संपत्ति का बंटवारा (Tenali Rama ki Soojhbujh)

विजयनगर साम्राज्य में एक बार महाराज कृष्णदेवराय के दरबार में तेनाली रामा की चतुराई की खूब चर्चा थी। एक दिन, एक अनोखा मामला दरबार में आया। शहर के दो भाई, रमेश और सुरेश, अपनी पिता की संपत्ति के बंटवारे को लेकर झगड़ रहे थे। पिता ने मरने से पहले अपनी वसीयत में लिखा था कि उनकी संपत्ति—जिसमें एक बड़ा मकान, पाँच एकड़ खेत, और सौ सोने के सिक्के थे—को दोनों बेटों में बराबर बाँटा जाए। लेकिन दोनों भाई इस बात पर सहमत नहीं थे कि “बराबर” का मतलब क्या है।
रमेश, जो बड़ा भाई था, बोला, “महाराज, मैं बड़ा हूँ, इसलिए मुझे मकान और खेत चाहिए। सुरेश को सिक्के ले लेने चाहिए।”
सुरेश ने तुरंत विरोध किया, “यह कहाँ का न्याय है? मकान और खेत की कीमत सिक्कों से कहीं ज्यादा है! मुझे भी मकान और खेत में हिस्सा चाहिए।”
महाराज ने दोनों की बात सुनी और सोच में पड़ गए। बंटवारा बराबर कैसे हो? उन्होंने तेनाली रामा की ओर देखा और कहा, “तेनाली, तुम्हीं बताओ, इस समस्या का हल क्या है?”
तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, मुझे दोनों भाइयों से कुछ सवाल पूछने की इजाजत दीजिए।”
महाराज ने सहमति दी। तेनाली ने रमेश से पूछा, “तुम्हें मकान और खेत क्यों चाहिए?”
रमेश ने जवाब दिया, “मकान में मेरा परिवार रहेगा, और खेत से मैं अनाज उगाऊँगा।”
फिर तेनाली ने सुरेश से पूछा, “तुम क्या चाहते हो?”
सुरेश बोला, “मैं भी मकान में हिस्सा चाहता हूँ ताकि मेरा परिवार भी वहाँ रह सके। और खेत से मुझे भी अनाज चाहिए।”
तेनाली ने कुछ देर सोचा और बोला, “महाराज, मैं एक तरीका सुझाता हूँ। लेकिन इसके लिए दोनों भाइयों को मेरे साथ एक छोटा खेल खेलना होगा।”
महाराज और दरबारी उत्सुक हो गए। तेनाली ने कहा, “मैं संपत्ति को तीन हिस्सों—मकान, खेत, और सिक्के—के रूप में देख रहा हूँ। लेकिन बंटवारा ऐसा होगा कि दोनों को बराबर मूल्य मिले। मैं एक पहेली दूँगा। अगर दोनों भाई इसका जवाब दे सकें, तो बंटवारा हो जाएगा।”
तेनाली ने एक कागज पर कुछ लिखा और दोनों भाइयों को दिखाया। उसमें लिखा था: “संपत्ति का मूल्य 300 सोने के सिक्कों के बराबर है। मकान की कीमत 150 सिक्के, खेत की कीमत 100 सिक्के, और सिक्के तो 50 सिक्कों के हैं। बताओ, इसे कैसे बाँटोगे कि दोनों को 150 सिक्कों के बराबर हिस्सा मिले?”
रमेश और सुरेश सोच में पड़ गए। रमेश बोला, “मुझे मकान दो, जो 150 सिक्कों का है। सुरेश को खेत और सिक्के ले लेने चाहिए, जो 100 + 50 = 150 सिक्के हैं।”
सुरेश ने तुरंत कहा, “लेकिन मकान में रहना ज्यादा सुविधाजनक है। मैं मकान लूँगा, तुम खेत और सिक्के लो।”
तेनाली हँस पड़ा और बोला, “महाराज, देखिए, दोनों एक ही जवाब पर आ गए, लेकिन अपनी-अपनी पसंद बदल रहे हैं। मेरा सुझाव है कि मकान को दो हिस्सों में बाँट दिया जाए, ताकि दोनों भाई उसमें अपने परिवार के साथ रह सकें। खेत को भी बराबर बाँट दें, ताकि दोनों को अनाज मिले। और सिक्कों को भी आधा-आधा कर दें। इस तरह, दोनों को न सिर्फ बराबर मूल्य मिलेगा, बल्कि दोनों की जरूरतें भी पूरी होंगी।”
महाराज ने पूछा, “लेकिन तेनाली, अगर मकान और खेत बाँटने से उनकी कीमत कम हुई तो?”
तेनाली ने जवाब दिया, “महाराज, संपत्ति का असली मूल्य उससे मिलने वाली खुशी में है। अगर दोनों भाई साथ रहें और मेहनत करें, तो उनकी संपत्ति का मूल्य और बढ़ेगा। और अगर वे झगड़ते रहे, तो चाहे कितनी भी संपत्ति हो, वह बेकार है।”
महाराज ने तेनाली की बात से सहमति जताई और दोनों भाइयों को समझाया कि वे मिलजुल कर रहें। रमेश और सुरेश ने तेनाली का सुझाव मान लिया। मकान को दो हिस्सों में बाँटा गया, खेत आधा-आधा हुआ, और सिक्के भी बराबर बँट गए। दोनों भाई खुशी-खुशी अपने हिस्से में काम करने लगे।
दरबार में तेनाली की चतुराई की फिर से तारीफ हुई। महाराज ने हँसते हुए कहा, “तेनाली, तुमने न सिर्फ संपत्ति बाँटी, बल्कि भाइयों के दिल भी जोड़ दिए!”
नैतिक शिक्षा: संपत्ति का बंटवारा तभी सार्थक है, जब वह आपसी प्रेम और समझदारी को बनाए रखे।