दूत का उपहार (Tenali Rama Rochak Kahani)

विजयनगर साम्राज्य में एक बार की बात है, महाराज कृष्णदेवराय के दरबार में एक विदेशी दूत आया। वह एक दूर देश से आया था और अपने साथ एक भारी-भरकम, चमचमाता संदूक लाया था। संदूक को देखकर सारे दरबारी उत्सुक हो उठे। दूत ने महाराज से कहा, “यह संदूक हमारे राजा की ओर से आपके लिए एक अनमोल उपहार है। लेकिन इसे खोलने की एक शर्त है।”
महाराज ने पूछा, “कैसी शर्त?”
दूत ने मुस्कुराते हुए कहा, “इस संदूक को केवल वही खोल सकता है, जो सच्चा बुद्धिमान हो। यदि कोई मूर्ख इसे खोलने की कोशिश करेगा, तो संदूक के अंदर का खजाना नष्ट हो जाएगा।”
दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी दरबारी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। राजगुरु ने आगे बढ़कर कहा, “महाराज, मुझे इस संदूक को खोलने का मौका दीजिए। मैं विद्या और तर्क में निपुण हूँ।”
महाराज ने अनुमति दी। राजगुरु ने संदूक के चारों ओर चक्कर लगाए, उसकी सतह को टटोला, और ताले को ध्यान से देखा। लेकिन ताला इतना जटिल था कि राजगुरु को समझ ही नहीं आया कि उसे कैसे खोला जाए। घंटों कोशिश के बाद वे थककर बैठ गए।
तब तेनाली रामा ने कहा, “महाराज, यदि आप आज्ञा दें, तो मैं इस संदूक को देखना चाहूँगा।”
महाराज ने हँसते हुए कहा, “ठीक है, तेनाली। लेकिन सावधान रहना, अगर खजाना नष्ट हुआ तो तुम्हें सजा मिलेगी!”
तेनाली ने संदूक के पास जाकर उसे गौर से देखा। उसने ताले को छुआ, फिर संदूक के किनारों को सहलाया। अचानक उसकी नजर संदूक के नीचे पड़ी। वहाँ एक छोटा सा छेद था, जो किसी का ध्यान नहीं गया था। तेनाली ने उस छेद में उंगली डाली और हल्का सा दबाव डाला। “क्लिक!” एक आवाज हुई, और संदूक का ढक्कन अपने आप खुल गया।
सभी हैरान थे। संदूक के अंदर सोने-चाँदी के सिक्के नहीं, बल्कि एक छोटा सा दर्पण और एक पर्ची थी। पर्ची पर लिखा था: “सच्ची बुद्धिमत्ता सादगी में है। जो जटिलता में उलझता है, वह मूर्ख है।”
दूत ने ताली बजाई और बोला, “तेनाली रामा, आपने साबित कर दिया कि आप सच्चे बुद्धिमान हैं। हमारे राजा ने यह उपहार इसलिए भेजा था ताकि विजयनगर की बुद्धिमत्ता की परीक्षा हो सके।”
महाराज बहुत खुश हुए और तेनाली को ढेर सारा इनाम दिया। तेनाली ने हँसकर कहा, “महाराज, कभी-कभी जवाब आँखों के सामने होता है, बस उसे देखने की नजर चाहिए।”
नैतिक: सच्ची बुद्धिमत्ता जटिलता में नहीं, बल्कि सादगी और सूझबूझ में होती है।