महाराज की खांसी (Tenali Rama ki Chaturai)

tenali rama majedar kahani

विजयनगर साम्राज्य में एक बार की बात है, महाराज कृष्णदेव राय को अचानक तीखी खांसी ने जकड़ लिया। दिन-रात खांसी चलती, न रात को नींद आती, न दिन को चैन। राजवैद्य ने हर तरह की जड़ी-बूटियाँ आजमाईं, मगर खांसी थी कि टस से मस न हुई। महाराज का मूड चिड़चिड़ा हो गया। दरबार में हँसी-मजाक गायब हो गया, और सारे दरबारी डर-डर कर बात करने लगे।

एक दिन महाराज ने गुस्से में ऐलान किया, “जो कोई मेरी खांसी ठीक करेगा, उसे सोने की मोहरों से तौल दिया जाएगा। लेकिन अगर कोई नाकाम रहा, तो उसे जेल में डाल दूंगा!” यह सुनकर सारे वैद्य और हकीम डर गए। कोई भी आगे आने की हिम्मत न कर सका।

तेनाली रामा, जो हमेशा की तरह दरबार के कोने में चुपके से सब सुन रहा था, मुस्कुराया। उसने सोचा, “यह खांसी कोई साधारण बीमारी नहीं। इसमें कुछ और ही राज है।” उसने महाराज से कहा, “हुजूर, मुझे तीन दिन दीजिए। मैं आपकी खांसी की जड़ तक जाऊँगा और उसे ठीक करूँगा।”

महाराज ने भौंहें तानकर कहा, “तेनाली, अगर तुम नाकाम रहे, तो जेल की हवा खानी पड़ेगी।”

तेनाली ने हँसकर जवाब दिया, “हुजूर, जेल की हवा तो ठंडी होती है, मगर आपकी खांसी गर्म है। पहले उसे ठंडा कर लूँ।”

पहले दिन, तेनाली महाराज के साथ उनके शयनकक्ष में गया। उसने देखा कि महाराज का पलंग एक बड़े-से लकड़ी के सन्दूक के पास था, जो धूल से भरा था। तेनाली ने सन्दूक खोला तो उसमें पुराने कपड़े और कुछ बेकार का सामान निकला। उसने सन्दूक को रात में चुपके से हटवा दिया। मगर अगले दिन भी महाराज की खांसी वैसी ही रही।

दूसरे दिन, तेनाली ने रसोईघर का मुआयना किया। उसने देखा कि महाराज के खाने में हर दिन तीखा मसाला और भारी तेल डाला जा रहा था। तेनाली ने रसोइए से कहा, “आज से तीन दिन तक महाराज को हल्का खाना दो—खिचड़ी, दही और पुदीने की चटनी।” रसोइया डर गया, मगर तेनाली के कहने पर मान गया। फिर भी, खांसी में कोई फर्क न पड़ा।

तीसरे दिन, तेनाली ने कुछ और गौर किया। महाराज हर रात सोने से पहले एक पुरानी किताब पढ़ते थे, जो उनके दादाजी के समय की थी। किताब के पन्ने पीले पड़ चुके थे, और उनसे धूल उड़ती थी। तेनाली ने सोचा, “कहीं यही तो खांसी का कारण नहीं?” उसने किताब को चुपके से एक नई किताब से बदल दिया, जिसके पन्ने साफ और चमकदार थे।

अगली सुबह, महाराज दरबार में आए। उनकी खांसी गायब थी! दरबारी हैरान थे। महाराज ने खुश होकर पूछा, “तेनाली, तुमने यह कैसे किया?”

तेनाली ने हँसते हुए कहा, “हुजूर, आपकी खांसी का इलाज तीन चीजों में था। पहला, आपके सन्दूक की धूल, जो रात में आपकी साँसों में घुस रही थी। दूसरा, तीखा खाना, जो आपकी गले को और सता रहा था। और तीसरा, वह पुरानी किताब, जिसकी धूल आप हर रात साँसों में ले रहे थे। मैंने बस इन तीनों को ठीक किया।”

महाराज हँसे और बोले, “तेनाली, तुम्हारी चतुराई का कोई जवाब नहीं। लेकिन बताओ, इनाम में क्या चाहिए?”

तेनाली ने शरारत से कहा, “हुजूर, बस इतना वादा कीजिए कि अगली बार खांसी हो तो मुझे पहले बुलाएँगे, जेल बाद में भेजेंगे।”

दरबार ठहाकों से गूंज उठा।

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