बापू की लाठी (Baapu ki Lathi Kahani)

बापू की लाठी (Baapu ki Lathi Kahani)

“पढ़ें ‘बापू की लाठी’ – एक रोचक कहानी (rochak kahani)। गाँव रामपुर में बापू और उनकी लाठी की हिम्मत से पानी की लड़ाई और ठाकुर के घमंड का अंत। हौसले और हक की प्रेरक गाथा!”

बापू की लाठी (Baapu ki Lathi Kahani)

गाँव का नाम था रामपुर। चारों तरफ हरे-भरे खेत, बीच में एक पुराना बरगद का पेड़ और उसकी छांव में बनी चौपाल, जहाँ गाँव वाले दिन ढलते ही जमा हो जाते। इसी गाँव में रहते थे बापू, जिनका असली नाम तो शायद ही किसी को याद था। सब उन्हें “बापू” कहकर पुकारते। उम्र सत्तर के पार, लेकिन कद ठिगना और आँखों में एक अजीब-सी चमक। उनके हाथ में हमेशा एक मोटी लाठी रहती, जो न जाने कितने सालों से उनकी साथी थी। लाठी का ऊपरी सिरा घिस चुका था, और नीचे की नोक मिट्टी में बार-बार टकराने से चिकनी हो गई थी। गाँव के बच्चे कहते, “बापू की लाठी में जादू है।” और सचमुच, उस लाठी की अपनी कहानी थी, जो धीरे-धीरे खुलने वाली थी।

शुरुआत

बापू का घर गाँव के आखिरी छोर पर था। मिट्टी की दीवारें, फूस का छप्पर और सामने एक छोटा-सा आँगन, जहाँ उनकी बकरी “लाली” बंधी रहती। बापू अकेले रहते थे। उनकी पत्नी सालों पहले गुज़र चुकी थी, और बेटा शहर में मज़दूरी करने चला गया था। बेटे का कोई अता-पता नहीं था, पर बापू कभी उसकी शिकायत नहीं करते। कहते, “जो अपने पंख फैलाना चाहे, उसे रोकना पाप है।” लेकिन गाँव वाले जानते थे कि बापू के मन में एक टीस थी, जो उनकी लाठी के हर ठक-ठक में सुनाई देती थी।

एक दिन की बात है। गर्मियों का मौसम था, और खेतों में फसल सूख रही थी। गाँव के तालाब का पानी कम हो गया था, और जमींदार ठाकुर रघुवीर सिंह ने अपने कुएँ से पानी देने से मना कर दिया। ठाकुर का कुआँ गाँव का सबसे गहरा कुआँ था, और उसका पानी साल भर रहता था। पर ठाकुर को अपनी ताकत का घमंड था। उसने ऐलान कर दिया, “जो पानी चाहता है, मेरे सामने गिड़गिड़ाए।” गाँव वालों का गुस्सा बढ़ रहा था, पर कोई ठाकुर से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

उसी शाम चौपाल पर लोग जमा हुए। सबके चेहरे पर मायूसी थी। मंगलू, जो गाँव का सबसे जवान और गर्मखून लड़का था, बोला, “क्यों न ठाकुर की हवेली पर धावा बोल दें? पानी हमारा हक है।” लेकिन बुजुर्ग रामदीन ने उसे डाँटा, “बेटा, ठाकुर के पास बंदूकें हैं, नौकर हैं। हमारी क्या औकात?” सब चुप हो गए। तभी दूर से लाठी की ठक-ठक की आवाज़ आई। बापू आ रहे थे।

बापू का फैसला

बापू चौपाल पर पहुँचे और अपनी लाठी ज़मीन पर टेककर बैठ गए। उनकी सफेद धोती पर मिट्टी के धब्बे थे, और पगड़ी थोड़ी ढीली हो रही थी। सब उनकी तरफ देखने लगे। बापू ने गहरी साँस ली और बोले, “ठाकुर से पानी माँगने की ज़रूरत नहीं। पानी हमारा है, और हम उसे लेंगे।” उनकी आवाज़ में एक अजीब-सा ठहराव था। मंगलू हँसा, “बापू, आपकी लाठी से ठाकुर डर जाएगा क्या?” बापू ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराए, “लाठी का काम डराना नहीं, रास्ता बनाना है।”

अगले दिन सुबह बापू अपने घर से निकले। हाथ में वही लाठी थी, और पीठ पर एक पुरानी गठरी। गाँव वालों ने देखा कि वो ठाकुर की हवेली की तरफ नहीं, बल्कि गाँव के पुराने सूखे तालाब की ओर जा रहे थे। कुछ लोग पीछे-पीछे चल पड़े। तालाब के किनारे पहुँचकर बापू ने अपनी लाठी उठाई और मिट्टी पर एक निशान बनाया। फिर बोले, “यहाँ खुदाई करो।” लोग हैरान थे। रामदीन बोला, “बापू, ये तालाब तो सालों से सूखा है। यहाँ पानी कहाँ से आएगा?” बापू ने जवाब नहीं दिया, बस लाठी से इशारा किया।

मंगलू और कुछ नौजवानों ने मजाक में खुदाई शुरू कर दी। पहले तो सूखी मिट्टी ही निकली, पर थोड़ी देर बाद मिट्टी गीली होने लगी। लोग चौंक गए। दो घंटे की मेहनत के बाद एक छोटा-सा झरना फूट पड़ा। पानी था! गाँव वाले खुशी से चिल्लाने लगे। किसी ने कहा, “बापू, आपको कैसे पता था?” बापू ने लाठी थपथपाई और बोले, “ये लाठी मेरे बाप की थी। उन्होंने बताया था कि इस तालाब के नीचे पानी सोया हुआ है। बस जगाने की देर थी।”

ठाकुर का गुस्सा

जब ठाकुर को खबर मिली कि गाँव वालों ने पानी निकाल लिया, तो उसका चेहरा लाल हो गया। उसने अपने नौकरों को बुलाया और कहा, “जाओ, उस झरने को बंद कर दो।” नौकर तालाब की ओर बढ़े, पर गाँव वाले अब डरने वाले नहीं थे। मंगलू और उसके दोस्तों ने डंडे उठा लिए। तभी बापू आगे आए। उनके हाथ में वही लाठी थी। उन्होंने ठाकुर के नौकरों से कहा, “रुक जाओ। ये पानी किसी एक का नहीं, सबका है। ठाकुर को बोलो, अगर हिम्मत है तो खुद आए।”

नौकर वापस लौट गए। शाम को ठाकुर खुद हवेली से निकला। उसके साथ चार नौकर थे, और हाथ में बंदूक। गाँव वाले डर गए, पर बापू शांत रहे। ठाकुर तालाब के पास पहुँचा और चिल्लाया, “कौन है ये बापू, जो मेरे खिलाफ साज़िश कर रहा है?” बापू धीरे-धीरे आगे बढ़े और बोले, “साज़िश नहीं, ठाकुर। हक की बात है। ये पानी प्रकृति का है, तुम्हारा नहीं।”

ठाकुर ने बंदूक तानी, पर बापू ने अपनी लाठी ज़मीन पर ठोक दी। आवाज़ इतनी तेज़ थी कि ठाकुर चौंक गया। बापू बोले, “गोली मार दो, ठाकुर। पर ये पानी अब रुकेगा नहीं।” गाँव वालों ने हिम्मत जुटाई और ठाकुर के चारों तरफ घेरा बना लिया। ठाकुर को लगा कि अब उसकी बात नहीं चलेगी। उसने बंदूक नीचे की और चुपचाप回去 गया।

लाठी का रहस्य

उस दिन के बाद गाँव में पानी की कमी नहीं हुई। झरने से पानी खेतों तक पहुँचा, और फसल फिर से लहलहाने लगी। बापू की इज़्ज़त और बढ़ गई। एक दिन मंगलू ने पूछा, “बापू, आपकी लाठी में सचमुच जादू है न?” बापू हँसे और बोले, “जादू लाठी में नहीं, बेटा। जादू उस इंसान में है, जो हिम्मत नहीं हारता। ये लाठी बस मेरे बाप की निशानी है। वो कहते थे, ‘जब तक लाठी है, रास्ता बनेगा।’”

धीरे-धीरे गाँव में ये बात फैल गई कि बापू की लाठी कोई साधारण लकड़ी नहीं, बल्कि हौसले का प्रतीक है। साल बीते। बापू की उम्र और बढ़ गई। एक दिन सुबह वो अपने आँगन में लेटे मिले, आँखें बंद, चेहरा शांत। पास में उनकी लाठी पड़ी थी। गाँव वालों ने उन्हें सम्मान से विदा किया। लाठी को मंगलू ने संभाल लिया। उसने कहा, “बापू गए, पर उनकी लाठी रहेगी।”

अंत

वर्षों बाद रामपुर में एक नया तालाब बना। लोग उसे “बापू का तालाब” कहते। और मंगलू, जो अब गाँव का मुखिया बन चुका था, हर चौपाल पर उस लाठी को साथ रखता। जब भी कोई मुश्किल आती, वो लाठी को थपथपाता और कहता, “रास्ता बनाना है, डरना नहीं।” गाँव वाले मुस्कुराते, क्योंकि उन्हें पता था कि बापू की लाठी अब भी उनके बीच है—न सिर्फ लकड़ी के रूप में, बल्कि एक सबक के रूप में।

और इस तरह, बापू की लाठी की कहानी गाँव की नई पीढ़ियों तक पहुँचती रही। एक साधारण लाठी, जो हिम्मत, हक और उम्मीद की मिसाल बन गई।

 

गांव की कहानियां (Village Stories in Hindi)

मजेदार कहानियां (Majedar Kahaniyan)

अकबर बीरबल कहानियां (Akbar Birbal Kahaniyan)

Scroll to Top