अद्भुत कपड़ा (Adbud Kapda Tenali Rama Story)

विजयनगर साम्राज्य का दरबार अपनी शानो-शौकत और चतुर दरबारी तेनाली रामा के लिए मशहूर था। महाराज कृष्णदेव राय की दो रानियाँ, रानी तिरुमला और रानी चित्रलेखा, भी दरबार की शोभा बढ़ाती थीं। रानी तिरुमला को कला और बारीक कारीगरी का शौक था, जबकि रानी चित्रलेखा को हर चीज़ में सबसे अलग दिखने की चाह थी। एक दिन दरबार में एक रहस्यमयी बुनकर आया। उसने दावा किया कि वह ऐसा कपड़ा बुन सकता है, जो केवल बुद्धिमान और सच्चे दिल वालों को दिखाई देता है।
“महाराज,” बुनकर ने चिकनी-चुपड़ी बातों के साथ कहा, “यह कपड़ा इतना जादुई है कि मूर्ख या कपटी लोग इसे देख ही नहीं सकते। इसे पहनने वाला स्वर्ग का राजा लगेगा!” रानी चित्रलेखा तुरंत उत्साहित हो उठीं। “महाराज, हमें यह कपड़ा ज़रूर बनवाना चाहिए! मैं इसे पहनकर पूरे साम्राज्य में सबसे सुंदर दिखूँगी!” रानी तिरुमला ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, अगर यह कपड़ा इतना अनोखा है, तो इसे दरबार की शान के लिए बनवाना चाहिए।”
महाराज को दोनों रानियों की बातें अच्छी लगीं। उन्होंने बुनकर को ढेर सारा सोना और एक महीने का समय दिया। बुनकर ने एक सुनसान कमरे में खाली करघा रखा और दिन-रात “कपड़ा बुनने” का नाटक करने लगा। दरबार के लोग, डरते-डरते वहाँ जाते और खाली करघे की तारीफ करते। “वाह! क्या रंग! क्या चमक!” वे कहते, क्योंकि कोई मूर्ख कहलाना नहीं चाहता था।
रानी चित्रलेखा ने तो अपने दासियों को भेजकर कपड़े का “डिज़ाइन” तक पूछ लिया। दासियाँ डर के मारे बोलीं, “महारानी, कपड़ा इतना सुंदर है कि हमारी आँखें चुंधिया गईं!” रानी तिरुमला ने भी अपने विश्वासपात्र सेवक को भेजा, जो लौटकर बोला, “रानी जी, कपड़ा इतना नाज़ुक है कि हवा में लहराता है!” तेनाली रामा, जो यह सब चुपके से सुन रहे थे, मन ही मन हँसे। उन्हें बुनकर की चाल समझ आ गई थी।
तेनाली ने सोचा, “यह मज़ेदार खेल है। मुझे भी इसमें शामिल होना चाहिए।” वे बुनकर के पास गए और बोले, “भाई, यह कपड़ा तो कमाल का है! लेकिन क्या यह रानी चित्रलेखा की सुनहरी साड़ी से ज़्यादा चमकेगा?” बुनकर घबरा गया, लेकिन बोला, “बिल्कुल, तेनाली जी! यह कपड़ा तो सूरज को भी फीका कर देगा!” तेनाली ने सिर्फ़ सिर हिलाया और चुपचाप लौट आए।
महीना बीता। बुनकर दरबार में खाली थाल लेकर हाज़िर हुआ। “महाराज, आपका अद्भुत कपड़ा तैयार है!” उसने थाल को ऐसे पेश किया, जैसे उसमें कोई ख़ज़ाना हो। दरबारी एक-दूसरे को देखकर तारीफ करने लगे। रानी चित्रलेखा ने ताली बजाई, “यह मेरे लिए बनाया गया है! मैं इसे अभी पहनूँगी!” रानी तिरुमला ने भी कहा, “महाराज, इसे दरबार में प्रदर्शित करना चाहिए। यह हमारी शान बढ़ाएगा।”
महाराज थोड़ा असमंजस में थे। उन्हें कुछ दिख नहीं रहा था, लेकिन दोनों रानियों का उत्साह देखकर वे चुप रहे। तभी तेनाली रामा खड़े हुए और बोले, “महाराज, यह कपड़ा इतना अनमोल है कि इसे दोनों रानियों को पहनाकर देखना चाहिए। मैं इसे उनके लिए तैयार करता हूँ!” रानी चित्रलेखा ने उत्साह से सिर हिलाया, “हाँ, तेनाली, जल्दी करो! मैं इसे पहनकर सबको हैरान कर दूँगी!”
तेनाली ने खाली थाल से “कपड़ा” उठाया और पहले रानी चित्रलेखा के पास गए। उन्होंने हवा में कपड़ा लहराने का नाटक किया और बोले, “रानी जी, यह कपड़ा आप पर ऐसा लगेगा जैसे चाँदनी रात में तारे झिलमिलाएँ!” फिर वे रानी तिरुमला के पास गए और बोले, “रानी जी, यह आपके लिए ऐसा है जैसे सूरज की किरणें रेशम में ढल गई हों!” दोनों रानियाँ ख़ुशी से झूम उठीं, यह सोचकर कि वे सबसे सुंदर दिख रही हैं।
दरबार में सन्नाटा था। कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा था। तभी तेनाली ने एक बच्चे को, जो दरबार में खेल रहा था, पास बुलाया। “बेटा, बताओ, रानियों का कपड़ा कैसा लग रहा है?” बच्चा मासूमियत से बोला, “तेनाली अंकल, मुझे तो कुछ दिख ही नहीं रहा! रानियाँ तो वैसे ही खड़ी हैं!” दरबार में हँसी का ठहाका गूँज उठा।
तेनाली ने बुनकर की ओर देखा और बोले, “बुनकर जी, अब सच बताइए। यह खाली करघा और खाली थाल क्या माजरा है?” बुनकर का चेहरा पीला पड़ गया। उसने काँपते हुए स्वीकार किया, “महाराज, मैंने सोचा था कि कोई मूर्ख कहलाने के डर से सच नहीं बोलेगा। यह सब धोखा था।”
रानी चित्रलेखा गुस्से में बोलीं, “यह तो अपमान है!” लेकिन रानी तिरुमला हँसते हुए बोलीं, “तेनाली ने हमें बचा लिया, वरना हम सचमुच हँसी का पात्र बन जाते!” महाराज भी ठहाका मारकर हँसे और बोले, “तेनाली, तुमने फिर कमाल कर दिया!”
महाराज ने बुनकर को सजा दी कि वह पूरे गाँव के लिए मुफ्त में असली कपड़े बुनकर दे। रानी चित्रलेखा ने तेनाली को एक सोने का कंगन तोहफे में दिया, और रानी तिरुमला ने उनकी बुद्धिमानी की तारीफ में एक कविता लिखी। उस दिन दरबार में हँसी और ठहाकों की गूँज देर तक सुनाई दी।
नैतिक: चतुराई और सच का साथ हो, तो कोई भी धोखा कामयाब नहीं हो सकता। दूसरों की बातों पर आँख मूंदकर यकीन करने से पहले अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें।