मटके में मुंह (Matke me muh Tenali Rama Kahani)

विजयनगर साम्राज्य में महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में तेनाली रामा की बुद्धिमानी के किस्से हर किसी की जुबान पर रहते थे। एक दिन दरबार में एक अजीब-सी समस्या आई। शहर का एक धनी व्यापारी, हरगोपाल, शिकायत लेकर दरबार में हाजिर हुआ। उसने बताया कि उसका बेशकीमती मटका, जिसमें वह सोने-चांदी के सिक्के रखता था, रातोंरात खाली हो गया। न मटके पर कोई निशान था, न ताला टूटा था, और न ही कोई चोर दिखा। व्यापारी ने शक जताया कि यह कोई जादुई चालबाजी है।
महाराज ने तेनाली रामा को इस रहस्य को सुलझाने का आदेश दिया। तेनाली ने व्यापारी से पूछा, “मटका कैसा है? और इसे तुम कहाँ रखते हो?”
हरगोपाल ने बताया, “मटका मिट्टी का है, लेकिन बहुत मजबूत। उसका मुंह छोटा और पेट चौड़ा है। मैं उसे अपने गोदाम के एक गुप्त कोने में रखता हूँ, और रात को ताला लगाकर सोता हूँ।”
तेनाली ने व्यापारी को अगले दिन फिर से दरबार में आने को कहा और खुद गोदाम का मुआयना करने चला गया। वहाँ जाकर उसने मटके को ध्यान से देखा। मटके का मुंह वाकई छोटा था, लेकिन तेनाली ने कुछ और भी नोटिस किया—मटके के आसपास कुछ बारीक मिट्टी के कण बिखरे थे, जैसे कोई बार-बार उसे हिलाता हो।
अगले दिन दरबार में तेनाली ने एक अनोखा इंतजाम किया। उसने एक ऐसा ही मटका मंगवाया और उसे बीच दरबार में रख दिया। फिर उसने हरगोपाल से कहा, “व्यापारी जी, इस मटके में मैंने कुछ सिक्के रखे हैं। अगर आप इन्हें बिना मटका तोड़े निकाल सकें, तो मैं आपकी बात पर यकीन कर लूँगा।”
हरगोपाल ने मटके में हाथ डाला, लेकिन उसका हाथ छोटे मुंह में अटक गया। उसने कोशिश की, पर सिक्के निकालना मुश्किल था। तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, इस मटके का रहस्य यही है। मटके का मुंह इतना छोटा है कि कोई बड़ा हाथ आसानी से अंदर-बाहर नहीं कर सकता। लेकिन अगर कोई चतुराई से काम ले, तो सिक्के गायब हो सकते हैं।”
तेनाली ने फिर एक पतला डंडा लिया और मटके के अंदर हिलाया। उसने दिखाया कि मटके की अंदरूनी दीवार पर कुछ सिक्के चिपके हुए थे, जैसे किसी ने चिपचिपा पदार्थ लगाकर उन्हें वहाँ चिपकाया हो। तेनाली ने कहा, “हरगोपाल जी, आपका नौकर रात को मटके को हिलाता था, और सिक्के धीरे-धीरे दीवार पर चिपक जाते थे। फिर वह छोटे मुंह से डंडे की मदद से उन्हें निकाल लेता था। यह सब इतनी सफाई से होता था कि आपको शक भी नहीं होता।”
महाराज ने तुरंत नौकर को बुलवाया। डर के मारे नौकर ने सच उगल दिया कि वह हर रात थोड़े-थोड़े सिक्के चुराता था और मटके की दीवार पर चिपकाकर रखता था। हरगोपाल को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने नौकर पर इतना भरोसा कर लिया।
महाराज ने तेनाली की तारीफ की और कहा, “तेनाली, तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि बुद्धि के सामने कोई रहस्य टिक नहीं सकता।” तेनाली ने हँसते हुए जवाब दिया, “महाराज, मटके में मुंह डालने से पहले सोचना चाहिए कि कहीं मुंह ही न अटक जाए!”
दरबार में ठहाके गूंज उठे, और तेनाली का यह किस्सा भी विजयनगर की गलियों में मशहूर हो गया।
नैतिक शिक्षा: लालच और जल्दबाजी में लिया गया फैसला अक्सर मुसीबत में डाल देता है। बुद्धि और धैर्य से हर समस्या का हल निकल सकता है।