लोमड़ी की नकली दोस्ती

“प्रियांशु के होमवर्क ने मिश्रा परिवार में मचाया हंगामा! पापा अजय की मदद से मैथ्स, साइंस और सोलर सिस्टम का प्रोजेक्ट बना मज़ेदार सफर। पढ़ें ये हास्यप्रद कहानी (majedar story in hindi)।”
बेटे का होमवर्क (Majedar Kahani)
सुबह के सात बजे थे। मिश्रा परिवार का घर आम दिनों की तरह शांत नहीं था। आज शनिवार था, लेकिन शांति का नामोनिशान नहीं। कारण था मास्टर प्रियांशु मिश्रा, यानी घर का इकलौता बेटा, जिसका होमवर्क अधूरा पड़ा था और स्कूल का असाइनमेंट मंडे को जमा करना था। प्रियांशु की मम्मी, राधा, रसोई में पराठे बना रही थीं, और पापा, अजय मिश्रा, अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। लेकिन ये शांति ज्यादा देर टिकने वाली नहीं थी।
“प्रियांशु! उठो, सुबह हो गई। होमवर्क कब करेगा?” राधा की आवाज़ रसोई से गूँजी। प्रियांशु बिस्तर पर करवट बदलते हुए बोला, “बस पाँच मिनट मम्मी, नींद आ रही है।” ये पाँच मिनट पिछले आधे घंटे से चल रहे थे। अजय ने अखबार नीचे रखा और बोले, “राधा, इसे छोड़ दो। मैं देख लूँगा। आज मैं इसे होमवर्क पूरा करवाऊँगा।” राधा ने एक नज़र अजय पर डाली और मन ही मन सोचा, “ठीक है, देखते हैं ये बाप-बेटे क्या कमाल करते हैं।”
अजय ने प्रियांशु को बुलाया, “चल बेटा, उठ। आज पापा तेरे साथ होमवर्क करेंगे।” प्रियांशु ने तकिए में मुँह छिपाते हुए कहा, “पापा, आप तो कहते हैं कि होमवर्क बोरिंग होता है। फिर आप क्यों करवाना चाहते हैं?” अजय हँसे, “हाँ, बोरिंग तो है, लेकिन स्कूल में डांट पड़ने से तो अच्छा है ना कि हम इसे मज़ेदार बना दें।” प्रियांशु उठा तो सही, लेकिन उसकी आँखें अभी भी नींद से भरी थीं।
अजय ने टेबल पर प्रियांशु की कॉपी खोली। पहला सवाल था मैथ्स का – “एक ट्रेन 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है। 180 किलोमीटर की दूरी तय करने में कितना समय लगेगा?” अजय ने कॉपी देखी और बोले, “ये तो आसान है। चल, मैं बताता हूँ।” प्रियांशु ने पेन हाथ में लिया और अजय ने शुरू किया, “देख, 60 किलोमीटर एक घंटे में, तो 180 किलोमीटर में… हाँ, 3 घंटे।” प्रियांशु ने लिख दिया, लेकिन फिर बोला, “पापा, मैम ने कहा था कि फॉर्मूला लिखना है।” अजय का माथा ठनका, “कौन सा फॉर्मूला? अरे, ये तो सीधा हिसाब है।” प्रियांशु ने कॉपी में लिखा हुआ फॉर्मूला दिखाया – दूरी = रफ्तार × समय। अजय ने कहा, “अच्छा, ठीक है। फिर से करते हैं। 180 को 60 से भाग दो।” प्रियांशु ने कैलकुलेटर निकाला, लेकिन अजय चिल्लाए, “अरे, कैलकुलेटर क्यों? दिमाग से करो!” प्रियांशु ने मुँह बनाया, “पापा, आप तो ऑफिस में कैलकुलेटर यूज़ करते हैं।”
अजय को गुस्सा तो आया, लेकिन वो हँस पड़े। “ठीक है, चलो कैलकुलेटर से करो। जवाब क्या आया?” प्रियांशु ने कहा, “3।” अजय ने ताली बजाई, “देखा, मेरा हिसाब सही था। चलो अगला सवाल।” अगला सवाल था साइंस का – “पानी का उबलने का तापमान क्या है और क्यों?” प्रियांशु ने कहा, “पापा, मुझे पता है। 100 डिग्री सेल्सियस।” अजय ने पूछा, “और क्यों?” प्रियांशु चुप। अजय ने सोचा कि अब अपनी बुद्धि दिखाने का मौका है। “देख बेटा, पानी जब गर्म होता है, तो उसके कण तेज़ी से हिलते हैं और फिर वो भाप बन जाता है।” प्रियांशु ने कहा, “पापा, ये तो किताब में नहीं है। मैम ने कहा था कि प्रेशर की वजह से।” अजय का चेहरा लाल हो गया, “अच्छा? तो मैं गलत हूँ? चल, किताब देखते हैं।”
किताब खोली तो सचमुच लिखा था कि वायुमंडलीय दबाव के कारण पानी 100 डिग्री पर उबलता है। अजय ने कहा, “ये टीचर भी ना, बच्चों को उल्टा-पुल्टा पढ़ाते हैं। मेरी बात भी तो सही थी।” प्रियांशु हँसा, “पापा, आपकी बात सही थी, लेकिन स्कूल में मैम की बात चलती है।” अजय ने मन ही मन सोचा, “ये बच्चा बड़ा होकर वकील बनेगा।”
अब बारी थी हिंदी की। एक निबंध लिखना था – “मेरा परिवार।” अजय ने कहा, “ये तो मज़ेदार है। चल, मैं डिक्टेट करता हूँ, तू लिख।” प्रियांशु तैयार हो गया। अजय शुरू हुए, “मेरा परिवार बहुत प्यारा है। मेरे पापा बहुत स्मार्ट हैं और मम्मी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं।” प्रियांशु ने लिखते हुए कहा, “पापा, ये तो बोरिंग है। कुछ मज़ेदार लिखते हैं।” अजय ने सोचा और बोले, “ठीक है। लिख – मेरे पापा सुबह अखबार पढ़ते हैं, लेकिन उन्हें चश्मा ढूंढने में आधा घंटा लगता है। मम्मी पराठे बनाती हैं, लेकिन कभी-कभी नमक की जगह चीनी डाल देती हैं।” प्रियांशु हँसते हुए लिखने लगा।
तभी राधा रसोई से चिल्लाई, “क्या बकवास लिखवा रहे हो बच्चे को? स्कूल में टीचर क्या सोचेगी?” अजय ने हँसते हुए कहा, “अरे, मज़ाक कर रहे हैं। असली निबंध बाद में लिख लेंगे।” लेकिन प्रियांशु को मज़ा आ रहा था। उसने लिखा, “मेरे पापा कहते हैं कि वो जिम जाएंगे, लेकिन सोफे से उठते ही हाँफने लगते हैं।” अजय ने कॉपी छीनी, “बस, बहुत हो गया। अब सीरियसली लिखते हैं।”
आखिरकार निबंध पूरा हुआ। लेकिन अभी एक प्रोजेक्ट बाकी था – “सोलर सिस्टम का मॉडल बनाना।” अजय ने कहा, “ये तो आसान है। थर्माकोल की गेंदें लाओ, हम प्लैनेट्स बनाएंगे।” प्रियांशु ने पुरानी टेनिस बॉल्स और एक फटी फुटबॉल निकाली। अजय ने कहा, “ये क्या है? सूरज के लिए तो बड़ी गेंद चाहिए।” प्रियांशु ने कहा, “पापा, मम्मी को बोलो कि बाज़ार से लाएँ।” अजय ने राधा को आवाज़ दी, लेकिन राधा ने कहा, “मैं तो व्यस्त हूँ। तुम लोग खुद मैनेज करो।”
अजय और प्रियांशु ने घर में ही जुगाड़ शुरू किया। एक पुराना गुब्बारा सूरज बना, टेनिस बॉल्स से बाकी ग्रह बने। रंग करने के लिए प्रियांशु ने मम्मी की नेल पॉलिश चुराई। जब राधा ने देखा, तो चिल्लाई, “मेरी नई नेल पॉलिश! तुम लोग पागल हो गए हो?” अजय ने हँसते हुए कहा, “अरे, सोलर सिस्टम के लिए कुर्बानी तो बनती है।” प्रोजेक्ट पूरा हुआ, लेकिन टेबल पर रंग बिखर गया और कमरा नेल पॉलिश की महक से भर गया।
शाम को जब सब थक गए, तो राधा ने पराठे और आलू की सब्जी परोसी। प्रियांशु ने कहा, “पापा, होमवर्क करना मज़ेदार था। अगली बार भी आप मदद करेंगे ना?” अजय ने थकान से भरी हँसी हँसते हुए कहा, “हाँ बेटा, लेकिन अगली बार मम्मी को भी शामिल करेंगे।” राधा ने चम्मच फेंकते हुए कहा, “मुझसे दूर रहो, तुम दोनों का पागलपन मैं नहीं झेल सकती।”
और इस तरह, मिश्रा परिवार का एक और दिन हँसी-मज़ाक और होमवर्क के चक्कर में बीत गया। प्रियांशु का असाइनमेंट तैयार था, लेकिन अजय को लग रहा था कि अगली बार वो प्रियांशु को टीचर के भरोसे छोड़ देगा। फिर भी, ये दिन सबके लिए यादगार बन गया।