आखिरी पत्र (Akhiri Patra Emotional Hindi Kahani)

सर्दियों की उस ठिठुरती रात में, जब कोहरा गलियों में इस कदर छाया था कि सड़क के पार का पेड़ भी धुंधला सा लगता था, राधिका अपनी छोटी सी खोली में बैठी थी। उसकी उंगलियां पुरानी डायरी के पन्नों को सहला रही थीं, जैसे उनमें कोई खोया हुआ सच छिपा हो। कमरे में एक टिमटिमाता बल्ब और चूल्हे की हल्की आंच ही उसका साथी थी। बाहर की ठंड और भीतर का सन्नाटा, दोनों मिलकर जैसे उसकी कहानी को और गहरा रहे थे।
राधिका की उम्र अब पचास के पार थी, लेकिन उसकी आंखों में अभी भी वही चमक थी, जो कभी उसकी जवानी का गहना हुआ करती थी। गाँव की गलियों में लोग उसे “राधा” कहकर पुकारते थे, लेकिन उसका असली नाम शायद ही किसी को याद था। वह नाम, जो उसने अपने सपनों के साथ दफन कर दिया था।
बचपन से ही राधिका को किताबों से प्यार था। गाँव के स्कूल में जब बाकी बच्चे खेलने में मस्त रहते, वह मास्टर जी की पुरानी किताबों में खोई रहती। उसकी आँखों में एक सपना था—वह एक दिन बड़ी लेखिका बनेगी। उसकी कहानियां दुनिया पढ़ेगी। लेकिन गाँव की तंग गलियों और पुरानी सोच ने उसके सपनों को पंख देने की बजाय, उन्हें कतरना शुरू कर दिया।
सत्रह साल की उम्र में उसकी शादी हो गई। पति रमेश एक साधारण मजदूर थे, जिनके लिए जिंदगी का मतलब बस दो वक्त की रोटी और छत था। राधिका ने अपने सपनों को एक डायरी में समेट लिया। रात के सन्नाटे में, जब रमेश खर्राटे लेते, वह चुपके से अपनी कहानियां लिखती। हर पन्ने पर उसका दिल उड़ेला जाता। लेकिन हर सुबह, वह डायरी को ताक पर रख देती, क्योंकि घर की जिम्मेदारियां उसे बुलाती थीं।
समय बीतता गया। रमेश की तबीयत खराब रहने लगी। इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी। राधिका ने अपने गहने बेच दिए, लेकिन फिर भी कुछ कम पड़ता था। एक दिन, उसने अपनी डायरी को हाथ में लिया। उसकी उंगलियां कांप रही थीं। उसने सोचा, शायद उसकी कहानियां किसी प्रकाशक को पसंद आ जाएं। उसने हिम्मत जुटाई और शहर के एक प्रकाशक को अपनी डायरी भेज दी।
कई हफ्तों बाद, जवाब आया। पत्र में लिखा था, “आपकी कहानियां भावुक हैं, लेकिन बाजार में इनका कोई स्कोप नहीं। हमें कुछ नया और बोल्ड चाहिए।” राधिका का दिल टूट गया। उसने डायरी को फिर से ताक पर रख दिया, लेकिन इस बार उसने उसे दोबारा नहीं खोला।
रमेश की मौत के बाद, राधिका अकेली रह गई। बेटा शहर में नौकरी करता था, लेकिन उसकी अपनी दुनिया थी। राधिका ने मजदूरी शुरू कर दी। दिनभर दूसरों के घरों में काम, और रात में अपनी खोली में सन्नाटा। लेकिन उस रात, कुछ अलग था। उसने डायरी को फिर से उठाया। पुराने पन्नों की स्याही धुंधली हो चुकी थी, लेकिन हर शब्द में उसकी अधूरी ख्वाहिश सांस ले रही थी।
उसने एक नया पन्ना खोला और लिखना शुरू किया। इस बार वह अपनी कहानी लिख रही थी—एक ऐसी औरत की कहानी, जिसके सपने जिंदगी की जद्दोजहद में कहीं खो गए, लेकिन जो फिर भी हार नहीं मानी। उसकी उंगलियां कांप रही थीं, आंखों से आंसू टपक रहे थे, लेकिन वह लिखती रही।
सुबह हुई। राधिका ने डायरी को बंद किया और उसे सीने से लगा लिया। वह जानती थी कि शायद उसकी कहानी कभी दुनिया न पढ़े, लेकिन उसने अपने लिए लिखा था। उसकी अधूरी ख्वाहिश ने आखिरकार एक नया रंग पाया था।
बाहर कोहरा छंट चुका था, और सूरज की पहली किरण उसकी खोली में दाखिल हुई। राधिका ने मुस्कुराते हुए खिड़की खोली। शायद यह उसकी कहानी का नया अध्याय था।