अकबर की मूँछ

एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उनकी शानदार मूँछें, जो उनकी शाही शख्सियत का हिस्सा थीं, उस दिन कुछ खास ध्यान खींच रही थीं। अकबर ने मजाक में दरबारियों से पूछा, “बताओ, हमारी मूँछें कितनी कीमती हैं?”
कुछ दरबारी चापलूसी में जुट गए। एक ने कहा, “हुजूर, आपकी मूँछें तो लाखों सोने के सिक्कों से भी ज्यादा कीमती हैं!” दूसरे ने कहा, “नहीं, ये तो सारी दुनिया के खजाने से भी अनमोल हैं!” अकबर हँसे, लेकिन मन ही मन सोचने लगे कि ये सब तो बस तारीफ कर रहे हैं। फिर उनकी नजर बीरबल पर पड़ी, जो चुपचाप मुस्कुरा रहे थे।
अकबर ने पूछा, “बीरबल, तुम क्या कहते हो? हमारी मूँछों की कीमत क्या है?”
बीरबल ने शांत स्वर में जवाब दिया, “हुजूर, आपकी मूँछों की कीमत पाँच रुपये है।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। अकबर का चेहरा तमतमाया। “बीरबल! ये क्या मजाक है? पाँच रुपये? हमारी मूँछें इतनी सस्ती?”
बीरबल ने विनम्रता से कहा, “हुजूर, गुस्सा न करें। मैं बताता हूँ। अगर आप अपनी मूँछें कटवा दें और बाजार में बेचें, तो कोई इन्हें पाँच रुपये से ज्यादा में नहीं खरीदेगा। मूँछें कीमती नहीं होतीं, कीमती होता है वो शख्स जिसके चेहरे पर वो हैं। आपकी मूँछें इसलिए अनमोल हैं, क्योंकि वो बादशाह अकबर की हैं।”
अकबर की नाराजगी पल में हँसी में बदल गई। वो ठहाका मारकर हँसे और बोले, “वाह बीरबल! तुमने फिर साबित कर दिया कि तुम्हारी बुद्धि का कोई जवाब नहीं।”
दरबारियों ने भी बीरबल की तारीफ की। उस दिन एक बार फिर बीरबल ने अपनी हाजिरजवाबी से सबका दिल जीत लिया।
नैतिक: सच्ची कीमत बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि व्यक्ति की बुद्धि और शख्सियत में होती है।
Tenali Rama Stories in Hindi





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