काले कोट वाला शख्स (Detective Story in Hindi)

काले कोट वाला शख्स – एक रोमांचक डिटेक्टिव कहानी (detective story) जिसमें इंस्पेक्टर राघव एक रहस्यमयी हत्यारे का पीछा करता है। पुरानी हवेली, छिपे सुराग और कोहरे में छुपा सच – क्या वह हत्यारे को पकड़ पाएगा?
काले कोट वाला शख्स (Detective Story in Hindi)
शहर की सर्द रातें अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए थीं। कोहरा इतना घना था कि सड़क के किनारे जलती स्ट्रीटलाइट्स भी धुंधली नजर आ रही थीं। इंस्पेक्टर राघव अपनी पुरानी जीप में बैठा, सिगरेट का एक लंबा कश लेते हुए सामने की सड़क को निहार रहा था। उसकी नजरें तेज थीं, लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। पिछले हफ्ते से शहर में अजीब घटनाएं हो रही थीं—लोग गायब हो रहे थे, और कोई सुराग नहीं मिल रहा था। तभी उसका फोन बजा। दूसरी तरफ से थाने के हवलदार की घबराई हुई आवाज आई, “साहब, एक और लाश मिली है। पुरानी हवेली के पास।”
राघव ने सिगरेट फेंकी और जीप स्टार्ट कर दी। पुरानी हवेली शहर के बाहरी इलाके में थी, जहाँ सालों से कोई नहीं रहता था। लोग कहते थे कि वहाँ भूतों का डेरा है, लेकिन राघव इन बातों पर यकीन नहीं करता था। उसे सच चाहिए था, और सच हमेशा सबूतों में छुपा होता था।
जब वह हवेली के पास पहुँचा, तो कोहरे के बीच एक साया दिखा। काले कोट में लिपटा एक शख्स तेजी से हवेली की ओर बढ़ रहा था। राघव ने अपनी टॉर्च जलाई और उसका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन वह शख्स पलक झपकते गायब हो गया। हवेली के बाहर पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी। हवलदार रामू ने उसे सलाम किया और लाश की ओर इशारा किया। एक युवक का शव जमीन पर पड़ा था—उसके गले पर गहरे निशान थे, जैसे किसी ने रस्सी से गला घोंट दिया हो। पास में एक काला दस्ताना पड़ा था, जो राघव की नजर में आया। उसने उसे उठाया और ध्यान से देखा। दस्ताने में हल्की सी स्याही की गंध थी।
“ये तीसरा शिकार है, साहब,” रामू ने कहा। “सबके गले पर ऐसे ही निशान। कोई पैटर्न समझ नहीं आ रहा।” राघव ने शव को गौर से देखा। “पैटर्न है, रामू। बस हमें उसे ढूंढना होगा। इस दस्ताने को फॉरेंसिक में भेजो।”
अगले दिन सुबह थाने में राघव फाइलें खंगाल रहा था। पिछले दो हफ्तों में तीन हत्याएं हुई थीं। तीनों शिकार युवा थे, और तीनों के पास कोई न कोई सुराग छूटा था—पहले एक टूटी घड़ी, फिर एक फटा हुआ कागज, और अब ये दस्ताना। उसने नक्शे पर तीनों जगहों को चिह्नित किया। एक त्रिकोण बन रहा था, और उसका केंद्र था—पुरानी हवेली।
राघव ने फैसला किया कि वह रात को हवेली में दबिश देगा। उसने अपनी पिस्तौल चेक की और अकेले ही निकल पड़ा। हवेली के बाहर पहुँचते ही उसे फिर वही साया दिखा—काले कोट वाला शख्स। इस बार वह रुका नहीं। राघव ने तेजी से उसका पीछा किया। हवेली के अंदर का माहौल सन्नाटे से भरा था। दीवारों पर मकड़ियों के जाले लटक रहे थे, और फर्श पर धूल की मोटी परत जमी थी।
अचानक एक कमरे से हल्की सी खटपट की आवाज आई। राघव ने दरवाजा खोला तो देखा कि काले कोट वाला शख्स एक मेज पर कुछ लिख रहा था। उसके पास ही एक रस्सी और चाकू रखा था। राघव ने पिस्तौल तानते हुए कहा, “हाथ ऊपर करो!”
वह शख्स धीरे से मुड़ा। उसका चेहरा नकाब से ढका था, लेकिन आँखों में एक अजीब सी चमक थी। “तुम देर कर चुके हो, इंस्पेक्टर,” उसने ठंडी आवाज में कहा। “ये खेल मेरे नियमों से चलेगा।”
राघव ने उस पर झपटने की कोशिश की, लेकिन वह शख्स तेजी से खिड़की से कूद गया। राघव ने मेज पर रखे कागज को उठाया। उस पर स्याही से लिखा था: “चौथा नंबर तुम्हारा है।” राघव का दिल जोर से धड़का। ये कोई साधारण कातिल नहीं था—ये एक ऐसा शख्स था जो अपने शिकार के साथ खेल रहा था।
अगले कुछ दिन राघव ने हवेली की तलाशी ली। उसे पता चला कि ये हवेली कभी एक मशहूर डॉक्टर की थी, जो अपने मरीजों पर अजीब प्रयोग करता था। डॉक्टर की मौत के बाद हवेली खाली हो गई थी, लेकिन उसकी डायरी वहाँ मिली। डायरी में लिखा था कि डॉक्टर का एक बेटा था, जो अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता था। क्या काले कोट वाला शख्स वही बेटा था?
फॉरेंसिक रिपोर्ट आई। दस्ताने पर मिली स्याही एक खास किस्म की थी, जो सिर्फ पुराने प्रिंटिंग प्रेस में इस्तेमाल होती थी। राघव ने शहर के पुराने प्रिंटिंग हाउस की तलाश शुरू की। एक सुनसान इलाके में उसे वो जगह मिली। अंदर घुसते ही उसे काले कोट वाला शख्स फिर दिखा। इस बार उसके हाथ में रस्सी थी, और सामने एक कुर्सी पर बंधा हुआ एक और शिकार।
“बस करो!” राघव ने चिल्लाते हुए गोली चलाई। गोली उस शख्स के कंधे में लगी, और वह नीचे गिर पड़ा। राघव ने नकाब हटाया। सामने एक युवक था—चेहरे पर गहरे निशान और आँखों में नफरत भरी चमक। उसने कहा, “मेरे पिता को शहर ने मार डाला। अब ये शहर भुगतेगा।”
राघव ने उसे हथकड़ी पहनाई और बंधे हुए शख्स को छुड़ाया। पूछताछ में पता चला कि उसका नाम अर्जुन था। वह अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए उन लोगों को मार रहा था, जिन्हें वह जिम्मेदार मानता था। हवेली उसका अड्डा थी, और काला कोट उसकी पहचान।
केस सुलझ गया, लेकिन राघव के मन में एक सवाल रह गया। क्या अर्जुन अकेला था, या शहर में और भी ऐसे लोग थे जो अपने अतीत का बदला लेने को तैयार थे? उस रात, जब वह थाने से घर लौटा, तो कोहरे में उसे फिर एक साया दिखा—काले कोट में लिपटा हुआ। राघव ने अपनी पिस्तौल निकाली, लेकिन साया गायब हो चुका था। शायद ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी।
शहर की सर्द रातें अब भी अपने रहस्य समेटे हुए थीं।