गाँव की चौपाल (Gaon Ki Choupal Kahani)

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बरगद के पेड़ की छांव में गाँव की चौपाल सजी थी। सूरज ढल चुका था, और आसमान में हल्की लालिमा बिखरी थी। चौपाल पर गाँव के बुजुर्ग, जवान और बच्चे इकट्ठा थे। कोई खटिया पर लेटा था, कोई ज़मीन पर चटाई बिछाए बैठा था। हवा में हुक्के की गड़गड़ाहट और तंबाकू की महक तैर रही थी। चौपाल गाँव का दिल थी—यहाँ न सिर्फ़ बातें होती थीं, बल्कि गाँव का हर मसला हल होता था। आज भी कुछ ऐसा ही होने वाला था, मगर कोई नहीं जानता था कि यह रात कितनी भारी पड़ने वाली है।

रामलाल, गाँव का मुखिया, अपनी मोटी-सी मूंछों को ताव देता हुआ खटिया पर बैठा था। उसकी आवाज़ में वज़न था, और जब वह बोलता, तो सब चुप हो जाते। सामने बैठा था मंगलू, एक ग़रीब मज़दूर, जिसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ झलक रही थीं। मंगलू की बेटी, राधा, की शादी की बात चल रही थी, मगर दहेज का बोझ उसके कंधों को झुका रहा था। चौपाल पर आज इसी मसले को सुलझाने की कोशिश हो रही थी।

“रामलाल जी, आप तो गाँव के बड़े हैं। मेरी बेटी की इज़्ज़त का सवाल है। लड़के वाले बीस हज़ार रुपये और सोने की चेन मांग रहे हैं। मैं कहाँ से लाऊँ इतना पैसा?” मंगलू की आवाज़ में लाचारी थी।

रामलाल ने हुक्के का लंबा कश लिया और बोला, “मंगलू, तू चिंता मत कर। चौपाल में कोई मसला ऐसा नहीं, जो हल न हो। हम सब मिलकर कुछ न कुछ करेंगे।”

बात सुनकर चौपाल पर सन्नाटा छा गया। गाँव में दहेज का रिवाज़ पुराना था, मगर उसका बोझ ग़रीबों को कुचल रहा था। कुछ लोग मंगलू की हालत पर तरस खा रहे थे, तो कुछ सोच रहे थे कि अगर दहेज न दिया, तो गाँव की बदनामी होगी। तभी चौपाल के कोने में बैठा बूढ़ा नत्थू चाचा, जो अपनी समझदारी के लिए मशहूर था, खाँसते हुए उठा।

“रामलाल, मैं एक बात कहूँ?” नत्थू चाचा की आवाज़ कांप रही थी, मगर उसमें गज़ब का आत्मविश्वास था।

“बोलो, चाचा। तुम्हारी बात तो गाँव का क़ानून है,” रामलाल ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।

“ये दहेज का रिवाज़ हमें खा रहा है। मंगलू की बेटी की शादी की बात है, मगर ये सवाल हर उस बाप का है, जिसके घर बेटी है। आज हम मंगलू की मदद कर देंगे, मगर कल को फिर कोई और आएगा। क्यों न हम इस रिवाज़ को ही खत्म करें? गाँव की चौपाल में ये फैसला हो कि कोई दहेज नहीं लेगा, न देगा।”

नत्थू चाचा की बात सुनकर चौपाल पर हलचल मच गई। कुछ लोग समर्थन में सिर हिलाने लगे, तो कुछ बड़बड़ाने लगे। चौधरी साहब, जो गाँव के अमीर ज़मींदार थे, ने अपनी भारी आवाज़ में कहा, “नत्थू चाचा, बात तो अच्छी है, मगर रिवाज़ ऐसे ही नहीं टूटते। लड़के वालों का हक़ होता है कुछ मांगने का। अगर हमने दहेज बंद कर दिया, तो गाँव की इज़्ज़त का क्या होगा? आसपास के गाँव हमारा मज़ाक उड़ाएंगे।”

“इज़्ज़त?” नत्थू चाचा ने तीखे स्वर में कहा। “इज़्ज़त उसमें है, चौधरी, कि हम अपनी बेटियों को बोझ समझें? कि हम ग़रीबों को कर्ज़ के नीचे दबा दें? ये इज़्ज़त नहीं, ये पाप है।”

चौपाल पर फिर सन्नाटा। नत्थू चाचा की बात दिल को छू गई थी। मंगलू की आँखें नम थीं। उसने हाथ जोड़कर कहा, “चाचा, आपने मेरे मन की बात कह दी। मैं अपनी राधा को पढ़ाना चाहता हूँ, उसे अपने पैरों पर खड़ा करना चाहता हूँ। मगर ये दहेज का बोझ मुझे कुचल रहा है।”

रामलाल ने गहरी सांस ली। वह जानता था कि चौपाल का फैसला आसान नहीं होगा। गाँव में रिवाज़ और परंपराएँ पत्थर की तरह अटल थीं। फिर भी, उसने कहा, “चौपाल का काम है गाँव को रास्ता दिखाना। नत्थू चाचा की बात में दम है। मगर ये फैसला सबकी रज़ामंदी से होना चाहिए। बोलो, गाँव वालो, क्या कहते हो?”

कुछ देर तक कोई नहीं बोला। फिर मास्टर जी, जो गाँव के स्कूल में पढ़ाते थे, उठे। उनकी आवाज़ में नरमी थी, मगर दृढ़ता भी। “मैं नत्थू चाचा के साथ हूँ। ये दहेज का रिवाज़ हमें पीछे खींच रहा है। हमारी बेटियाँ पढ़ें, काम करें, अपने सपने पूरे करें—यही असली इज़्ज़त है। अगर चौपाल आज ये फैसला ले, तो हमारा गाँव मिसाल बनेगा।”

मास्टर जी की बात ने कईयों का दिल जीत लिया। गाँव के जवान लड़के, जो अक्सर चौपाल पर चुप ही रहते थे, अब बोलने लगे। “हाँ, मास्टर जी ठीक कहते हैं। हम नहीं चाहते कि हमारी बहनें दहेज की वजह से परेशान हों।”

चौधरी साहब अब भी चुप थे। उनकी अपनी बेटी की शादी हो चुकी थी, और उन्होंने खूब दहेज लिया था। नत्थू चाचा की बात उनके लिए चुनौती थी। मगर वह जानते थे कि चौपाल का मूड बदल रहा है। अगर वह अब विरोध करते, तो गाँव में उनकी इज़्ज़त कम होती।

रामलाल ने मौके को भांपते हुए कहा, “तो फिर, गाँव वालो, ये तय हुआ कि हमारा गाँव दहेज के खिलाफ़ खड़ा होगा। न कोई दहेज लेगा, न देगा। मंगलू की बेटी की शादी में चौपाल की तरफ़ से मदद की जाएगी, मगर ये आख़िरी बार होगा। आज के बाद, हर शादी सादगी से होगी।”

चौपाल पर तालियाँ गूंज उठीं। मंगलू की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने नत्थू चाचा के पैर छूने की कोशिश की, मगर चाचा ने उसे गले लगा लिया। “बेटा, ये चौपाल की जीत है। तू अपनी राधा को पढ़ा, उसे बड़ा इंसान बना।”

रात गहरी हो चुकी थी। चौपाल धीरे-धीरे खाली होने लगी। मगर उस रात गाँव में कुछ बदल गया था। बरगद का पेड़, जो सालों से चुपचाप चौपाल की बातें सुनता था, आज जैसे मुस्कुरा रहा था।

अगले दिन मंगलू ने राधा को स्कूल भेजा। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। गाँव में बात फैल गई थी कि चौपाल ने दहेज के खिलाफ़ फैसला लिया है। आसपास के गाँवों में भी ये ख़बर पहुंची। कुछ ने मज़ाक उड़ाया, मगर कुछ ने तारीफ़ की।

वक़्त बीतता गया। राधा ने पढ़ाई पूरी की और गाँव के स्कूल में मास्टरनी बन गई। उसकी शादी एक सादे समारोह में हुई, बिना दहेज के। गाँव की दूसरी लड़कियाँ भी अब सपने देखने लगी थीं। चौपाल अब सिर्फ़ बातों का अड्डा नहीं थी—वह गाँव की ताक़त बन चुकी थी।

नत्थू चाचा अब इस दुनिया में नहीं थे, मगर उनकी बातें गाँव के हर कोने में गूंजती थीं। हर बार जब चौपाल सजती, कोई न कोई उनकी कहानी सुनाता—कैसे एक बूढ़े इंसान ने गाँव का रुख़ मोड़ दिया।

और बरगद का पेड़? वह आज भी खड़ा है, चुपचाप, गाँव की चौपाल की हर बात का गवाह बनते हुए।

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