच सोना उगाती है। लेकिन असली सोना तो उसकी मेहनत है, ये मूर्ति तो बस एक निशानी है।”

अकबर की आँखें चमक उठीं। वे जोर से हँसे और बोले, “बीरबल, तुमने न सिर्फ़ मेरी चुनौती जीती, बल्कि मुझे मेहनत की कीमत भी सिखा दी। तुम्हारी बुद्धि का कोई जवाब नहीं!” उन्होंने श्यामू को ढेर सारा इनाम दिया और खेत को “सोने की खेत” का नाम दे दिया।

गाँव वाले उस दिन से अपनी मेहनत को सोना मानने लगे, और बीरबल की चतुराई की कहानी दूर-दूर तक फैल गई।

नैतिक: सच्ची मेहनत और बुद्धिमानी से हर असंभव को संभव बनाया जा सकता है।

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