चतुर लोमड़ी और सबक की सीख (chatur lomdi animal hindi story)

जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहती थी, जिसका नाम था ललिता। उसकी चमकदार लाल पूँछ और तेज़ दिमाग की वजह से सभी उसे जानते थे। ललिता को अपनी चतुराई पर बहुत घमंड था। वह हमेशा जंगल के जानवरों को चकमा देती और अपनी मस्ती में मगन रहती। लेकिन एक दिन, उसकी चतुराई ने उसे ऐसी मुसीबत में डाल दिया, जिसने उसे ज़िंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखाया।
एक नया खेल
एक सुहानी सुबह, ललिता नदी किनारे टहल रही थी। उसने देखा कि कछुआ किशन धीरे-धीरे अपने खोल को चमकाने में लगा था। ललिता को मज़ाक सूझा। वह पास गई और बोली, “अरे किशन, तुम इतने धीमे क्यों हो? क्या तुम्हारा खोल तुम्हें बोझ लगता है?”
किशन ने शांति से जवाब दिया, “ललिता, मेरा खोल मेरा घर है। यह मुझे सुरक्षित रखता है। तेज़ी ही सब कुछ नहीं होती।”
ललिता हँसी और बोली, “चलो, एक खेल खेलते हैं! अगर तुम मुझसे पहले उस पहाड़ी तक पहुँच गए, तो मैं तुम्हें अपनी सबसे कीमती चीज़ दूँगी। लेकिन अगर मैं जीती, तो तुम्हें मेरा नौकर बनना होगा!”
किशन ने सोचा और कहा, “ठीक है, ललिता। लेकिन खेल ईमानदारी से होगा।”
चालाकी का जाल
ललिता को यकीन था कि वह आसानी से जीत जाएगी। जैसे ही दौड़ शुरू हुई, वह तेज़ी से भागी और किशन को धूल चटाती चली गई। पहाड़ी के आधे रास्ते पर, ललिता ने पीछे मुड़कर देखा। किशन कहीं नज़र नहीं आया। उसने सोचा, “क्यों ना मैं थोड़ा मज़ा करूँ?”
ललिता ने जंगल के बीच में एक गुप्त रास्ता लिया, जो उसे सीधे पहाड़ी की चोटी पर ले जाता था। लेकिन उस रास्ते पर एक पुराना जाल बिछा था, जो शिकारियों ने छोड़ा था। ललिता की जल्दबाज़ी में वह जाल में फँस गई। उसकी पूँछ जाल में उलझ गई, और वह चिल्लाने लगी, “अरे, ये क्या हो गया? मैं तो सबसे चतुर हूँ!”
किशन की समझदारी
उधर, किशन धीरे-धीरे लेकिन लगातार चलता रहा। वह उस गुप्त रास्ते से नहीं गया, क्योंकि उसे पता था कि जल्दबाज़ी में गलती हो सकती है। जब वह ललिता के पास से गुज़रा, तो उसने उसकी चीख सुनी। किशन रुका और बोला, “ललिता, तुम ठीक हो?”
ललिता ने शर्मिंदगी के साथ कहा, “किशन, मैं फँस गई हूँ। मुझे बचाओ, मैं वादा करती हूँ, मैं तुम्हारी बात मानूँगी!”
किशन ने अपने मजबूत दाँतों से जाल काटा और ललिता को आज़ाद किया। ललिता की आँखों में आँसू थे। उसने कहा, “मैंने सोचा था कि चतुराई ही सब कुछ है, लेकिन तुमने मुझे सिखाया कि धैर्य और समझदारी उससे भी बड़ी है।”
सबक की सीख
दौड़ पूरी करने के लिए दोनों साथ-साथ पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे। वहाँ जंगल के सभी जानवर इकट्ठा थे। ललिता ने सबके सामने अपनी गलती मानी और बोली, “मैंने हमेशा अपनी चतुराई का घमंड किया, लेकिन आज किशन ने मुझे सिखाया कि असली जीत वही है, जो दूसरों की मदद से मिले।”
जंगल में तालियाँ गूँजीं। किशन ने मुस्कुराते हुए कहा, “ललिता, तुम अब भी चतुर हो, बस अब तुम समझदार भी हो।”
Moral of the Story
कहानी का सबक यह है कि चतुराई महत्वपूर्ण है, लेकिन बिना समझदारी और धैर्य के वह मुसीबत भी ला सकती है। दूसरों का सम्मान और उनकी ताकत को समझना हमें बेहतर बनाता है।