चाचा की चिट्ठी और गलत पता (Family Funny Story in Hindi)

“चाचा की चिट्ठी और गलत पता – एक मजेदार पारिवारिक कहानी (funny family story) जिसमें चाचा की गलत चिट्ठी से शुरू होता है हँसी का बवाल। पढ़ें ये हल्की-फुल्की कहानी और लें परिवार के साथ मस्ती का मज़ा!”
चाचा की चिट्ठी और गलत पता (Family Funny Story in Hindi)
हमारे मोहल्ले में अगर कोई सबसे मशहूर शख्स था, तो वो थे हमारे चाचा जी, यानी पापा के छोटे भाई, रमेश चाचा। चाचा जी की खासियत थी कि वो हर काम को अपने तरीके से करते थे, और उसमें हमेशा कुछ न कुछ गड़बड़ हो ही जाती थी। लेकिन इस बार जो हुआ, वो हद ही पार कर गया। बात शुरू हुई एक चिट्ठी से, जो चाचा जी ने हमें भेजी थी।
एक दिन सुबह-सुबह, जब मम्मी रसोई में पराठे बना रही थीं और पापा अखबार में सिर घुसाए बैठे थे, डाकिया आया। उसने एक लिफाफा थमाया और बोला, “रमेश जी की चिट्ठी है।” पापा ने लिफाफा लिया, उसे उलट-पुलट कर देखा और मम्मी से बोले, “लगता है रमेश फिर कोई नया बिजनेस शुरू करने वाला है। पिछले महीने तो मुर्गी फार्म खोलने की बात कर रहा था।” मम्मी ने पराठे पर घी लगाते हुए कहा, “हाँ, और उससे पहले गाय का दूध बेचने का प्लान था। पता नहीं इस बार क्या तमाशा करने वाले हैं।”
पापा ने चिट्ठी खोली और पढ़ना शुरू किया। चाचा जी ने लिखा था, “भैया-भाभी, मैं एक बड़ा सरप्राइज लेकर आपके पास आ रहा हूँ। अगले हफ्ते तक पहुँच जाऊँगा। मेरे लिए एक कमरा तैयार रखना। और हाँ, मेरे साथ मेरा नया पार्टनर भी आएगा। उसका भी ख्याल रखना।” पापा ने चिट्ठी मम्मी को दी और बोले, “लगता है इस बार कोई बड़ा धमाका होने वाला है।” मम्मी ने चिट्ठी पढ़ी और हँसते हुए बोलीं, “पार्टनर? कहीं शादी तो नहीं कर ली इसने?”
अब घर में हलचल मच गई। मैं और मेरी छोटी बहन रिया तो खुशी से उछल पड़े। चाचा जी जब भी आते थे, हमारे लिए ढेर सारी मिठाइयाँ और मजेदार कहानियाँ लाते थे। लेकिन इस बार पार्टनर की बात ने सबको उत्सुक कर दिया था। मम्मी ने तुरंत घर की साफ-सफाई शुरू कर दी। “अगर रमेश की पत्नी आ रही है, तो घर को ठीक करना पड़ेगा,” मम्मी ने कहा। पापा ने हँसते हुए टोका, “अरे, अभी तो पता भी नहीं कि पार्टनर कौन है। कहीं उसका कोई बिजनेस फ्रेंड न हो।”
अगले हफ्ते का इंतज़ार शुरू हो गया। हम सब तरह-तरह के कयास लगा रहे थे। रिया को यकीन था कि चाचा जी कोई पालतू जानवर ला रहे हैं, शायद कोई कुत्ता या बिल्ली। मैंने कहा, “नहीं, चाचा जी का स्टाइल तो कुछ बड़ा है। शायद कोई विदेशी दोस्त हो।” मम्मी और पापा बस हँसते रहे।
आखिरकार वो दिन आ गया। सुबह दस बजे दरवाजे की घंटी बजी। मैं दौड़कर दरवाजा खोलने गया। सामने चाचा जी खड़े थे, अपने पुराने नीले सूटकेस के साथ। लेकिन उनके साथ कोई नहीं था। मैंने पूछा, “चाचा जी, आपका पार्टनर कहाँ है?” चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, वो तो अभी आ रहा है। पहले मुझे तो अंदर आने दो।” पापा और मम्मी भी बाहर आए। सबने चाचा जी को गले लगाया और अंदर बिठाया।
चाय का दौर शुरू हुआ। मम्मी ने पूछा, “रमेश, ये पार्टनर कौन है? कुछ तो बताओ।” चाचा जी ने चाय की चुस्की ली और बोले, “भाभी, वो मेरा नया बिजनेस पार्टनर है। हमने मिलकर एक नया धंधा शुरू किया है। जल्दी ही वो यहाँ पहुँच जाएगा।” पापा ने भौंहें चढ़ाईं और पूछा, “कैसा धंधा? फिर कोई मुर्गी-गाय वाला प्लान तो नहीं?” चाचा जी हँस पड़े, “नहीं भैया, इस बार पक्का काम है। हमने एक ट्रक लिया है। ढेर सारा सामान लाने वाले हैं।”
तभी बाहर से जोर की आवाज़ आई, जैसे कोई बड़ा वाहन रुका हो। चाचा जी उठे और बोले, “लो, मेरा पार्टनर आ गया।” हम सब बाहर भागे। गली में एक पुराना, खटारा ट्रक खड़ा था। ड्राइवर की सीट से एक मोटा-ताजा आदमी उतरा, जिसके हाथ में एक बड़ा-सा रजिस्टर था। चाचा जी ने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये हैं मेरे पार्टनर, बंटी भाई।” बंटी भाई ने हाथ जोड़कर सबको नमस्ते किया और बोले, “चाचा जी ने कहा था कि आप लोग बहुत अच्छे हैं, तो सोचा पहले आपसे मिल लूँ।”
पापा ने हैरानी से पूछा, “ट्रक में क्या है?” चाचा जी ने गर्व से सीना चौड़ा किया और बोला, “भैया, हमने ढेर सारी मछलियाँ खरीदी हैं। ताज़ा मछलियाँ, सीधे गाँव से। अब हम इन्हें शहर में बेचेंगे।” मम्मी का मुँह खुला रह गया। “मछलियाँ? घर में?” चाचा जी ने हँसते हुए कहा, “अरे भाभी, घर में नहीं, ट्रक में हैं। बस आज रात यहाँ रुक जाएँगे, कल सुबह बेचने निकल जाएँगे।”
लेकिन कहानी में ट्विस्ट अभी बाकी था। बंटी भाई ने रजिस्टर खोला और बोले, “चाचा जी, एक दिक्कत हो गई है।” चाचा जी ने घबराते हुए पूछा, “क्या हुआ?” बंटी भाई ने कहा, “जिस गाँव से हमने मछलियाँ खरीदी थीं, वहाँ का पता गलत लिखा गया था। हमें जो माल मिला, वो मछलियाँ नहीं, मछलियों का खाना है। मतलब, दाना।” चाचा जी का चेहरा लाल हो गया। पापा और मम्मी एक-दूसरे को देखकर हँसने लगे। रिया चिल्लाई, “तो चाचा जी, आप मछलियों का चारा बेचने आए हैं?”
चाचा जी ने सिर पकड़ लिया और बोले, “ये सब उस दुकान वाले की गलती है। मैंने कहा था ताज़ा मछलियाँ चाहिए, उसने दाना भेज दिया।” बंटी भाई ने मासूमियत से कहा, “चाचा जी, आपने चिट्ठी में तो यही पता लिखा था।” चाचा जी ने जेब से एक कागज़ निकाला और देखने लगे। फिर बोले, “अरे, ये तो गलत चिट्ठी है। मैंने तो दूसरा पता लिखा था। लगता है डाक में गड़बड़ हो गई।”
अब तक हम सब हँस-हँसकर लोटपोट हो चुके थे। पापा ने कहा, “रमेश, तुम्हारी हर चिट्ठी में कोई न कोई बवाल होता है।” मम्मी ने चाय का दूसरा कप थमाते हुए कहा, “कोई बात नहीं, अब जो हो गया सो हो गया। लेकिन ये ट्रक यहाँ से हटाओ, गली में बदबू फैल रही है।” बंटी भाई ने ट्रक स्टार्ट किया और उसे मोहल्ले के बाहर ले गए।
शाम को चाचा जी और बंटी भाई बैठकर नया प्लान बनाने लगे। चाचा जी बोले, “भैया, अब हम मछलियों का दाना बेचेंगे। शहर में मछली पालने वाले ढेर सारे लोग हैं।” पापा ने हँसते हुए कहा, “ठीक है, लेकिन अगली बार चिट्ठी भेजने से पहले पता दो बार चेक कर लेना।” चाचा जी शर्मिंदा होकर मुस्कुराए।
उस रात घर में हँसी का माहौल रहा। रिया और मैं चाचा जी को छेड़ते रहे, “चाचा जी, अगली बार क्या लाएँगे? मुर्गियों का दाना?” चाचा जी ने हँसकर कहा, “अरे, अगली बार पक्का मछलियाँ लाऊँगा। बस चिट्ठी सही पते पर जानी चाहिए।”
इस तरह चाचा की चिट्ठी और गलत पते ने हमारे परिवार में एक नया किस्सा जोड़ दिया। और हाँ, अगले दिन चाचा जी और बंटी भाई सचमुच मछलियों का दाना बेचने निकल पड़े। पता नहीं उसका क्या हुआ, लेकिन ये कहानी हमारे घर में सालों तक हँसी का सबब बनी रही।