बीरबल की खिचड़ी (Birbal ki Khichdi)

birbal

एक बार की बात है, बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे। सर्दी का मौसम था, और हवा में ठंडक घुली हुई थी। दरबार में तरह-तरह की बातें हो रही थीं, लेकिन अकबर का मन कुछ उदास-सा था। उन्होंने अपने दरबारियों से पूछा, “क्या कोई ऐसा इंसान है जो मेरे लिए कुछ भी कर सकता है, चाहे कितनी भी मुश्किल हो?”

दरबारी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। कुछ ने चापलूसी में कहा, “हुजूर, हम सब आपके लिए जान दे सकते हैं!” लेकिन अकबर को ये खोखले वादे पसंद नहीं आए। तभी बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “हुजूर, वफादारी की बातें तो आसान हैं, लेकिन उसे साबित करना मुश्किल है।”

अकबर ने बीरबल की बात सुनी और चुनौती भरे लहजे में बोले, “ठीक है, बीरबल! अगर तुम इतने चतुर हो, तो साबित करो कि कोई मेरे लिए सचमुच कितना वफादार हो सकता है।”

बीरबल ने सिर झुकाया और बोले, “हुजूर, मुझे एक मौका दीजिए। मैं आपको दिखाऊँगा कि वफादारी का असली मतलब क्या होता है।”

अगले दिन बीरबल ने एक योजना बनाई। उन्होंने अकबर को बताया कि वे एक प्रयोग करेंगे। पास की नदी के किनारे एक बड़ा हंडा रखवाया गया, जिसमें खिचड़ी बनाने की सामग्री डाली गई। लेकिन हंडे के नीचे आग नहीं जलाई गई। बीरबल ने दरबारियों को बुलाया और कहा, “बादशाह चाहते हैं कि कोई इतना वफादार हो जो इस ठंडी रात में नदी के पानी में खड़ा होकर खिचड़ी बनाए। जो ऐसा करेगा, उसे बादशाह इनाम देंगे।”

सर्दी की रात थी, और नदी का पानी बर्फ-सा ठंडा। दरबारी एक-दूसरे को देखने लगे। कोई भी आगे नहीं आया। कुछ ने बहाने बनाए, “हमें ठंड लग जाएगी!” कुछ ने कहा, “हम बीमार पड़ जाएँगे!” लेकिन बीरबल ने हँसते हुए कहा, “ठीक है, मैं खुद कोशिश करता हूँ।”

रात को बीरबल नदी के किनारे गए। उन्होंने हंडे को पानी के बीच रखा और खुद किनारे पर खड़े हो गए। सारी रात वे वहीं खड़े रहे, ठंड से काँपते हुए। सुबह जब अकबर और दरबारी आए, तो देखा कि हंडा वैसा ही था, खिचड़ी नहीं बनी थी। अकबर ने पूछा, “बीरबल, ये क्या माजरा है? खिचड़ी तो बनी ही नहीं!”

बीरबल ने शांत स्वर में जवाब दिया, “हुजूर, मैंने पूरी रात कोशिश की, लेकिन किनारे से हंडे को गर्म करने की कोशिश बेकार थी। बिना आग के खिचड़ी कैसे बनती?”

अकबर को बात समझ नहीं आई। उन्होंने कहा, “तुम किनारे खड़े थे, तो खिचड़ी कैसे बनती?”

बीरबल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “हुजूर, यही तो मैं दिखाना चाहता था। अगर किनारे खड़े रहने से खिचड़ी नहीं बन सकती, तो सिर्फ़ बातों से वफादारी कैसे साबित हो सकती है? असली वफादारी वही है जो काम करके दिखाए, न कि सिर्फ़ बोलकर।”

अकबर बीरबल की चतुराई पर हँस पड़े। उन्होंने कहा, “बीरबल, तुमने फिर साबित कर दिया कि तुम सबसे होशियार हो! तुमने बिना कुछ कहे, सबको सबक सिखा दिया।”

दरबारियों को अपनी गलती समझ आई। अकबर ने बीरबल को इनाम दिया और कहा, “आज से कोई भी खोखली बातें नहीं करेगा। वफादारी काम से साबित होती है, न कि ज़ुबान से।”

नैतिक शिक्षा: सच्ची वफादारी और मेहनत काम से साबित होती है, न कि खाली बातों से।

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