बहन की डायट और चाट का चक्कर (Bahan ki Majedar Kahani)

“पढ़ें ‘बहन की डायट और चाट का चक्कर’ – एक मजेदार कहानी (majedar kahani), जिसमें हंसी-मज़ाक के साथ परिवार की मुसीबतों का तड़का है। डायट का प्लान और चाट का लालच कैसे टकराते हैं, जानें इस हल्की-फुल्की कहानी में!”
बहन की डायट और चाट का चक्कर
हमारा घर वैसे तो शांतिपूर्ण था, लेकिन जब से दीदी ने डायट शुरू की, सब कुछ उलट-पुलट हो गया। दीदी, यानी मेरी बड़ी बहन रिया, जो अपनी फिटनेस को लेकर अचानक बहुत गंभीर हो गई थी। एक दिन उसने ऐलान किया, “अब से मैं जंक फूड नहीं खाऊंगी। सिर्फ सलाद, जूस और प्रोटीन।” मम्मी ने तारीफ की, पापा ने हौसला बढ़ाया, और मैंने सोचा, “चलो, कम से कम अब गोलगप्पे मुझे ज्यादा मिलेंगे।” लेकिन कहानी यहीं से शुरू हुई, और क्या मजेदार मोड़ लिया, वो तो आप आगे पढ़कर ही समझेंगे।
पहला दिन था दीदी की डायट का। सुबह-सुबह वो किचन में खड़ी थी, एक कटोरी में खीरा और गाजर काट रही थी। मम्मी ने पूछा, “रिया बेटा, कुछ और खाएगी?” दीदी ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, “नहीं मम्मी, बस यही। आज से बॉडी डिटॉक्स शुरू।” मैं पास में बैठा चाय के साथ पराठा खा रहा था। दीदी ने मुझे घूरा, जैसे मैंने उसका कोई अपराध कर दिया हो। “क्या देख रही हो?” मैंने पूछा। “तुझे शर्म नहीं आती? इतना तेल-मसाला खा रहा है!” उसने ताना मारा। मैंने हंसते हुए कहा, “मुझे फिटनेस की नहीं, टेस्ट की चिंता है।” बस, फिर क्या था, दीदी ने मुझे पूरा लेक्चर पिला दिया—कैलोरी, कोलेस्ट्रॉल, और न जाने क्या-क्या।
दूसरे दिन हालत और खराब हुई। दीदी ने अपने लिए ओट्स बनाए, लेकिन गलती से नमक की जगह चीनी डाल दी। एक चम्मच मुंह में डाला और चीख पड़ी, “ये क्या बन गया!” मम्मी दौड़कर आईं, “क्या हुआ बेटा?” दीदी ने गुस्से में कहा, “ये ओट्स नहीं, खीर बन गई!” मैं हंसते-हंसते लोटपोट हो गया। “दीदी, खीर ही खा लो, डायट में थोड़ा स्वाद तो बनेगा।” उसने मुझे ऐसा घूरा कि लगा, अभी खीरे की छड़ी से पीट देगी।
तीसरे दिन दीदी की डायट का असली इम्तिहान शुरू हुआ। हमारे मोहल्ले में हर शाम चाट का ठेला लगता है। गोलगप्पे, टिक्की, पापड़ी—बस नाम सुनकर ही मुंह में पानी आ जाता है। दीदी रोज़ खिड़की से ठेले को देखती थी, लेकिन अब डायट के चक्कर में उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। मैंने सोचा, थोड़ा मज़ाक करूं। मैं ठेले से गोलगप्पे ले आया और जानबूझकर दीदी के कमरे के बाहर खड़ा होकर खाने लगा। “वाह! क्या स्वाद है! अरे, ये मसाला तो कमाल का है!” मैं जोर-जोर से तारीफ करने लगा। दीदी दरवाज़ा खोलकर बाहर आई, “शांत रह सकता है कि नहीं?” मैंने मासूमियत से कहा, “क्या करूं, दीदी? गोलगप्पे बुला रहे थे।” उसने गुस्से में दरवाज़ा बंद कर लिया, लेकिन मुझे शक था कि वो अंदर से ललचा रही थी।
चौथा दिन और मज़ेदार था। मम्मी ने घर पर समोसे बनाए। दीदी किचन के पास से गुज़री और रुक गई। “मम्मी, ये क्या बना रही हो?” उसने पूछा। “समोसे,” मम्मी ने जवाब दिया। दीदी का चेहरा लाल हो गया। “आप लोग मेरी डायट का मज़ाक उड़ा रहे हो!” वो चिल्लाई। मम्मी ने समझाया, “अरे, ये तो घर के लिए है। तू तो अपना सलाद खा।” लेकिन दीदी को गुस्सा आ गया। वो अपने कमरे में चली गई और सलाद की प्लेट लेकर बैठ गई। मैंने देखा, वो सलाद को ऐसे चबा रही थी जैसे कोई सजा काट रही हो।
पांचवें दिन दीदी की हालत पतली हो गई। वो सुबह से चुपचाप थी। मैंने पूछा, “क्या हुआ, दीदी? डायट ठीक चल रही है?” उसने उदास होकर कहा, “भूख लग रही है, लेकिन कुछ खा नहीं सकती।” मैंने मज़ाक में कहा, “चल, चाट खा ले। एक दिन से क्या फर्क पड़ता है?” दीदी ने पहले तो मना किया, लेकिन फिर बोली, “ठीक है, लेकिन किसी को बताना मत।” मैं खुशी से उछल पड़ा। हम दोनों चुपके से ठेले पर गए। दीदी ने एक गोलगप्पा मुंह में डाला और उसकी आंखें चमक उठीं। “वाह! ये तो जन्नत का स्वाद है!” उसने कहा। फिर क्या था, उसने पांच गोलगप्पे, दो टिक्की और एक प्लेट पापड़ी चाट खा डाली। मैं हैरान था। “दीदी, ये डायट का डिटॉक्स है या चाट का अटैक?” मैंने हंसते हुए पूछा। उसने कहा, “चुप रह, आज मेरा चीट डे है।”
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। घर लौटते वक्त दीदी को एहसास हुआ कि उसकी डायट का सारा प्लान चौपट हो गया। वो घबराने लगी, “अगर मम्मी को पता चला तो डांट पड़ेगी।” मैंने कहा, “चिंता मत कर, मैं कुछ नहीं बताऊंगा।” लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। घर पहुंचते ही मम्मी ने पूछा, “कहां गए थे दोनों?” मैंने झट से कहा, “बस टहलने।” लेकिन तभी दीदी के मुंह से हल्की-सी मसाले की डकार निकल गई। मम्मी ने भौंहें चढ़ाईं, “ये क्या गंध है? चाट खाकर आए हो न?” दीदी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसने हकलाते हुए कहा, “नहीं मम्मी, वो… वो बस हवा में गंध थी।” मम्मी हंस पड़ीं, “हवा में गंध नहीं, तेरे मुंह में चाट है।”
फिर जो हंसी का दौर चला, वो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। पापा भी आ गए और बोले, “रिया, डायट करना अच्छी बात है, लेकिन चाट से दुश्मनी क्यों?” दीदी शर्मिंदा होकर बोली, “बस एक दिन की बात थी। कल से फिर सलाद शुरू।” मैंने चुटकी ली, “हां, और अगले हफ्ते फिर चीट डे!” सब हंस पड़े।
अगले दिन दीदी सचमुच सलाद लेकर बैठ गई, लेकिन उसकी नज़र बार-बार खिड़की की ओर जा रही थी, जहां चाट का ठेला लगने वाला था। मैंने सोचा, ये डायट ज्यादा दिन नहीं चलेगी। और सच में, दो दिन बाद दीदी फिर मेरे पास आई, “चल, आज फिर चीट डे मनाते हैं।” इस बार हमने चाट के साथ समोसे भी लिए। घर लौटकर दीदी ने कहा, “डायट तो ठीक है, लेकिन चाट के बिना ज़िंदगी अधूरी है।” मैंने हंसते हुए कहा, “दीदी, तू फिटनेस क्वीन कम, चाट क्वीन ज़्यादा है।”
इस तरह दीदी की डायट और चाट का चक्कर चलता रहा। हर हफ्ते वो सलाद खाती, और हर हफ्ते चीट डे के बहाने चाट का ठेला खाली कर देती। मम्मी-पापा को भी अब मज़ा आने लगा था। एक दिन मम्मी ने खुद चाट बनाई और दीदी को दी, “ले, अब घर की चाट खा, बाहर मत भाग।” दीदी खुश हो गई। उसने कहा, “डायट में थोड़ा मज़ा तो बनता है।”
तो दोस्तों, ये थी मेरी दीदी की डायट और चाट की मजेदार कहानी। परिवार में मुसीबतें तो आती हैं, लेकिन हंसी-मज़ाक के साथ सब हल हो जाता है। अब दीदी की डायट चल रही है या नहीं, ये तो वही जाने, लेकिन चाट का ठेला हमारा पक्का दोस्त बन गया है!