दादी की दवा (Dadi ki dawa Family Story)

सर्दियों की एक ठिठुरती सुबह थी। शर्मा परिवार का घर हमेशा की तरह हंसी-मजाक और छोटी-मोटी मुसीबतों का अड्डा बना हुआ था। घर में चार पीढ़ियां एक साथ रहती थीं—दादी, मम्मी-पापा, उनके दो बच्चे राहुल और रिया, और एक पालतू बिल्ली मिनी, जो हर गड़बड़ का हिस्सा बनने को तैयार रहती थी। आज की कहानी की शुरुआत होती है दादी की दवा से, जो किसी न किसी तरह पूरे परिवार को हंसी का पात्र बना देती थी।

दादी, जिनकी उम्र 78 साल थी, लेकिन जोश 18 साल के जवान जैसा। उनकी आंखों में चमक थी, और जुबान ऐसी कि पापा तक उनके सामने हकलाने लगते। दादी की एक खास आदत थी—हर चीज को अपनी पुरानी धुन में ढालना। उनकी दवा का डिब्बा हमेशा किचन में, मसाले के डिब्बों के बीच पड़ा रहता था। मम्मी बार-बार शिकायत करतीं, “दादी, आपकी दवा को किचन में क्यों रखती हैं? कोई दिन गलती से गोली की जगह मिर्च पाउडर खा लेगा!” दादी हंसते हुए जवाब देतीं, “अरे, मिर्च खाने से खून गर्म रहेगा, गोली तो बस नींद लाती है।”

उस सुबह दादी ने अपनी दवा का डिब्बा ढूंढना शुरू किया। राहुल और रिया स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे, मम्मी किचन में पराठे बना रही थीं, और पापा अखबार में सिर घुसाए चाय की चुस्कियां ले रहे थे। दादी ने आवाज लगाई, “सुनीता! मेरी दवा का डिब्बा कहां गया? नीली वाली गोली, जो मेरी कमर को आराम देती है।” मम्मी ने गैस का आंच धीमा किया और बोलीं, “दादी, वही तो मैं कहती हूं, हर बार किचन में मत रखा करो। देखो, शायद जीरे के डब्बे के पास हो।”

दादी ने किचन में कदम रखा और मसाले के डिब्बों को टटोलना शुरू किया। अब दादी की नजर थोड़ी कमजोर थी, और चश्मा हमेशा उनके सिर पर टिका रहता था, आंखों पर नहीं। उन्होंने एक डब्बा उठाया, जो दिखने में उनकी दवा के डिब्बे जैसा था। लेकिन ये डब्बा नहीं, नमक का पैकेट था, जो मम्मी ने पिछले हफ्ते किराने की दुकान से खरीदा था। दादी ने पैकेट को ध्यान से देखा, फिर मुस्कुराईं और बोलीं, “हां, यही है। नीली गोली इसी में होगी।”

इधर राहुल और रिया ने सुना तो हंसते हुए किचन में दौड़ पड़े। राहुल ने मम्मी से चुपके से कहा, “मम्मी, दादी नमक को दवा समझ रही हैं। कुछ बोलो ना!” मम्मी ने आंखें तरेरीं, “चुप रहो, अगर दादी को पता चला कि मैंने उनका डब्बा गलती से अटारी में रख दिया, तो आज मेरा पराठा बनने से रहा।” रिया ने फुसफुसाया, “तो अब क्या करें? दादी नमक खा लेंगी?” मम्मी ने हंसते हुए कहा, “अरे, दादी इतनी आसानी से नमक नहीं खाएंगी। चलो, देखते हैं ये ड्रामा कहां जाता है।”

दादी ने नमक का पैकेट खोला और उसमें से एक चम्मच नमक निकाला। वो उसे गौर से देखने लगीं। राहुल ने तपाक से पूछा, “दादी, ये तो नमक है! आप इसे दवा की तरह कैसे खाएंगी?” दादी ने आंख मटकाई और बोलीं, “तुझे क्या पता, बेटा? पुराने जमाने में नमक ही दवा था। इससे पेट साफ होता है, कमर मजबूत होती है।” ये सुनकर रिया की हंसी छूट गई, और उसने टेबल पर लोटपोट होकर हंसना शुरू कर दिया।

इधर पापा को कुछ गड़बड़ लगी। वो अखबार छोड़कर किचन में आए और बोले, “क्या हो रहा है? दादी, आप ये क्या करने जा रही हैं?” दादी ने गर्व से जवाब दिया, “अरे, मैं अपनी दवा खा रही हूं। ये नीली गोली का पाउडर है।” पापा ने पैकेट देखा और जोर से चिल्लाए, “अरे, ये तो नमक है! दादी, आप नमक खाकर क्या हॉस्पिटल पहुंचना चाहती हैं?” दादी ने एकदम गुस्से में कहा, “तू मुझे मत सिखा, मैंने तेरे दादाजी को भी नमक से ठीक किया था।”

अब घर में हंगामा मच गया। मम्मी ने आखिरकार सच उगल दिया, “दादी, आपका दवा का डब्बा मैंने गलती से अटारी में रख दिया। ये नमक है, इसे मत खाइए।” दादी ने मम्मी को घूरा और बोलीं, “अच्छा, तो तूने मेरा डब्बा छुपाया? अब मैं क्या करूं? मेरी कमर दुख रही है!” राहुल ने मौके का फायदा उठाया और बोला, “दादी, क्यों न हम सब अटारी में जाकर आपकी दवा ढूंढें? वो तो मजेदार खजाना ढूंढने जैसा होगा।”

बस, फिर क्या था? पूरा परिवार अटारी की ओर दौड़ा। अटारी शर्मा परिवार का वो कोना थी, जहां पुरानी चीजों का ढेर था—टूटा पंखा, दादाजी की पुरानी साइकिल, मम्मी की शादी का लहंगा, और न जाने क्या-क्या। दादी ने अटारी में कदम रखते ही कहा, “ये तो मेरे जमाने का खजाना है। सुनीता, तेरा लहंगा अब भी यहीं पड़ा है?” मम्मी लाल हो गईं और बोलीं, “दादी, लहंगे की बात छोड़ो, दवा ढूंढो।”

राहुल और रिया ने पुराने सामान में गोता लगाना शुरू किया। राहुल को एक पुरानी डायरी मिली, जिसमें दादाजी की शायरी लिखी थी। उसने जोर-जोर से पढ़ना शुरू किया, “ओ मेरी चांदनी, तू है मेरी जिंदगानी!” दादी हंसते हुए बोलीं, “अरे, ये तो तेरे दादाजी मेरे लिए लिखते थे।” रिया को एक पुराना रेडियो मिला, जो बजने की बजाय खटखट की आवाज कर रहा था। मम्मी ने एक कोने में दवा का डब्बा देखा और चिल्लाई, “मिल गया! दादी, ये लो आपकी नीली गोली।”

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जब दादी ने डब्बा खोला, तो उसमें गोली की जगह कुछ पुराने सिक्के निकले। दादी ने हैरानी से कहा, “ये क्या? मेरी दवा के साथ सिक्के?” पापा ने हंसते हुए कहा, “लगता है दादी, आपने अपनी दवा को खजाने में बदल दिया।” तभी मिनी बिल्ली अटारी में कूदी और सिक्कों पर लोटने लगी। रिया ने हंसते हुए कहा, “दादी, मिनी को तो आपका खजाना पसंद आ गया।”

आखिरकार मम्मी ने याद किया कि असली दवा का डब्बा किचन में ही था, बस हल्दी के डब्बे के पीछे छुपा हुआ। सब वापस किचन में पहुंचे, और दादी को उनकी नीली गोली मिली। दादी ने गोली खाई और बोलीं, “अरे, नमक भी बुरा नहीं था, लेकिन ये गोली ही मेरी कमर की दोस्त है।” राहुल ने चुटकी ली, “दादी, अगली बार हम नमक को ही दवा बना देंगे।”

उस दिन शर्मा परिवार ने खूब हंसी-मजाक किया। मम्मी ने पराठे बनाए, पापा ने दादाजी की शायरी पढ़ी, और दादी ने अपनी पुरानी कहानियां सुनाईं। अटारी की सैर ने सबको एक नया खजाना दिया—हंसी और साथ में बिताए पल। और हां, मिनी बिल्ली? वो अब भी उन सिक्कों को अपना खजाना समझकर अटारी में खेल रही थी।

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