बुआ की सलाह और घर का बवाल (Bua ki Salah aur Ghar ka Bawal)

“बुआ की अनोखी सलाह से घर में मचता है हंगामा! चूजों का तूफान, परिवार का बवाल और हँसी के ठहाके—पढ़ें ये मजेदार कहानी (funny family kahani)।”
बुआ की सलाह और घर का बवाल (Bua ki Salah aur Ghar ka Bawal)
सुबह के सात बजे थे। सूरज की किरणें खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थीं और मम्मी रसोई में पराठे बना रही थीं। पापा अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। मैं, यानी रोहन, अपने कमरे में मोबाइल पर गेम खेल रहा था, और मेरी छोटी बहन रिया अपने गुड़िया के साथ “शादी-शादी” का खेल खेल रही थी। सब कुछ शांत और सामान्य था। लेकिन ये शांति ज्यादा देर तक टिकने वाली नहीं थी, क्योंकि आज बुआ जी आने वाली थीं।
बुआ जी, यानी पापा की बड़ी बहन शशि बुआ। उनकी खासियत थी कि वो हर बार घर में कुछ न कुछ नया बवाल खड़ा कर देती थीं। मम्मी कहती थीं, “शशि जी की सलाह और हमारे घर का नुकसान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” पापा बस मुस्कुरा देते थे, क्योंकि बुआ को कुछ कहने की हिम्मत उनकी थी नहीं।
दोपहर के बारह बजे दरवाजे की घंटी बजी। मैंने दरवाजा खोला तो सामने बुआ खड़ी थीं—हाथ में एक बड़ा सा बैग, सिर पर लाल दुपट्टा और चेहरे पर वो मुस्कान जो कुछ बड़ा होने का इशारा दे रही थी। “रोहन बेटा, बड़ा हो गया तू! अब तो शादी की उम्र हो गई,” बुआ ने मेरे गाल खींचते हुए कहा। मैंने मन ही मन सोचा, “अभी तो बारहवीं का रिजल्ट भी नहीं आया, और बुआ ने शादी की बात छेड़ दी।”
बुआ अंदर आईं और सीधे सोफे पर धम्म से बैठ गईं। मम्मी ने जल्दी से पानी का गिलास थमाया और पूछा, “शशि जी, सब ठीक है न?” बुआ ने गहरी साँस ली और बोलीं, “हाँ बहन, सब ठीक है। बस ये घर का माहौल थोड़ा ठीक करना है।” मम्मी और पापा ने एक-दूसरे की तरफ देखा, जैसे कह रहे हों, “लो, शुरू हो गईं।”
शाम को खाने की मेज पर बुआ ने अपनी सलाह का पिटारा खोल दिया। सबसे पहले निशाना बना मैं। “रोहन, तू दिनभर मोबाइल में घुसा रहता है। मेरे एक दोस्त की बेटी है, बहुत सुंदर और पढ़ी-लिखी। उससे बात कर ले, जिंदगी संवर जाएगी।” मैंने घबराते हुए कहा, “बुआ, अभी तो पढ़ाई चल रही है।” लेकिन बुआ कहाँ मानने वाली थीं। “अरे, पढ़ाई और शादी साथ-साथ हो सकती है। मेरे जमाने में तो लोग चार बच्चों के साथ एमए पास करते थे।”
फिर बुआ की नजर रिया पर पड़ी। “ये लड़की दिनभर गुड़िया से खेलती है। इसे किचन में काम सिखाओ। ससुराल में क्या करेगी?” मम्मी ने हल्के से कहा, “शशि जी, अभी तो रिया सिर्फ आठ साल की है।” बुआ ने आँखें तरेरीं, “तो क्या? मेरी माँ ने मुझे छह साल की उम्र में आटा गूँथना सिखा दिया था।”
पापा चुपचाप खाना खा रहे थे, लेकिन बुआ ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। “भाई, तू दिनभर अखबार में मुँह छुपाए रहता है। कुछ बिजनेस शुरू कर। मेरे पास एक आइडिया है—मुर्गी पालन। बड़ा मुनाफा है इसमें।” पापा ने गला खँखारा और बोले, “शशि दी, मेरी सरकारी नौकरी ठीक चल रही है। मुर्गियों की जरूरत नहीं।” बुआ ने तंज कसा, “हाँ, इसलिए तो तेरा बेटा मोबाइल में घुसा रहता है।”
अब बारी थी मम्मी की। बुआ ने रसोई में जाकर एक नजर डाली और बोलीं, “बहन, ये रसोई तो बहुत बेतरतीब है। सब्जियाँ यहाँ-वहाँ बिखरी हैं, मसाले गलत डिब्बों में हैं। मेरे पास एक तरीका है—सब कुछ लेबल कर दो।” मम्मी ने मन ही मन सोचा, “अब लेबल करने बैठूँगी तो खाना कौन बनाएगा?” लेकिन ऊपर से बस मुस्कुरा दीं।
रात को बुआ ने असली बम फोड़ा। वो बोलीं, “इस घर में एक कुत्ता पालना चाहिए। सुरक्षा के लिए और बच्चों के लिए भी अच्छा रहेगा।” रिया खुश हो गई, “हाँ बुआ, मुझे पपी चाहिए!” मैंने भी सोचा कि कुत्ता ठीक रहेगा, कम से कम बुआ की सलाह से ध्यान हटेगा। लेकिन मम्मी ने साफ मना कर दिया, “शशि जी, यहाँ पहले से ही चार लोग हैं, पाँचवाँ जानवर नहीं चाहिए।”
अगले दिन सुबह बुआ का मूड कुछ और ऊँचा था। वो बाजार गईं और लौटीं तो हाथ में एक बड़ा सा डिब्बा था। “ये क्या है?” पापा ने पूछा। बुआ ने गर्व से कहा, “मुर्गी पालन का सामान। मैंने सोचा भाई नहीं करेगा तो मैं ही शुरू कर दूँ।” डिब्बा खुला तो उसमें छोटे-छोटे चूजे थे। रिया चिल्लाई, “वाह, बुआ ये तो बहुत क्यूट हैं!” लेकिन पांच मिनट बाद ही चूजे इधर-उधर भागने लगे। एक चूजा मम्मी की साड़ी पर चढ़ गया, दूसरा पापा के अखबार पर जा बैठा। मैंने हँसते हुए कहा, “बुआ, ये तो घर में तूफान ला दिया।”
मम्मी गुस्से में बोलीं, “शशि जी, ये क्या तमाशा है? मेरी रसोई में चूजे घुस गए!” बुआ ने सफाई दी, “अरे, ये तो शुरुआत है। दो महीने में अंडे देंगे, फिर देखना मुनाफा।” लेकिन तभी एक चूजा मेज पर चढ़ा और चाय का कप गिरा दिया। पापा का चेहरा लाल हो गया, “शशि दी, ये मुर्गी पालन मेरे घर में नहीं चलेगा।”
शाम तक चूजों ने पूरा घर सिर पर उठा लिया। रिया उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रही थी, मैं हँस-हँसकर लोटपोट हो रहा था, और मम्मी-पापा बुआ को समझाने में लगे थे। आखिरकार पापा ने पड़ोस के शर्मा अंकल को बुलाया, जो खेती-बाड़ी का शौक रखते थे। शर्मा अंकल ने सारे चूजे ले लिए और बुआ का बिजनेस प्लान वहीं खत्म हो गया।
रात को बुआ ने फिर सलाह दी, “अब कुत्ता पाल ही लो।” मम्मी ने तपाक से कहा, “शशि जी, कुत्ते से पहले मुझे अपने घर की शांति चाहिए।” बुआ चुप हो गईं, लेकिन उनकी आँखों में अगली सलाह का प्लान साफ दिख रहा था।
अगले दिन बुआ अपने घर चली गईं। जाते-जाते बोलीं, “रोहन, उस लड़की का नंबर ले लेना। और भाई, मुर्गी पालन पर फिर सोचना।” दरवाजा बंद होते ही मम्मी ने राहत की साँस ली और बोलीं, “शशि जी की सलाह से तो भगवान ही बचाए।” पापा हँसे, “हाँ, लेकिन चूजों ने एक दिन में जो बवाल किया, वो हम चार लोग मिलकर सालभर में नहीं कर पाते।”
मैंने और रिया ने एक-दूसरे को देखा और ठहाके लगाकर हँस पड़े। बुआ की सलाह ने भले ही घर में बवाल मचाया, लेकिन हँसी के पल भी दिए। अब अगली बार बुआ आएँगी तो पता नहीं क्या नया आइडिया लेकर आएँगी—शायद गाय पालने की सलाह दें!