राजगुरु और तेनाली (Rajguru aur Tenali)

विजयनगर साम्राज्य में महाराज कृष्णदेव राय का दरबार हमेशा हँसी-मजाक और बुद्धिमानी के किस्सों से गूँजता था। तेनाली रामा, अपनी चतुराई के लिए मशहूर, दरबार का सबसे चहेता सलाहकार था। लेकिन राजगुरु तथाचार्य को तेनाली की यह लोकप्रियता बिलकुल पसंद नहीं थी। राजगुरु हमेशा सोचता, “यह तेनाली हर बार मुझे नीचा क्यों दिखाता है? इस बार मैं इसे सबक सिखाऊँगा!”
एक दिन सुबह-सुबह राजगुरु ने महाराज से कहा, “महाराज, हमारे राज्य में एक प्राचीन मंदिर है, जहाँ एक रहस्यमयी शिला है। कहा जाता है कि जो उस शिला को हिला दे, वही इस राज्य का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति है। कृपया तेनाली को यह चुनौती दें।”
महाराज को यह विचार रोमांचक लगा। उन्होंने तेनाली को बुलवाया और कहा, “तेनाली, राजगुरु ने एक चुनौती दी है। क्या तुम उस प्राचीन शिला को हिला सकते हो? अगर तुम सफल हुए, तो मैं तुम्हें सोने की मोहरों से पुरस्कृत करूँगा।”
तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, मैं कोशिश जरूर करूँगा, लेकिन पहले मुझे उस शिला को देखने की इजाजत दें।”
अगले दिन तेनाली, राजगुरु और कुछ दरबारी उस मंदिर पहुँचे। शिला विशाल थी, जैसे कोई पहाड़ का टुकड़ा जमीन में गड़ा हो। राजगुरु मन ही मन हँस रहा था, क्योंकि उसे यकीन था कि कोई भी इसे हिला नहीं सकता।
तेनाली ने शिला को चारों ओर से देखा, फिर मंदिर के पुजारी से कुछ फुसफुसाया। पुजारी मुस्कुराया और चला गया। तेनाली ने दरबारियों से कहा, “इस शिला को हिलाने के लिए मुझे एक रात की तैयारी चाहिए। कल सुबह मैं इसे जरूर हिलाऊँगा।”
राजगुरु को तेनाली की बात पर शक हुआ, लेकिन वह चुप रहा। उस रात, तेनाली ने गाँव के कुछ मजदूरों को बुलाया और उनके साथ मिलकर शिला के नीचे की मिट्टी को चुपके से खोदा। शिला अब थोड़ी ढीली हो गई थी, लेकिन बाहर से कोई फर्क नहीं दिखता था।
अगली सुबह, जब सारा दरबार मंदिर में इकट्ठा हुआ, तेनाली ने नाटकीय अंदाज में शिला की ओर कदम बढ़ाए। उसने जोर से कहा, “हे शिला! मैं, तेनाली रामा, तुम्हें चुनौती देता हूँ!” फिर उसने शिला को हल्का-सा धक्का दिया। हैरानी की बात, शिला थोड़ी हिल गई! दरबारी चकित रह गए, और महाराज ने तालियाँ बजाईं।
राजगुरु का चेहरा लाल हो गया। उसने गुस्से में कहा, “यह धोखा है! कोई कैसे इतनी भारी शिला हिला सकता है?”
तेनाली ने शांत स्वर में जवाब दिया, “राजगुरु जी, बुद्धिमानी सिर्फ ताकत में नहीं, बल्कि सोच में होती है। मैंने शिला को नहीं, बल्कि उसके नीचे की मिट्टी को हिलाया। चुनौती थी शिला हिलाने की, और मैंने वही किया।”
महाराज हँस पड़े और बोले, “तेनाली, तुम सचमुच अनोखे हो! राजगुरु, तुम्हें तेनाली की चतुराई से सीखना चाहिए।”
राजगुरु चुपचाप सिर झुकाकर रह गया, और तेनाली ने एक बार फिर अपनी बुद्धि का लोहा मनवाया।
नैतिक: सच्ची बुद्धिमानी समस्याओं को चतुराई से हल करने में है, न कि दूसरों को नीचा दिखाने में।