दादी की दवा (Dadi ki dawa Family Story)

tenali rama kahani

विजयनगर साम्राज्य में राजा कृष्णदेव राय का शासन था। उनका दरबार विद्वानों, कवियों और बुद्धिमानों से भरा था, जिनमें तेनाली राम अपनी चतुराई के लिए सबसे प्रसिद्ध थे। एक दिन दरबार में एक विचित्र घटना घटी। राजमहल के मंदिर में रखी भगवान विष्णु की सोने की मूर्ति रहस्यमय तरीके से गायब हो गई। मूर्ति न केवल अनमोल थी, बल्कि राजा की आस्था का प्रतीक भी थी।

राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों और सैनिकों को मूर्ति की खोज में लगा दिया। पूरे महल की तलाशी ली गई, लेकिन मूर्ति का कोई सुराग नहीं मिला। दरबार में अफवाहें फैलने लगीं कि शायद कोई जादू-टोना हुआ हो। राजा परेशान हो उठे। उन्होंने तेनाली राम को बुलाकर कहा, “तेनाली, तुम्हारी बुद्धि पर मुझे भरोसा है। इस रहस्य को सुलझाओ, नहीं तो जनता में हमारी बदनामी होगी।”

तेनाली ने शांत मन से राजा को आश्वासन दिया और जांच शुरू की। सबसे पहले वे मंदिर गए। वहाँ पुजारी कांपते हुए खड़ा था। तेनाली ने उससे पूछा, “पुजारी जी, मूर्ति आखिरी बार कब देखी गई थी?” पुजारी ने बताया कि रात को पूजा के बाद मूर्ति अपने स्थान पर थी, लेकिन सुबह वह गायब थी।

तेनाली ने मंदिर का बारीकी से निरीक्षण किया। उन्हें मूर्ति के आसपास कुछ मिट्टी के निशान दिखे, जो बाहर की ओर जा रहे थे। उन्होंने सैनिकों से पूछा कि रात को मंदिर की रखवाली कौन कर रहा था। सैनिकों ने बताया कि रात को कोई संदिग्ध व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। तेनाली मुस्कुराए और बोले, “मूर्ति अपने आप तो उड़ी नहीं होगी। कोई चालाकी जरूर हुई है।”

तेनाली ने राजा से अनुमति लेकर एक योजना बनाई। उन्होंने घोषणा करवाई कि मूर्ति चुराने वाला कोई भी हो, उसे तीन दिन के अंदर मूर्ति लौटाने का मौका दिया जाता है, वरना भयंकर सजा मिलेगी। साथ ही, तेनाली ने मंदिर के बाहर एक बड़ा सा घड़ा रखवाया और पूरे नगर में यह बात फैला दी कि यह घड़ा जादुई है और चोर की सच्चाई उजागर कर देगा।

लोग घड़े को देखने के लिए उमड़ पड़े। तेनाली ने घड़े के पास एक सैनिक को तैनात किया और उसे हर आने-जाने वाले पर नजर रखने को कहा। दूसरे दिन रात को, एक व्यक्ति चुपके से मंदिर की ओर आता दिखा। वह घड़े के पास रुका और डरते-डरते उसने घड़े में झाँका। तेनाली, जो छिपकर सब देख रहे थे, ने सैनिकों को इशारा किया। उस व्यक्ति को पकड़ लिया गया।

पूछताछ में वह टूट गया और कबूल किया कि वह मंदिर का एक सहायक था, जिसने लालच में आकर मूर्ति चुराई थी। उसने मूर्ति को अपने घर के तहखाने में छिपा रखा था। तेनाली ने सैनिकों को भेजकर मूर्ति वापस मंगवाई।

जब मूर्ति राजा के सामने लाई गई, तो उन्होंने तेनाली की प्रशंसा की। राजा ने पूछा, “तेनाली, तुमने यह कैसे किया?” तेनाली हँसकर बोले, “महाराज, चोर का मन हमेशा डरता है। मैंने घड़े का डर दिखाकर उसे बाहर निकाला। असली जादू मेरी चाल थी।”

दरबार में ठहाके गूँजे। मूर्ति अपने स्थान पर वापस स्थापित हुई, और तेनाली की बुद्धिमानी की एक और कहानी विजयनगर में फैल गई।

नैतिक: लालच और डर इंसान को गलत रास्ते पर ले जाते हैं, लेकिन बुद्धि से हर रहस्य सुलझाया जा सकता है।

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