चौधरी का घमंड (Choudhary ka ghamand Kahani)

गाँव के बीचों-बीच चौधरी हरपाल सिंह की हवेली खड़ी थी। चारों तरफ ऊँची दीवारें, लोहे का मज़बूत दरवाज़ा और उस पर नक्काशीदार लकड़ी का काम – ऐसा लगता था मानो हवेली नहीं, कोई किला हो। चौधरी साहब गाँव के सबसे रसूखदार और धनवान व्यक्ति थे। उनके पास सैकड़ों बीघा ज़मीन थी, दर्जनों नौकर-चाकर थे, और गाँव में उनकी बात को कोई टाल नहीं सकता था। लेकिन चौधरी का सबसे बड़ा गहना था उनका घमंड – ऐसा घमंड जो उनकी हर बात, हर कदम में झलकता था।
गाँव के लोग कहते, “चौधरी साहब का दिल बड़ा है, पर उनका दिमाग़ उससे भी बड़ा है।” और सच ही था। चौधरी हरपाल सिंह को अपनी ताकत और रुतबे पर इतना भरोसा था कि वे अपने को गाँव का मालिक समझते थे। पंचायत हो या कोई छोटा-मोटा झगड़ा, चौधरी का फैसला ही अंतिम होता। गाँव में कोई उनकी आँखों में आँखें डालकर बात करने की हिम्मत नहीं करता था।
एक बार की बात है, गाँव में सूखा पड़ गया। बारिश नहीं हुई, खेत सूखे, और तालाब का पानी भी खत्म होने को आया। गाँव वाले परेशान थे। गरीब किसानों के पास न अनाज बचा था, न ही उम्मीद। ऐसे में कुछ लोग चौधरी के पास मदद माँगने गए। उनमें से एक था रामू, एक छोटा-सा किसान, जिसके पास बस दो बीघा ज़मीन थी। रामू ने हिम्मत करके चौधरी की हवेली का दरवाज़ा खटखटाया।
“चौधरी साहब, हम सब भूखे मर रहे हैं। कुछ अनाज दे दीजिए, बच्चों का पेट भर जाए,” रामू ने हाथ जोड़कर कहा।
चौधरी ने अपनी मूँछों पर ताव दिया और ऊँची आवाज़ में बोले, “अरे रामू, मेरे पास अनाज भंडार में पड़ा है, पर मैं उसे यूँ ही क्यों बाँट दूँ? तुम लोगों ने मेरे लिए क्या किया? मेहनत करो, कमाओ, फिर खाओ। मैं कोई भिखारी हूँ जो दान बाँटता फिरूँ?”
रामू और बाकी लोग सिर झुकाकर लौट आए। चौधरी का जवाब सुनकर गाँव में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई। लोग कहने लगे, “इतना धन होने के बाद भी चौधरी का दिल पत्थर का है।” लेकिन कोई खुलकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
कुछ दिन बाद गाँव में एक नया मेहमान आया – एक साधु। साधु का चेहरा तेजस्वी था, और उसकी बातों में गहराई। वह गाँव के बरगद के पेड़ के नीचे बैठता और लोगों को जीवन का ज्ञान देता। गाँव वाले उसके पास जाकर अपनी परेशानियाँ बताते। साधु सबकी बात ध्यान से सुनता और कुछ न कुछ रास्ता सुझाता। धीरे-धीरे साधु की ख्याति गाँव में फैलने लगी।
एक दिन चौधरी को यह बात खटकी। उन्हें लगा कि साधु की वजह से गाँव में उनकी बादशाहत कम हो रही है। उन्होंने अपने नौकर को बुलाया और कहा, “जाओ, उस साधु को मेरे पास लाओ। मैं देखूँगा कि यह कौन-सा ज्ञान बाँट रहा है।”
साधु को चौधरी का बुलावा मिला। वह शांत भाव से हवेली पहुँचा। चौधरी ने उसे ऊँचे आसन पर बैठे-बैठे ही देखा और बोले, “ऐ साधु, तुम कौन हो और यहाँ क्या करने आए हो? मेरे गाँव में मेरी इजाज़त के बिना कोई कुछ नहीं कर सकता।”
साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, “चौधरी जी, मैं एक साधारण इंसान हूँ। यहाँ लोगों के दुख-दर्द बाँटने आया हूँ। मुझे किसी की इजाज़त की ज़रूरत नहीं, क्योंकि मैं ईश्वर की आज्ञा से चलता हूँ।”
चौधरी को साधु का जवाब नागवार गुज़रा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “ईश्वर की आज्ञा? अच्छा, तो बताओ, क्या तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें यहाँ भूखों को खिलाने के लिए भेजा है? मेरे पास अनाज है, पर मैं उसे अपने लिए रखूँगा। तुम क्या कर लोगे?”
साधु ने शांत स्वर में कहा, “चौधरी जी, धन और अनाज आपके पास हो सकता है, पर उसका असली मालिक वही है जो सबको देता है। जो अपने पास रखता है, वह एक दिन खाली हाथ रह जाता है।”
चौधरी हँसे और बोले, “तुम्हारी बातें अच्छी हैं, पर मेरे सामने इनका कोई मोल नहीं। जाओ, अपने ईश्वर से कहो कि मेरे सामने कुछ कर दिखाए।”
साधु चुपचाप उठा और चला गया। उस रात गाँव में तेज़ हवा चली। बादल घिर आए, और सुबह होते-होते बारिश शुरू हो गई। कई दिनों की तपन के बाद यह बारिश गाँव वालों के लिए वरदान थी। खेतों में हरियाली लौट आई, और तालाब फिर से भर गया। गाँव वाले खुशी से झूम उठे। सब साधु के पास गए और उसे धन्यवाद दिया।
लेकिन चौधरी का घमंड अभी टूटा नहीं था। उन्हें लगा कि यह सब संयोग था। उन्होंने सोचा, “बारिश तो वैसे भी होनी थी। इसमें साधु का क्या कमाल?”
कुछ दिन बाद गाँव में एक और संकट आया। चौधरी के सबसे बड़े अनाज के गोदाम में आग लग गई। आग इतनी भयानक थी कि सारा अनाज जलकर राख हो गया। नौकर-चाकर सबने कोशिश की, पर आग पर काबू नहीं पाया जा सका। चौधरी यह देखकर हक्का-बक्का रह गए। उनका सारा घमंड उस आग में जलने लगा।
गाँव वालों ने सुना तो कुछ लोग चौधरी के पास गए। रामू भी था। उसने कहा, “चौधरी साहब, उस दिन आपने हमारी मदद नहीं की। आज आपके साथ यह हुआ, तो हमें दुख है। पर हम चाहते हैं कि अब आप हमारे साथ मिलकर चलें।”
चौधरी का गुस्सा अब ठंडा पड़ चुका था। वे चुपचाप सुनते रहे। फिर साधु वहाँ आया। उसने कहा, “चौधरी जी, धन और ताकत का घमंड इंसान को अंधा बना देता है। जो बाँटता है, वही सच्चा मालिक होता है।”
चौधरी की आँखों में पहली बार नमी दिखी। उन्होंने कहा, “साधु जी, मैंने अपनी गलती समझ ली। जो कुछ बचा है, वह गाँव के लिए है। अब मैं अकेला नहीं रहूँगा।”
उस दिन से चौधरी बदल गए। उन्होंने अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट दिया। गाँव में एक कुआँ खुदवाया, ताकि सबको पानी मिले। लोग अब चौधरी को सम्मान से देखते थे, पर इस बार वह सम्मान उनके घमंड की वजह से नहीं, बल्कि उनके बदले हुए दिल की वजह से था।
और साधु? वह एक दिन चुपचाप गाँव से चला गया। किसी को नहीं पता कि वह कहाँ गया। पर गाँव वालों के दिल में उसकी बातें हमेशा रह गईं – “जो बाँटता है, वही जीता है।”