मेंढक का बड़ा सपना (Medak ki Kahani)

“पढ़ें ‘मेंढक का बड़ा सपना’ – एक मजेदार animal story in Hindi। इस moral story में मन्नू मेंढक का उड़ने का सपना और उसकी रोचक कोशिशें आपको हँसाएंगी और सिखाएंगी कि सपने बड़े हों, पर समझदारी ज़रूरी है।”
मेंढक का बड़ा सपना (Medak ka bada sapna animal story)
एक बार की बात है, जंगल के पास एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में ढेर सारे मेंढक रहते थे। उनमें से एक मेंढक था, जिसका नाम था मन्नू। मन्नू बाकी मेंढकों से थोड़ा अलग था। जहाँ बाकी मेंढक दिन भर तालाब में टर्र-टर्र करते, कमल के पत्तों पर कूदते और मक्खियाँ खाते रहते थे, वहीं मन्नू हमेशा कुछ बड़ा सोचता था। उसका एक सपना था – वो आसमान में उड़ना चाहता था!
हाँ, आपने सही सुना। एक मेंढक, जिसके पास न पंख थे, न लंबी पूंछ, वो भी उड़ने का सपना देखता था। तालाब के बाकी मेंढक उसकी बात सुनकर हँसते थे। “अरे मन्नू, तू मेंढक है या चिड़िया? उड़ने की बात छोड़, तैरने में मज़ा ले!” एक बूढ़ा मेंढक बोला। लेकिन मन्नू को उनकी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वो कहता, “सपने बड़े होने चाहिए, वरना ज़िंदगी में मज़ा क्या?”
एक दिन मन्नू तालाब के किनारे बैठा आसमान को निहार रहा था। तभी एक चील ऊपर से उड़ती हुई दिखी। उसकी शानदार उड़ान देखकर मन्नू के मन में फिर वही ख्याल आया – “काश मैं भी ऐसा उड़ पाता!” तभी पास में बैठी उसकी दोस्त, चिंकी चिड़िया, ने पूछा, “क्या सोच रहा है, मन्नू?” मन्नू ने शर्माते हुए कहा, “चिंकी, मैं उड़ना चाहता हूँ। क्या कोई तरीका है?”
चिंकी पहले तो हँसी, लेकिन फिर बोली, “देख मन्नू, उड़ना मेंढकों का काम नहीं। पर अगर तू सचमुच चाहता है, तो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा।” मन्नू ने कहा, “बस मुझे एक मौका चाहिए।” चिंकी ने सोचा और बोली, “ठीक है, मैं कुछ सोचती हूँ। कल सुबह मिलते हैं।”
अगले दिन सुबह चिंकी एक लंबी डंडी लेकर आई। उसने कहा, “मन्नू, ये डंडी पकड़। मैं इसे अपने चोंच में ले जाऊँगी और उड़ूँगी। तू डंडी को मज़बूती से थाम लेना, शायद तेरा सपना पूरा हो जाए।” मन्नू की आँखें चमक उठीं। उसने डंडी को दोनों हाथों से पकड़ा और चिंकी ने जोर से उड़ान भरी। ऊपर, ऊपर और ऊपर! मन्नू सचमुच हवा में था। तालाब के बाकी मेंढक नीचे से देख रहे थे और दाँतों तले उँगली दबा रहे थे। “अरे, ये मन्नू तो सचमुच उड़ रहा है!” एक मेंढक चिल्लाया।
हवा में मन्नू को मज़ा आ रहा था। पेड़, तालाब, जंगल – सब कुछ ऊपर से इतना छोटा और सुंदर लग रहा था। वो चिल्लाया, “चिंकी, ये तो कमाल है! मैं उड़ रहा हूँ!” लेकिन तभी उसका मेंढकीय दिमाग बोला, “अरे, मैं तो चिंकी से ज़्यादा ऊँचा उड़ सकता हूँ। मुझे उसकी मदद की क्या ज़रूरत?” ये सोचकर मन्नू ने डंडी छोड़ दी।
अब आप तो समझ ही गए होंगे कि आगे क्या हुआ। मन्नू नीचे की ओर गिरने लगा। “अरे, ये क्या हो रहा है? चिंकी, बचाओ!” वो चिल्लाया, लेकिन चिंकी ने कहा, “मैंने कहा था, मन्नू, ये तेरे बस की बात नहीं।” मन्नू धड़ाम से तालाब में गिरा। अच्छा हुआ कि तालाब गहरा था, वरना उसकी हड्डियाँ टूट जातीं।
तालाब में गिरते ही बाकी मेंढक हँसने लगे। “अरे मन्नू, उड़ने चला था? अब तैर ले!” मन्नू शर्मिंदा हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वो फिर से किनारे पर बैठ गया और सोचने लगा। तभी पास में एक बड़ा सा गुब्बारा हवा में उड़ता हुआ आया। वो किसी बच्चे का था, जो शायद कहीं से छूट गया था। मन्नू की आँखें चमक उठीं। उसने सोचा, “अगर चिंकी मुझे नहीं उड़ा सकती, तो ये गुब्बारा तो काम करेगा!”
मन्नू ने एक लंबी छलांग लगाई और गुब्बारे की डोर पकड़ ली। हवा का झोंका आया और गुब्बारा ऊपर उठने लगा। मन्नू फिर से हवा में था! वो खुशी से चिल्लाया, “देखो, मैं फिर उड़ रहा हूँ!” इस बार वो थोड़ा सावधान था। उसने डोर को मज़बूती से पकड़ा और हवा का मज़ा लेने लगा। तालाब के मेंढक नीचे से देख रहे थे और हैरान थे। “ये मन्नू तो सचमुच कमाल है!” बूढ़ा मेंढक बोला।
लेकिन कहानी में अभी ट्विस्ट बाकी था। गुब्बारा ऊँचा उड़ रहा था, तभी एक कौवा आया। उसने सोचा, “ये क्या चीज़ है? खाने की कोई चीज़ होगी!” और उसने अपनी चोंच से गुब्बारे को फोड़ दिया। फट्ट! गुब्बारा फट गया और मन्नू फिर से नीचे गिरने लगा। इस बार वो तालाब से थोड़ा दूर एक कीचड़ वाले गड्ढे में गिरा। धड़ाम! कीचड़ उछला और मन्नू पूरा कीचड़ से सन गया।
वहाँ से गुज़र रही लोमड़ी ने ये सब देखा और हँसते हुए बोली, “अरे मेंढक, तू उड़ना चाहता था या कीचड़ में नहाना?” मन्नू ने शर्मिंदगी से सिर झुकाया और बोला, “मैं तो बस अपना सपना पूरा करना चाहता था।” लोमड़ी ने कहा, “सपने देखना अच्छा है, पर अपनी हद भी तो समझनी चाहिए।”
मन्नू धीरे-धीरे तालाब की ओर लौटा। बाकी मेंढकों ने उसका मज़ाक उड़ाया, लेकिन मन्नू ने कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप कमल के पत्ते पर बैठ गया और सोचने लगा। उस रात चिंकी फिर उसके पास आई और बोली, “मन्नू, तू हिम्मतवाला है। सब तेरे मज़ाक उड़ा रहे हैं, पर तूने कोशिश तो की।”
मन्नू ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ चिंकी, मैं दो बार उड़ा। भले ही थोड़ी देर के लिए, पर मेरा सपना पूरा हुआ। अब मैं समझ गया कि सपने बड़े हों, पर उन्हें पूरा करने का तरीका समझदारी से चुनना चाहिए।” चिंकी ने हँसते हुए कहा, “तो अब क्या, फिर उड़ेगा?” मन्नू बोला, “नहीं, अब मैं तालाब का सबसे तेज़ तैराक बनूँगा। उड़ना चिड़ियों के लिए छोड़ देता हूँ!”
Moral of the Story:
सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन अपनी क्षमताओं को समझकर उन्हें पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। कोशिश करने में हार नहीं होती, बल्कि सीख मिलती है।