खूंखार घोड़ा (Tenali Rama Story in Hindi)

विजयनगर साम्राज्य में एक बार की बात है, महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक विचित्र समस्या ने जन्म लिया। पड़ोसी राज्य से एक राजदूत आया और उसने महाराज को एक उपहार भेंट किया—एक विशाल, काला घोड़ा, जिसके नथुने आग की तरह भड़कते थे और आँखें बिजली की तरह चमकती थीं। राजदूत ने गर्व से कहा, “यह घोड़ा विश्व का सबसे तेज और शक्तिशाली है, लेकिन इसे केवल सबसे नन्हा सवार ही नियंत्रित कर सकता है। यदि आप इसे काबू कर लें, तो हमारा राज्य आपकी शक्ति को मानेगा।”
महाराज ने घोड़े को देखा और मन ही मन सोचा कि यह एक चुनौती है। उन्होंने अपने सबसे बहादुर सैनिकों को बुलाया। एक-एक करके सैनिकों ने घोड़े पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन घोड़ा इतना उग्र था कि वह हर किसी को जमीन पर पटक देता। दरबार में हँसी और चिंता का माहौल बन गया। राजगुरु ने सुझाव दिया, “शायद हमें इस घोड़े को जंगल में छोड़ देना चाहिए। यह हमारे लिए खतरा है।”
तेनाली रामा, जो हमेशा की तरह चुपचाप कोने में खड़ा सब सुन रहा था, मुस्कुराया और बोला, “महाराज, मुझे एक मौका दीजिए। मैं इस खूंखार घोड़े को न केवल काबू करूँगा, बल्कि इसे आपके लिए उपयोगी भी बनाऊँगा।”
महाराज को तेनाली पर भरोसा था, पर इस बार वे संशय में पड़ गए। फिर भी, उन्होंने अनुमति दे दी। तेनाली ने अगले दिन सुबह का समय माँगा। उस रात, तेनाली ने घोड़े के अस्तबल में कई घंटे बिताए। किसी को नहीं पता था कि वह क्या कर रहा था। कुछ दरबारियों ने तो यह भी कयास लगाया कि तेनाली डर गया है और भागने की योजना बना रहा है।
अगली सुबह, दरबार के सामने तेनाली एक छोटे से लड़के के साथ आया, जो मुश्किल से दस साल का होगा। लड़का कद में इतना छोटा था कि घोड़े की रकाब तक उसकी टाँगें नहीं पहुँचती थीं। दरबारी हँसने लगे। “तेनाली, क्या तुम पागल हो गए? यह बच्चा उस राक्षसी घोड़े को कैसे संभालेगा?” राजगुरु ने तंज कसा।
तेनाली ने शांति से जवाब दिया, “राजदूत ने कहा था कि घोड़े को सबसे नन्हा सवार ही काबू कर सकता है। मैंने बस उनकी बात मानी।” फिर उसने लड़के को घोड़े के पास ले जाकर कुछ फुसफुसाया। लड़का बिना डरे घोड़े पर चढ़ गया। आश्चर्य की बात थी कि घोड़ा शांत रहा। लड़के ने हल्के से लगाम खींची, और घोड़ा धीरे-धीरे चलने लगा। कुछ ही देर में, वह घोड़ा पूरे मैदान में लड़के के इशारे पर नाचने लगा, मानो वह कोई पालतू जानवर हो।
दरबार में सन्नाटा छा गया। महाराज ने उत्साह से पूछा, “तेनाली, यह चमत्कार कैसे हुआ?”
तेनाली ने मुस्कुराते हुए बताया, “महाराज, यह घोड़ा खूंखार नहीं था। वह बस भयभीत था। मैंने रात को इसके साथ समय बिताया और पाया कि यह ऊँचे स्वर और अचानक हलचल से डरता है। मैंने इस लड़के को चुना क्योंकि उसका स्वर कोमल है और वह धीरे-धीरे चलता है। मैंने उसे सिखाया कि घोड़े से प्यार से पेश आए, न कि डराकर। इस तरह, घोड़े का डर खत्म हो गया, और वह आज्ञाकारी बन गया।”
महाराज प्रभावित हुए। उन्होंने तेनाली की प्रशंसा की और पड़ोसी राज्य के राजदूत को संदेश भेजा कि विजयनगर ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली है। घोड़ा अब राजा की सेना का हिस्सा बन गया, और वह छोटा लड़का महाराज का एक विश्वसनीय सवार बना।
सीख: डर को ताकत से नहीं, समझ और धैर्य से जीता जा सकता है।